सेब के बागों में छिपकर जी रहे हैं हजारों कश्मीरी
४ नवम्बर २०१६श्रीनगर के बाहरी इलाकों में सेब के बागों में पेड़ों के नीचे युवाओं के झुंड बैठे ठहाके लगाते देखे जा सकते हैं. उनके आसपास फलों से भरे बक्से रखे हैं. कुछ लोग हंसी-ठिठौली कर रहे हैं. दूसरे लोग अपने फोन पर वीडियो गेम्स खेल रहे हैं. यह इन युवाओं के लिए आराम का समय है जब वे भारतीय पुलिस और अर्धसैनिक बलों से छिपे बैठे हैं. सुरक्षाबल इनकी तलाश में हैं. अब जैसे जैसे सर्दी बढ़ रही है, इन युवाओं को कहीं और पनाह लेनी होगी. रात के वक्त ये लोग अपने दोस्तों, दूर के रिश्तेदारों और कई बार अनजान लोगों के यहां भी रुकते हैं. ये लोग लगातार अपने ठिकाने बदलते रहते हैं. अपने जानने वालों के जरिए घरवालों को खैर-खबर पहुंचाते हैं.
ये लोग वे प्रदर्शनकारी हैं जो सड़कों पर उतर कर भारत सरकार के दमन का विरोध करते हैं. अब तक पुलिस आठ हजार से ज्यादा लोगों को जेल में डाल चुकी है. इनमें से ज्यादातर किशोर या युवा हैं. हजारों लोग अभी भी पुलिस के निशाने पर हैं. अधिकारियों का कहना है कि ये संदिग्ध सुरक्षा के लिए खतरा हैं. ये वही लोग हैं जिन पर पत्थरबाज होने के आरोप हैं. कुछ पर यह भी शक है कि वे हिंसक अलगाववादियों के संपर्क में हैं. लेकिन ज्यादातर ऐसे हैं जो भारत विरोधी प्रदर्शनों में हिस्सा लेते हैं. ऐसे ही 40 वांछित युवा सेब के बागों में छिपे हैं. इन युवाओं को लगता है कि उनके साथ पुलिस गलत व्यवहार कर रही है. यूनिवर्सिटी में कला की पढ़ाई कर रहा एक युवा अपनी पहचान जाहिर न किए जाने की शर्त पर कहता है, "हम आजादी की मांग में आवाज उठाने की कीमत चुका रहे हैं." एक अन्य युवा को अपनी साइंस की पढ़ाई छोड़कर भूमिगत हो जाना पड़ा है. वह कहता है, "मैं डॉक्टर बनना चाहता हूं. लेकिन अभी तो पुलिस ने मुझे एक फरार बना दिया है."
जानिए, दुनिया में कहां कहां हो रही है आजादी की मांग
इस साल 8 जुलाई को आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के कार्यकर्ता बुरहान वानी के एक मुठभेड़ में मारे जाने के बाद से कश्मीर में हिंसा का चक्र जारी है. तब से लगभग रोजाना विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. इन प्रदर्शनों में सबसे आम चीज पत्थरबाजी है. युवा सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकते हैं और बदले में उन पर रबर की गोलियां चलाई जाती हैं. इन प्रदर्शनों और जवाबी कार्रवाई में अब तक करीब 90 नागरिक और दो पुलिसकर्मियों की जान जा चुकी है. हजारों लोग घायल हैं.
श्रीनगर में एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक जो आठ हजार लोग हिरासत में हैं उनमें से 500 को विभिन्न आरोपों के तहत गिरफ्तार कर लिया गया है. गिरफ्तारी का मतलब है कि उन्हें बिना चार्जशीट फाइल किए कम से कम दो साल तक जेल में रखा जा सकता है. अनंतनाग के नजदीक एक आर्मी कैंप में तैनात अफसर ने बताया, "प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की रणनीति काम कर रही है. दुख की बात ये है कि आम लोगों को भी परेशानी हो रही है."
तस्वीरों में, टाइम बम जैसे विवाद
लेकिन अब बात आगे बढ़ चुकी है. अब पुलिसवालों के परिजनों को धमकियां मिल रही हैं. एक पुलिसकर्मी ने कहा कि गुस्साई भीड़ उसके घर आई और धमकी दी कि दोबारा वर्दी पहनी तो घर को जला दिया जाएगा. एक अन्य पुलिसकर्मी छुट्टी पर था तो उसे प्रदर्शन में हिस्सा लेना पड़ा. इस वजह से उसकी नौकरी जाते जाते बची लेकिन वह कहता है, "मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था. अपने परिवार को बचाने के लिए मेरे पास यही एक रास्ता था."
जो लोग हिरासत में लिए जा चुके हैं और जिनकी पुलिस तलाश कर रही है, उनके परिजन थानों के चक्कर काट रहे हैं. वे चाहते हैं कि उनके बच्चों को हिरासत से रिहा किया जाए और जो अभी पकड़े नहीं गए हैं उन्हें वांछित सूची से हटाया जाए ताकि वे घर लौट सकें. वांछित सूची में शामिल एक किशोर के पिता को तीन दिन जेल में बिताने पड़े क्योंकि उसके तीन बेटे संदिग्ध हैं और फरार हैं. एक अन्य को अपने बेटे को पुलिस को सौंपना पड़ा नहीं तो उसकी सरकारी नौकरी जा सकती थी. छिपे हुए लोग कहते हैं कि इस कार्रवाई का नतीजा उलटा हो सकता है क्योंकि बहुत से लोग हथियार उठा सकते हैं.
वीके/एके (एपी)