'हमारा देश चीन के साथ युद्ध की तैयारी कर रहा है'
५ अक्टूबर २०२१ऑस्ट्रेलिया के सार्वजनिक टीवी चैनल एबीसी को दिए एक विशेष इंटरव्यू में ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू ने चेतावनी दी है कि चीन के साथ युद्ध का खतरा मंडरा रहा है. उन्होंने कहा कि अगर चीन की सेना हमला करती है तो उनका देश जवाब देने के लिए तैयार है.
वू ने कहा, "ताइवान की रक्षा हमारे हाथ में है और उसे लेकर हम पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं. मुझे पूरा यकीन है कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो उन्हें खासा नुकसान उठाना पड़ेगा.”
चीन ने हाल ही में ताइवान के इर्दगिर्द अपनी सैन्य गतिविधियां तेज कर दी हैं जिस कारण इलाके में काफी चिंता का माहौल है. पिछले हफ्ते चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के 120 से ज्यादा विमान ताइवान के एयर डिफेंस आईडेंटिफिकेशन जोन में उड़ान भरते देखे गए थे.
ताइवान के करीब पहुंचे चीनी हमलावर
बीते शनिवार को चीन का राष्ट्रीय दिवस था. उसी दिन पीएलए के 39 विमान ताइवानी इलाके में उड़ान भरकर आए. इनमें परमाणु हथियार ले जा सकने वाले लड़ाकू विमान भी शामिल थे. इस घटना की ताइवान के अलावा अमेरिका ने भी निंदा की थी.
सोमवार को ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि पीएलए के 50 से ज्यादा विमानों ने उनके क्षेत्र में प्रवेश किया, जो अब तक की सबसे बड़ी गतिविधि थी.
पीएलए के विमान द्वीपीय देश ताइवान की सीमा के 200 से 300 किलोमीटर दूर तक पहुंच गए थे, जो ताईपेई के लिए परेशान करने वाला है. ताइवान कई बार कह चुका है कि उसे चीन के हमले का डर सता रहा है.
चीन मामलों के विशेषज्ञ, मेलबर्न यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर प्रदीप तनेजा कहते हैं कि ताइवान का यह डर झूठा नहीं है. प्रोफेसर तनेजा ने डॉयचे वेले को बताया, "चीन ने ऐसा कभी नहीं कहा है कि वह ताइवान पर शक्ति का इस्तेमाल नहीं करेगा. चीन का मकसद है ताइवान को अपने अंदर मिलाना. उसने कहा है कि उसके लिए ताकत इस्तेमाल करनी पड़ती है तो वह करेगा.”
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प्रोफेसर तनेजा कहते हैं कि अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए चीन यदा-कदा अपनी ताकत ताइवान को दिखाता रहता है. मसलन, बीते सप्ताह चीन ने सौ से ज्यादा बार ताइवान की वायु सीमा में प्रवेश किया, जिसके बाद अंतरराष्ट्रीय मीडिया में ऐसी खबरें भी आईं कि चीन ने ताइवान पर हमला कर दिया है.
चीन ने सीमा पार नहीं की
चीन इस मामले में सजग था कि तकनीकी रूप से उसने सीमा पार नहीं की थी. एक तरफ तो राष्ट्रीय वायु सीमा होती है, जिस पर अंतरराष्ट्रीय कानून लागू होता है. यानी, यह किसी भी देश की वो सीमा होती है जिसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हो.
दूसरी तरफ एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन होते हैं, जिनका अंतरराष्ट्रीय कानून के दायरे में कोई अर्थ नहीं होता. असल में यह ऐसा क्षेत्र होता है, जिसे कोई देश अपनी सुरक्षा जरूरतों के मुताबिक तय कर सकता है. फिलहाल दुनिया में 20 ऐसे देश हैं जिन्होंने ADIZ घोषित किया है. इनमें चीन और ताइवान के अलावा अमेरिका, कनाडा, जापाना, दक्षिण कोरिया, युनाइटेड किंग्डम, नॉर्वे, भारत और पाकिस्तान शामिल हैं. समस्या यह है कि पूर्वी एशिया में ये क्षेत्र एक दूसरे के बीच घुसे हुए हैं और विवादित इलाकों में फैले हैं.
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डिफेंस इंटरनेशनल पत्रिका के वरिष्ठ संपादक जेरी सॉन्ग कहते हैं कि चीन के विमान ताइवान के ADIZ में घुसे थे लिहाजा उन्होंने सीमा का उल्लंघन नहीं किया.
उन्होंने कहा, "पिछले दिनों जो गतिविधियां हुई हैं, वे प्रतीकात्मक ज्यादा थी ताकि ताइवान पर दबाव बढ़ाया जा सके. पीएलए के विमान ताइवान की सीमा में घुस जाते तो हालात विस्फोटक ही हो जाते. तब ताइवान को मजबूरन उन्हें रोकना पड़ता.”
सीधे युद्ध से बचने की कोशिश
प्रोफेसर तनेजा भी इस बात की ताकीद करते हैं कि दोनों ही पक्ष बहुत संभलकर कदम रख रहे हैं ताकि तनाव भड़ककर युद्ध में ना बदल जाए.
वह कहते हैं, "अगर इस इलाके में युद्ध भड़क जाता है तो बात सिर्फ ताइवान तक सीमित नहीं रह पाएगी. तब सवाल यह भी उठेगा कि अमेरिका क्या कदम उठाता है. अगर अमेरिका ताइवान के पक्ष में नहीं आता है तो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसका अधिपत्य पूरी तरह खत्म हो जाएगा. ऐसा अमेरिका नहीं चाहेगा. लेकिन उसका ताइवान के पक्ष में आना तीसरे विश्व युद्ध को भड़का सकता है, जो मेरे ख्याल से फिलहाल कोई पक्ष नहीं चाहता.”
ताइवान, जिसका औपचारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चीन है, खुद को एक संप्रभु देश कहता है लेकिन चीन उसे अपना इलाका मानता है और चाहता है कि वह मुख्य भूमि के साथ एकीकृत हो जाए. प्रोफेसर तनेजा बताते हैं कि ताइवान की मौजूदा राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन काफी आक्रामक हैं और देश का नाम बदलकर रिपब्लिक ऑफ ताइवान कर देने के भी पक्ष में हैं लेकिन वह यह भी जानती हैं कि ऐसा होते ही चीन के पास हमले के अलाव कोई विकल्प नहीं रह जाएगा.
ताईपेई की सन यात-सेन नैशनल यूनिवर्सिटी में रणनीतिक अध्ययन की प्रोफेसर यिंग यू लिन कहती हैं कि चीन ताइवान को कम से कम सैन्य ताकत इस्तेमाल कर हराना चाहेगा.
वह कहती हैं, "ऐसा करने के लिए बीजिंग ताइवान पर आर्थिक और कूटनीतिक दबाव बना रहा है. वह जनता के भीतर असंतोष को भी सरकार के खिलाफ भड़काने की कोशिश करेगा.”
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