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कोरोना काल में सूचना महामारी से होती मौत

जॉन सिल्क
१२ अगस्त २०२०

एक शोध के मुताबिक "इंफोडेमिक" ने कोविड-19 से जुड़ी पीड़ा को सोशल मीडिया और अफवाहों के जरिए और अधिक बढ़ाया है. अफवाह के अलावा इससे जुड़े षड्यंत्र के बारे में भी जोर शोर से सोशल मीडिया पर लोग मैसेज पोस्ट कर रहे हैं.

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Indien Coronavirus Delhi | Friedhof
तस्वीर: picture-alliance/ZUMA Wire/SOPA Images/A. K. Sing

कोरोना वायरस के बारे में गलत जानकारी के कारण कम से कम 800 लोग मारे गए हैं. यह जानकारी अमेरिकन जर्नल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन एंड हाइजीन के ताजा शोध में सामने आई है. विश्व भर में कोरोना से जुड़ी अफवाह के कारण लोगों को आंख की रोशनी से लेकर जान तक गंवानी पड़ी है. बीमारी से जुड़ा कलंक और साजिश के सिद्धांतों ने दुनिया भर में हजारों लोगों की पीड़ा को बढ़ा दिया है.

ऑस्ट्रेलिया, जापान और थाईलैंड जैसे अलग-अलग देशों के अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने अध्ययन के हिस्से के रूप में दिसंबर 2019 और अप्रैल 2020 के बीच संकलित आंकड़ों का अध्ययन किया. शोधकर्ताओं के मुताबिक, "हमने कोविड-19 से जुड़ी अफवाहों पर ध्यान दिया, कलंक और साजिश की थ्योरी जो ऑनलाइन फैलाई जा रही थी, जिनमें फैक्ट चेकिंग वेबसाइट, फेसबुक, ट्विटर और ऑनलाइन न्यूज पेपर शामिल थे और हमने सार्वजनिक स्वास्थ्य पर उनके प्रभावों का अध्ययन किया."

नतीजों से पता चला कि करीब-करीब 800 लोगों की मौत हो गई जब उन्होंने इस उम्मीद के साथ अत्यधिक गाढ़ी शराब पी ली कि यह शरीर को डिसइंफेक्ट कर देगी. मेथेनॉल पीने के कारण 5,900 लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया और 60 लोगों की दृष्टि चली गई.

अफवाह और साजिश के सिद्धांत

भारत में सैकड़ों लोगों ने संक्रमण को रोकने के लिए सोशल मीडिया पर झूठी जानकारी के कारण गाय का पेशाब पीया या गाय का गोबर खाया. सऊदी अरब में ऊंट के पेशाब को चूने के पानी के साथ इस्तेमाल को कोरोना के खिलाफ कारगर बताया गया. वैज्ञानिकों ने अन्य और अफवाहों पर शोध किया, जैसे कि लहसुन खाना, गर्म मौजे पहनना और छाती पर बत्तख की चर्बी को रगड़ने से बीमारी का इलाज होना शामिल है. साजिश के सिद्धांतों पर भी वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया. उदाहरण के लिए, महामारी एक जैविक हथियार है जिसे बिल गेट्स वैक्सीन के अधिक बिक्री के लिए वित्त पोषित कर रहे है.

यह रिपोर्ट 87 देशों की 25 भाषाओं में उपलब्ध डाटा का विश्लेषण करती है, अध्ययन में पाया गया कि कुछ एशियाई देशों में, महामारी को रोकने के लिए काम कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों और संक्रमित नागरिकों को बदनाम करने की बार-बार कोशिश की गई है. नतीजतन उन्हें कई बार गालियां सुननी पड़ी और शारीरिक हमले सहने पड़े.

शोधकर्ताओं के मुताबिक, "महामारी के दौरान, एशियाई मूल के लोगों और स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों को दुर्भावनापूर्ण और शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाया गया." इस शोध के नतीजों के बाद वैज्ञानिकों ने सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से फेक न्यूज को फैलने से रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई करने का आग्रह किया है. उन्होंने सोशल मीडिया कंपनियों के साथ सटीक जानकारी और सूचना के प्रसार में सहयोग की भी अपील की है.

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