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आरबीआई ने बढ़ाई रेपो दर, महंगाई में और महंगे पड़ेंगे बैंक लोन

चारु कार्तिकेय
३० सितम्बर २०२२

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति ने रेपो दर को 0.50 प्रतिशत बढ़ा दिया है. ताजा बढ़ोतरी के बाद रेपो दर 5.9 प्रतिशत हो जाएगी, जो पिछले तीन सालों में उसका सबसे ऊंचा स्तर है.

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भारतीय रिजर्व बैंक
भारतीय रिजर्व बैंकतस्वीर: Punit Paranjpe/Getty Images/AFP

रेपो दर वो दर होती है जिस पर आरबीआई दूसरे बैंकों को कर्ज देता है ताकि बैंकों के पास पर्याप्त नकदी रहे. रेपो रेट बढ़ाने से बैंक रिजर्व बैंक से कम नकदी उधार लेते हैं जिससे अर्थव्यवस्था में नकदी की आपूर्ति पर दबाव बनाया जाता है.

उम्मीद की जाती है कि ऐसा करने से महंगाई पर लगाम लगेगी. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि यह बढ़ोतरी लगातार बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाने के लिए की गई है.

महंगाई
ऊंची महंगाई दर आरबीआई के लिए चुनौती बनी हुई हैतस्वीर: PUNIT PARANJPE/AFP

दास ने बताया कि कोविड-19 और फिर यूक्रेन युद्ध के रूप में पिछले ढाई सालों में वैश्विक अर्थव्यवस्था को पहले से ही दो झटके लग चुके थे, लेकिन अब विकसित देशों के रिजर्व बैंकों द्वारा नीतिगत दरों को लगातार बढ़ाना तीसरे झटके के रूप में आया है.

आम आदमी की जेब पर दबाव

उन्होंने कहा कि ये बैंक अपने अपने देशों की आंतरिक स्थिति से निपटने के लिए दरें बढ़ा रहे हैं लेकिन वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के अत्यधिक रूप से एकीकृत होने की वजह से इसका असर दुनिया भर में एक तूफान की तरह हो रहा है.

रेपो दर बढ़ने से महंगाई धीमी होगी या नहीं ये तो समय बीतने के बाद ही पता चलेगा, लेकिन बैंक जब इस दर के बढ़ने का बोझ अपने ग्राहकों पर लाद देंगे तो आम आदमी के लिए मुसीबत और बढ़ जाएगी.

रेपो दर बढ़ने के बाद बैंक होम लोन, ऑटो लोन, पर्सनल लोन आदि कर्जों की दरें बढ़ा देते हैं और फिर लोन लेने वालों का खर्चा बढ़ जाता है. लेकिन पिछले कुछ महीनों से आरबीआई ने महंगाई को काबू में लाना ही अपना बड़ा लक्ष्य बनाया हुआ है.

कुदरत के साथ अर्थव्यवस्था का विकास

मई में पहली बार आरबीआई ने दरें बढ़ाई थीं और तब से दरों को करीब दो प्रतिशत बढ़ा दिया गया है. इसके बावजूद महंगाई के मोर्चे पर आम आदमी को राहत नहीं मिली है. अगस्त में ही खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ कर सात प्रतिशत हो गई थी.

उसके पहले के तीन महीनों में इस दर में गिरावट देखी गई थी लेकिन अगस्त में ये फिर ऊपर चली गई. जुलाई में खुदरा मुद्रास्फीति 6.7 प्रतिशत थी. आरबीआई का लक्ष्य खुदरा मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत तक रोक कर रखना होता है, दो प्रतिशत तक कम या ज्यादा की गुंजाइश के साथ.

थोक मुद्रास्फीति की हालात और ज्यादा खराब है. वो लगातार पिछले 16 महीनों से दो अंकों में बनी हुई है. अगस्त में यह दर 12.41 प्रतिशत थी. हालांकि इसमें धीरे धीरे गिरावट देखी जा रही है. जुलाई में थोक मुद्रास्फीति 13.93 प्रतिशत पर थी और जून में 15.18 प्रतिशत पर.

गिराया विकास दर का अनुमान

आरबीआई ने मौजूदा वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) के विकास की दर के अनुमान को गिरा दिया है. पहले आरबीआई का अनुमान था कि विकास दर 7.2 प्रतिशत रहेगी, लेकिन ताजा अनुमान में इसे गिरा कर सात प्रतिशत पर ला दिया गया है.

अर्थव्यवस्था में विकास
अर्थव्यवस्था में विकास भी आरबीआई की आकांक्षाओं के हिसाब से नहीं हो रहा हैतस्वीर: Divyakant Solanki/picture alliance/dpa

जून में संपन्न हुई इस साल की पहली तिमाही में विकास दर 13.5 रही, जबकि आरबीआई का अनुमान 16.2 प्रतिशत का था. इसके बाद आशंका व्यक्त की ही जा रही थी कि आरबीआई सालाना विकास दर के अनुमान में भी संशोधनकरेगा.

इसके अलावा आरबीआई डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के गिरते मूल्य को लेकर भी चिंतित है. जनवरी में रुपया डॉलर के मुकाबले 75 पर था लेकिन अब इतिहास में अपने अपने सबसे निचले स्तर 82 के आस पास पहुंच चुका है.

रुपये के मूल्य को और गिरने से रोकने के लिए आरबीआई ने स्थिति में हस्तक्षेप भी किया है और अपने विदेशी मुद्रा खजाने में से अभी तक 85 अरब मूल्य के डॉलर बेचे हैं. आने वाले दिनों में देखना होगा कि रुपये की क्या हालत रहती है.