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भारत: फसलों के दाम बढ़ने से किसानों को कितना फायदा

आमिर अंसारी
८ जुलाई २०२४

भारत के कई शहरों में हरी सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं. भीषण गर्मी के कारण फसलों के उत्पादन पर असर पड़ा. टमाटर, आलू और प्याज के बढ़ते दाम से आम लोग परेशान हैं. लेकिन, क्या बढ़ी हुई कीमतों का फायदा किसानों को होता है.

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टमाटर
अप्रैल और जून के बीच पड़ी भीषण गर्मी के कारण टमाटर की फसल पर असर पड़ा, इसके अलावा हीटवेव के कारण कई राज्यों में टमाटर की खड़ी फसल खराब हो गईतस्वीर: Aamir Ansari/DW

नोएडा के रविवार बाजार में जब डॉ. शशि राव पूरे हफ्ते के लिए सब्जी खरीदने के लिए गईं तो टमाटर के दाम ने उनको हैरान कर दिया. एक महीने पहले तक जो टमाटर 40 से 50 रुपये प्रति किलो बिक रहा था, वहीं अब उसके दाम 100 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए हैं.

डॉ. राव कहती हैं, "मिडिल क्लास परिवार तो एक किलो टमाटर के लिए 100 रुपये दे सकता है, लेकिन जरा उन लोगों की सोचिए जो गरीब हैं और उनकी आमदनी सीमित है. वे लोग अपना घर कैसे चलाएंगे. हम लोग भी बढ़ती कीमतों से परेशान जरूर होते हैं, क्योंकि हमारा घर चलाने का बजट तो जरूर इससे प्रभावित होता है. सब्जी के दाम के अलावा हाल के दिनों में दूध के दाम भी बढ़ गए."

टमाटर ही नहीं प्याज और आलू के दाम भी हाल के दिनों में बढ़े हैं और वे खुदरा बाजार में 40 से 50 रुपये प्रति किलो बिक रहे हैं. टमाटर की कीमतें बढ़ने के पीछे भीषण गर्मी और ताप लहर बड़ी वजह है. अप्रैल से लेकर जून के महीने में पड़ी भीषण गर्मी की वजह से टमाटर की फसल प्रभावित हुई. इस कारण मुख्य टमाटर उत्पादक राज्यों से सप्लाई कम हुई. जिसका असर खुदरा बाजार में दिख रहा है.

टमाटर के दाम क्यों बढ़े

भारत में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के राज्यों में टमाटर का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है. लेकिन अप्रैल और जून के बीच इन राज्यों में पड़ी भीषण गर्मी के कारण टमाटर की फसल पर असर पड़ा, इसके अलावा हीटवेव के कारण कई राज्यों में टमाटर की खड़ी फसल खराब हो गई.

महाराष्ट्र के बीड जिले के "किसान पुत्र आंदोलन" के नेता अमर हबीब कहते हैं कि टमाटर हो या प्याज उसके दाम बढ़ने से किसानों को फायदा नहीं होता है. उन्होंने कहा, "हमारे देश में किसानों से जुड़े तीन कानून हैं. लोग जो हैं सिर्फ दाम को देखते हैं लेकिन जिस कारण पूरी व्यवस्था खड़ी हुई है उस पर लोग गौर नहीं करते."

हबीब कहते हैं, "पहला लैंड सीलिंग एक्ट है, उसके कारण जमीनों के बहुत छोट-छोटे टुकड़े हो गए हैं. अब वह आर्थिक रूप से व्यवहार्य भी नहीं रही. सबसे ज्यादा आत्महत्या करने वाले किसानों में से 94 प्रतिशत किसान छोटे जमीन वाले होते हैं. क्योंकि फसल का दाम मिलने के बाद भी किसान अपना परिवार नहीं चला पाते हैं. दूसरे नंबर पर आवश्यक वस्तु कानून, जिससे सरकार को बाजार में दखल देने का अधिकार दिया गया है. इस कानून के तहत सरकार कुछ चीजों के दाम बढ़ाने के लिए दखल देती है और खासकर किसानों की फसलों के दाम गिराने के लिए दखल देती है क्योंकि इसका असर मतदान पर होता है."

हबीब बताते हैं, "आयात-निर्यात का कानून, मार्केट कमेटी एक्ट जैसे कानून जो आवश्यक वस्तु एक्ट के गर्भ से निकले हैं, जिसमें सरकार को अधिकार मिल गया है कि वह किसी भी वस्तु के भाव को नियंत्रण कर सकती है. इन कानून के कारण किसानों का ही नुकसान होता है उन्हें उचित भाव नहीं मिल पाता है. अगर ये कानून रद्द हो जाएंगे तो किसानों का ही फायदा होगा."

हबीब का कहना है कि फसलों के दाम से निकलकर इन कानूनों पर चर्चा करने की जरूरत है. उन्होंने कहा, "हमें दाम से निकलकर जिसके कारण पूरी व्यवस्था बनी हुई है उसपर विचार करना होगा. आपके खेत में सोना भी निकल जाएगा तो सरकार उसका दाम गिरा देगी. ये अधिकार सरकार को उन कानूनों के तहत मिला हुआ है."

फसलों पर मौसम की मार

हालांकि रूरल वॉयस के संपादक हरवीर सिंह कहते हैं किसानों की आय को लैंड सीलिंग एक्ट से जोड़ना सही नहीं है और यह बिल्कुल ही अलग मुद्दा है. उन्होंने कहा, "टमाटर जैसी फसलों के दाम में उतार-चढ़ाव बहुत ज्यादा होता है. कई बार जब उत्पादन कम और मांग अधिक होती है तो दाम बहुत बढ़ जाते हैं. कई बार तो दाम गिर भी जाते हैं."

उन्होंने कहा, "अगर तेज बारिश हो जाए, फसलों को नुकसान हो जाए तो उससे दाम बढ़ जाते हैं. दाम बढ़ने से जाहिर सी बात है कि व्यापारियों को मुनाफा हो जाता है, लेकिन उसके पास माल होगा तभी वह कमा पाएगा, ऐसे में किसानों को भी लाभ हो जाता है."

अप्रैल से ही उच्च तापमान और जलाशयों के गिरते स्तर ने मौसमी सब्जियों जैसे भिंडी, लौकी, बीन्स, गोभी और शलजम को भी प्रभावित किया है. व्यापारियों के मुताबिक हीटवेव के कारण ताजी सब्जियां बुरी तरह खराब हुईं हैं, जिससे कीमतों पर असर पड़ा है.

हरवीर सिंह के मुताबिक, "इस बार गर्मी के कारण फसलों को बहुत नुकसान हुआ, खासकर किसानों को सब्जियां में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है. कीमतों में बहुत ज्यादा अंतर आने से किसानों पर इसका सीधा असर होता है और अगर किसान को उस खास फसल में बहुत ज्यादा नुकसान हुआ होता है तो अगली बार वह उस फसल से बचेगा."

भारतीय रिजर्व बैंक ने 26 जून को जारी अपनी मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की रिपोर्ट में कहा कि भारत की खुदरा महंगाई दर 12 महीने के निचले स्तर पर पहुंच कर 4.75 प्रतिशत हो गई, लेकिन चिंता की बात यह है कि खाद्य महंगाई दर 8.69 प्रतिशत पर बनी हुई है.

किसानों की आय दोगुनी हुई या नहीं?

मार्च 2024 में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा था कि किसानों आय की सही जानकारी का पता लगाना बहुत ही मुश्किल है. इसकी वजह सही आंकड़ों की कमी है. चंद ने कहा कि किसान गैर-कृषि स्रोतों से अधिक कमाई कर रहे हैं.

चंद ने एक इंटरव्यू में कहा था, "सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य तय किया था, ताकि हम और अधिक कोशिश करें. इस लक्ष्य के संदर्भ में हम कहां हैं, इसका आकलन करने की आवश्यकता है. लेकिन आवश्यक डाटा हमारे पास उपलब्ध नहीं है."

उन्होंने कहा कि 2018-19 में छोटे और सीमांत किसान गैर-कृषि स्रोतों से अधिक आय अर्जित कर रहे थे. उनके मुताबिक सरकार के पास 2018-19 के बाद गैर-कृषि स्रोतों से होने वाली आय का आंकड़ा नहीं है. उन्होंने कहा, "अगर हमारे पास वह डाटा होगा, तभी यह स्पष्ट होगा कि हमने यह लक्ष्य (2022 तक किसानों की आय दोगुनी करना) हासिल किया है या नहीं."

2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया था. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए रणनीतियों की सिफारिश करने के लिए अप्रैल 2016 में "किसानों की आय दोगुनी करने" पर एक अंतर-मंत्रालयी समिति की स्थापना की गई थी. साल 2018 में समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.

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