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मानवाधिकारदक्षिण कोरिया

दक्षिण कोरिया: सेना के गे विरोधी कानून पर ऐतिहासिक फैसला

२२ अप्रैल २०२२

दक्षिण कोरियाई सेना पर समलैंगिक सैनिकों से भेदभाव के आरोप लगते आए हैं. 2017 में कई सैनिकों पर "सोडोमी या अभद्र गतिविधियों" के लिए कार्रवाई की गई थी, जिसे आलोचकों ने समलैंगिक सैनिकों को निशाना बनाने की कार्रवाई बताया था.

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USA | Florida | Don't say gay Bill | Protest
दक्षिण कोरिया की सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानवाधिकार संगठनों ने एलजीबीटीक्यू के लिए बड़ी जीत बताया है. तस्वीर: Ivy Ceballo/ZUMAPRESS/picture alliance

दक्षिण कोरिया की सर्वोच्च अदालत ने दो समलैंगिक सैनिकों पर सुनाए गए मिलिट्री कोर्ट के फैसले को पलट दिया है. यह केस सेना के दो अधिकारियों- एक आर्मी लेफ्टिनेंट और एक सार्जेंट से जुड़ा था. दोनों अलग-अलग यूनिट में थे. 2016 में सैन्य बेस से बाहर एक घर में दोनों ने सेक्स किया था. शारीरिक संबंध बनाते समय दोनों ही ड्यूटी पर नहीं थे.

इसे लेकर उन दोनों पर सेना के नियम तोड़ने का आरोप लगा और मुकदमा चला. निचली सैन्य अदालत ने दोनों को दोषी माना. एक को चार महीने और दूसरे को तीन महीने जेल की सजा सुनाई गई. मिलिट्री हाई कोर्ट ने भी निचली सैन्य अदालत के इस फैसले को बरकरार रखा और आरोपियों को निलंबित जेल की सजा सुनाई. दोनों आरोपी अधिकारियों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.अब सुप्रीम कोर्ट ने सैन्य अदालतों के फैसले को खारिज कर दिया है. साथ ही, आगे की कार्यवाही के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को आर्म्ड फोर्सेज के हाई कोर्ट में भी भेज दिया है.   

ताइवान की पहली एलजीबीटीक्यू काउंसलर

ऐतिहासिक फैसला

दक्षिण कोरिया की सेना में समलैंगिकों से जुड़े सख्त कानूनों के मद्देनजर यह फैसला ऐतिहासिक माना जा रहा है. यहां लागू 1962 के 'मिलिट्री क्रिमिनल एक्ट' में आर्टिकल 92-6 यौन संबंधों के स्वभाव से जुड़े कानून हैं. इसके मुताबिक, अगर कोई शख्स सेना के किसी व्यक्ति के साथ "ऐनल इंटरकोर्स या बाकी अभद्र गतिविधियां" करता है, तो उसके लिए दो साल तक की जेल का प्रावधान है. ऐसे मामलों में सेना का रवैया बेहद सख्त रहता आया है. सैनिक आपसी सहमति से सेक्स करें, सैन्य बेस से बाहर या ऑफ ड्यूटी सेक्स करें, अब तक ऐसे तमाम मामलों में भी सजा सुनाई जाती थी.

मगर 21 अप्रैल के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले फैसलों को पलट दिया. सुप्रीम कोर्ट ने 13 न्यायाधीशों के साथ फुल पैनल में इस मामले पर विमर्श किया. इसके बाद चीफ जस्टिस किम मायॉन-सू ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पुरुष सैन्यकर्मी अगर ड्यूटी से इतर के अपने निजी समय में सेना के बेस या सैन्य ढांचे के बाहर आपसी सहमति से सेक्स करते हैं, तो ऐसे मामलों में यह कानून लागू नहीं होता है.

कोर्ट ने यह भी कहा कि दोनों आरोपी सैनिकों को सजा देना उनकी यौन आजादी का उल्लंघन है.साथ ही, यह संविधान द्वारा सुनिश्चित किए गए समानता और मानवीय गरिमा के अधिकार का भी उल्लंघन है. कोर्ट ने माना कि इस केस में आरोपी सैनिकों को सजा देना खुश रहने के उनके अधिकार के भी विरुद्ध है. 

समलैंगिक अधिकारों के लिए उम्मीद

इसके अलावा कोर्ट ने "अभद्रता" की परिभाषा पर भी अहम टिप्पणी की. चीफ जस्टिस ने कहा, "अभद्रता क्या है, अभद्र व्यवहार के दायरे में क्या आता है, इससे जुड़े विचारों में समय और समाज के मुताबिक बदलाव आए हैं. एक ही लिंग के दो लोगों के बीच में यौन गतिविधि होना, उनके अपमान की वजह बने,बाकी लोग उनसे घृणा करें और ऐसे संबंध भद्र नैतिक विचारों के खिलाफ माने जाएं, ऐसे विचारों को सार्वभौमिक और नैतिक मापदंड के तौर पर मुश्किल ही स्वीकार किया जा सकता है."

अदालत ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि सेना के लोगों के बीच आपसी सहमति से बने समलैंगिक यौन संबंध अब अपराध नहीं समझे जाएं,ताजा निर्णय इस दिशा में भी अहम है. मानवाधिकार संगठनों ने कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है. संगठनों ने इसे एलजीबीटीक्यू के लिए बड़ी जीत बताया है. एमनेस्टी एशिया के शोधकर्ता बोराम यांग ने एक बयान में कहा, "संबंधित कानून मानवाधिकारों का खौफनाक उल्लंघन है. लेकिन आज के अदालती फैसले से सैन्यकर्मियों के लिए नई राह खुलनी चाहिए, ताकि वे सजा के डर बिना आजाद होकर जी सकें."

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एसएम/ओएसजे