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कानून और न्यायभारत

सुप्रीम कोर्ट: रेप पीड़िता के लिए दोबारा आघात टू फिंगर टेस्ट

आमिर अंसारी
३१ अक्टूबर २०२२

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि रेप पीड़िताओं के परीक्षण की टू फिंगर प्रणाली समाज में आज भी व्याप्त है. कोर्ट ने केंद्र को आदेश दिया है कि वह सुनिश्चित करे कि यह परीक्षण न हो.

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तस्वीर: Imago/Ritzau Scanpix

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न की पीड़िताओं पर अब भी किए जा रहे टू फिंगर टेस्ट पर कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए सोमवार को निर्देश दिया कि परीक्षण करने वालों को कदाचार का दोषी ठहराया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आदेश दिया, "यौन उत्पीड़न के मामलों में टू फिंगर टेस्ट कराने वाला कोई भी व्यक्ति कदाचार का दोषी होगा."

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और हिमा कोहली की बेंच ने अपने आदेश में कहा टू फिंगर टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. बेंच ने कहा यह टेस्ट पीड़िताओं को फिर से आघात पहुंचाता है. बेंच ने कहा कि अधिकारियों को इस तरह के टेस्ट का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

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अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि "यह घटिया सोच है कि रेप पीड़िता पर सिर्फ इसलिए यकीन नहीं किया जा सकता है क्योंकि वह यौन रूप से सक्रिय है." कोर्ट ने कहा पीड़ित के यौन इतिहास के लिए टू फिंगर टेस्ट महत्वपूर्ण नहीं है.

दरअसल सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश झारखंड हाईकोर्ट के उस फैसले को पलटते हुए आया है जिसमें हाईकोर्ट ने रेप और हत्या के दोषी को छोड़ दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के दोषी ठहराने के फैसले को कायम रखा. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए आरोपी को दोषी माना.

क्या होता है टू फिंगर टेस्ट

बलात्कार पीड़ित के साथ टू फिंगर परीक्षण कई बार विवादों में रहा है. यह एक बेहद विवादास्पद टेस्ट है, जिसके तहत महिला की योनि में उंगलियां डालकर अंदरूनी चोटों की जांच की जाती है. यह भी जांचा जाता है कि दुष्कर्म की शिकार महिला संभोग की आदी है या नहीं. अगर योनि में आसानी से दोनों उंगलियां चली जाती हैं तो महिला को यौन रूप से सक्रिय माना जाता है. इसी परीक्षण में महिला के कौमार्य या कौमार्य न होना भी मान लिया जाता है. मानवाधिकार कार्यकर्ता इस तरह के टेस्ट की आलोचना करते आए हैं लेकिन इसके बावजूद इस तरह के टेस्ट होते रहे हैं.

कई रिसर्च में पता चला है कि पहली बार सेक्स करने पर कई महिलाओं को न तो दर्द का एहसास होता है और न ही खून आता है. यही नहीं, योनि के अंदर मौजूद हाइमन (झिल्ली) भी कई बार नहीं टूटती. वॉशिंगटन के जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में फैमिली मेडिसिन की प्रोफेसर और फिजिशियंस टू ह्यूमन राइट की वरिष्ठ चिकित्सा सलाहकार रनित मिशोरी के मुताबिक, "इस तरह के तथाकथित कौमार्य परीक्षण बहुत ही दर्दनाक और असुविधाजनक हो सकते हैं. इसमें आमतौर पर डॉक्टर, महिला की योनि में दो उंगलियां डालकर परीक्षण करता है. इसे टू फिंगर टेस्ट कहा जाता है. यदि किसी महिला की इच्छा के विरूद्ध ऐसा किया जाता है तो इसे यौन हिंसा की श्रेणी में रखा जाता है."

2013 में लगी थी रोक

टू फिंगर टेस्ट से रेप पीड़ित महिलाओं को होने वाले मानसिक कष्ट को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में इस पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि टू फिंगर टेस्ट पीड़िता के निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है. उसने कहा था इस तरह का परीक्षण नहीं किया जाना चाहिए. आदेश के बाद देश में महाराष्ट्र पहला राज्य था जिसने अपने यहां टू फिंगर टेस्ट पर पाबंदी लगाई थी.

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्यों को सभी सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में पाठ्यक्रम की समीक्षा करने और "टू फिंगर टेस्ट" पर अध्ययन सामग्री को हटाने का निर्देश दिया है.

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