1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जर्मनी और दक्षिण कोरिया सैन्य रहस्य क्यों साझा कर रहे हैं?

२६ मई २०२३

खुफिया सूचनाओं को साझा करने संबंधी नए समझौते के जरिए जर्मनी और दक्षिण कोरिया यूक्रेन में संघर्ष और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में तनाव के बीच अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाना चाहते हैं.

https://p.dw.com/p/4RrFK
Südkorea | Taurus Marschflugkörper
तस्वीर: South Korean Defense Ministry/Getty Images

जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स दक्षिण कोरिया में महज कुछ घंटों के लिए रुके लेकिन उनकी यह यात्रा और वहां के राष्ट्रपति यून सुक-योल के साथ हुई बातचीत में कई समझौते हुए. इन समझौतों में सबसे अहम सैन्य खुफिया जानकारियों को साझा करने और दोनों देशों के रक्षा उद्योगों के लिए सप्लाई चेन को व्यवस्थित करने संबंधी समझौते हैं.

यह द्विपक्षीय सम्मेलन तब हुआ जब शॉल्त्स जापान के हिरोशिमा शहर में हुई जी7 देशों की बैठक से वापस लौट रहे थे. दोनों कूटनीतिक घटनाएं यूक्रेन में चल रहे सुरक्षा संकट और उत्तर पूर्व एशिया में बढ़ते तनाव पर केंद्रित थीं. और जब बात एशिया की होती है तो चीन एक बार फिर सबसे महत्वपूर्ण विषय था.

विश्लेषकों का कहना है कि शॉल्त्स और यून के बीच रक्षा सौदे हाल के दिनों में कई देशों के बीच हुए इस तरह के सौदों का एक उदाहरण है जिन्हें एक साथ लेने पर चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने की एक रणनीति मालूम पड़ती है.

जर्मनी चीन पर से अपनी निर्भरता घटाने में इतना विवश क्यों है?

इन समझौतों और गठबंधन के पीछे चीन की उन इकतरफा कार्रवाइयों को देखा जा सकता है जिनके तहत वो दक्षिणी चीन सागर के विवादित द्वीपों पर कब्जा करके उनका सैन्यीकरण कर रहा है, पूर्वी चीन सागर के द्वीपों के लेकर जापान के साथ उसका सीधा टकराव और हिमालय क्षेत्र में भारत के साथ उसका संघर्ष हो रहा है.

और हाल के कुछ वर्षों में जर्मनी भारत-प्रशांत क्षेत्र में अपनी भूमिका को बढाने की कोशिश कर रहा है. 2021 में एक जर्मन युद्धपोत को इस इलाके में तैनात किया गया था और जर्मन नौसेना ने अन्य देशों की नौसेनाओं के साथ यहां कई बार अभ्यास किया है. साथ ही, हाल में लड़ाकू विमानों के युद्धाभ्यास में भी हिस्सा लिया है.

दक्षिण कोरिया-नाटो संबंध और भी मजबूत होंगे

शॉल्त्स और यून की मुलाकात सियोल में राष्ट्रपति कार्यालय में तब हुई जब जर्मन चांसलर कोरियाई प्रायद्वीप के असैन्य क्षेत्र में स्थित पनमुनजोम गांव की यात्रा करके लौटे थे. शॉल्त्स का कहना था कि कड़ी सुरक्षा वाली इस सीमा पर उत्तर कोरिया द्वारा परमाणु हथियारों और लंबी दूरी की मिसाइलों का लगातार परीक्षण यह बताता है कि यह इलाका अभी भी ‘खतरनाक स्थिति में' हैं और उत्तर कोरिया ‘इस इलाके की शांति और सुरक्षा के लिए एक खतरा बना हुआ है.'

बाद की बातचीत में दोनों नेताओं ने मिलिट्री सीक्रेट्स को साझा करने, उनकी सुरक्षा करने और सैन्य आपूर्ति शृंखला को आसान बनाने की व्यवस्था संबंधी समझौते पर सहमति जताई.

ट्रॉय यूनिवर्सिटी के सियोल कैंपस में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर डैन पिंक्स्टन ‘बीजिंग में विस्तार नीतियों' को उन राष्ट्रों के बीच मजबूत सहयोग की वजह के रूप देखते हैं जिनका चीन से संबंध नहीं हैं.

चीन से यूरोप जाने वाले रास्ते की रुकावटें

सैन्य संबंधों में नजदीकी के मुद्दे पर डीडब्ल्यू से बातचीत में पिंक्स्टन कहते हैं, "मुझे पूरी उम्मीद है कि आगे अभी और ऐसा ही देखने को मिलेगा. यह स्वाभाविक है कि दक्षिण कोरिया की सेना नैटो या अन्य उन देशों की सेनाओं के साथ संयुक्त अभ्यास में हिस्सा लें जिनकी चिंताएं एक जैसी हैं. ये अभ्यास युद्ध सामग्री, हथियार प्रणाली और अन्य सैन्य घटकों की क्षमता को सुनिश्चित करने के लिए तो महत्वपूर्ण हैं ही, यह सुनिश्चित करने के लिए भी अहम हैं कि आपूर्ति श्रृंखला की गारंटी है.”

यूक्रेन युद्ध दक्षिण कोरिया के लिए ‘गहरा सदमा'

और जब जर्मन नौसेना और वायु सेना दक्षिण कोरिया सेना के साथ सैन्य अभ्यास कर रही हैं, दक्षिण कोरिया अपनी अत्याधुनिक हथियार प्रणाली यूरोप को निर्यात कर रहा है. पिछले साल, दक्षिण कोरिया ने पोलैंड के साथ करीब 16.2 अरब डॉलर का एक बड़ा रक्षा सौदा किया था. इस सौदे में करीब एक हजार के2 मुख्य युद्धक टैंक, 648 स्वचालित हॉवित्जर र 48 एफए050 लड़ाकू विमानों की बिक्री शामिल थी.

चूंकि पोलैंड नैटो का एक सदस्य है. इसका मतलब जर्मन सैनिक युद्ध अभ्यास में हिस्सा लेंगे और ठीक उसी समय वो कोरियाई उपकरणों का मुकाबला भी करेंगे. पिंक्स्टन कहते हैं कि महत्वपूर्ण बात यह है कि जर्मनी को अपनी क्षमताओं के बारे में पता है.

भारत-प्रशांत क्षेत्र में हालांकि दक्षिण कोरिया उम्मीद कर रहा होगा कि एक अन्य यूरोपीय शक्ति का साथ उसके नजदीकी संबंध प्रतिद्वंद्वियों के प्रति उसकी क्षमता को बढ़ाएगा.

दक्षिण कोरिया के वरिष्ठ इंटेलीजेंस ऑफिसर और पूर्व डिप्लोमैट रा जोंग यिल कहते हैं, "यह स्पष्ट है कि कोरिया पश्चिमी देशों के साथ मजबूत और नजदीकी संबंध बनाना चाहता है और निश्चित तौर पर इसके पीछे यूक्रेन युद्ध के परिणाम हैं जो दक्षिण कोरिया के लिए गहरे सदमे की तरह हैं.”

भारत के साथ रक्षा सहयोग करेगा जर्मनी

वो कहते हैं, "दुनिया के इस हिस्से में निश्चित तौर पर चीन एक बड़ी चिंता है, लेकिन हमें उत्तर कोरिया और रूस पर भी कड़ी नजर रखनी होगी.”

चीन सहयोगियों का साथ देता है

जबकि दक्षिण कोरिया पश्चिमी देशों के साथ नजदीकी संबंध बना रहा है, चीन कूटनीतिक रणनीति बनाता दिख रहा है. रा कहते हैं, "हाल के महीनों में चीन मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के कई देशों तक पहुंच बना रहा है और इन देशों के साथ वो अपने संबंधों को बेहतर करने की कोशिश में है. इस तरह से दोनों ही देश अपने नए सहयोगियों की तलाश में हैं और अपने हितों को मजबूत कर रहे हैं.”

हिरोशिमा में हुए जी7 सम्मेलन की तरह चीन ने पांच मध्य एशियाई देशों- कजाखिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान के साथ शियान में खुद का एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया.

यही नहीं, हाल ही में मध्य पूर्व के देशों के बीच चीन ने शांति वार्ता में मध्यस्थ की भूमिका निभाई और सऊदी अरब और ईरान के बीच कई साल से चल रही दुश्मनी को खत्म कराने का श्रेय चीन को दिया जा रहा है. एशिया में पहले से ही अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिशों में लगे चीन से दक्षिण कोरिया का सावधान रहना स्वाभाविक है.

पिंक्स्टन कहते हैं, "उत्तर कोरिया चूंकि दक्षिण कोरिया की सीमा से लगा हुआ है इसलिए वो उसके लिए सबसे बड़ा और तात्कालिक खतरा है. लेकिन बड़ी तस्वीर यह है कि ताइवान स्ट्रेट, दक्षिणी चीन सागर, मानवाधिकार और ग्लोबल गवर्नेंस जैसे मुद्दे चीन से जुड़े हैं और निश्चित तौर पर आगे चलकर उसके लिए यही सबसे बड़ी चुनौती होगी.” (जूलियन रायल)