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महाकुंभ में गंगा की हालत सुधारने के पीछे है एक गंगा-योद्धा

१७ जनवरी २०२५

प्रयागराज में महाकुंभ से एक महीने पहले तक गंगा का बुरा हाल था. तब के मुकाबले अभी गंगा काफी बेहतर स्थिति में है और इसका श्रेय प्रयागराज के कमलेश सिंह को भी जाता है. डीडब्ल्यू हिन्दी संवाददाता ने की कमलेश सिंह से मुलाकात.

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कमलेश सिंह
कमलेश सिंह 20 साल तक सभासद रह चुके हैंतस्वीर: Ab Rauoof Ganie/DW

शाम के करीब छह बज रहे  हैं. ठंड की वजह से शाम जल्दी ढल रही है और अंधेरा होने को है. हम प्रयागराज के आलोपी बाग मोहल्ले में शहर की ऐतिहासिक ढिंगवस कोठी के पास 'स्टूडेंट केमिस्ट' नाम की दवा की दुकान की तलाश में है.

कमलेश सिंह ने हमसे यहीं पर मिलने के लिए कहा था. हमने कोठी के दरवाजे के ठीक बाहर तीन चार दुकानें जल्दी-जल्दी देखीं लेकिन हमें सिंह की दुकान नजर नहीं आई. काफी आगे पहुंच जाने के बाद जब एक अन्य दुकानदार से पूछा तो उसने कहा कि हम आगे बढ़ आए हैं और 'स्टूडेंट केमिस्ट' दुकान पीछे रह गई है.

पीछे लौट कर हमने पाया कि दुकान सही में कोठी के ठीक बाहर ही है, लेकिन इतनी छोटी है और उसमें इतनी कम रौशनी है कि हम उसे देख कर भी आगे बढ़ गए थे. अंदर से आ रही एक एलईडी बल्ब की रौशनी में हमें दुकान के काउंटर से बाहर की तरफ झांकता एक बुजुर्ग चेहरा नजर आता है.

गंगा से प्रेम ने किया मजबूर

कमलेश सिंह का व्यक्तित्व भी उनकी दुकान के जैसा ही है. कद करीब पांच फुट होगा. हल्का लंगड़ा कर चलते हैं. वेशभूषा भी इतनी सरल कि अगर आप उन्हें पहचानते ना हों तो उन्हें देख कर भी उन्हें खोजते हुए आगे निकल जाएंगे.

इस व्यक्तित्व को देख कर यह अंदाजा लगा पाना मुश्किल है कि यह व्यक्ति करीब 20 साल यहां का सभासद रह चुका है और इन्हीं की कोशिशों की बदौलत बीते कुछ महीनों में गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए इतना कुछ हुआ है, जितना कई दशकों में नहीं हुआ.

सिंह ने 2022 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में गंगा के प्रदूषण को लेकर एक याचिका दायर की थी, जिसका ऐसा असर हुआ कि जल निगम और प्रदूषण बोर्ड से लेकर जिला मजिस्ट्रेट तक सभी विभाग हिल गए.

खुद साफ करते थे नदी का कचरा

सिंह ने डीडब्ल्यू से बातचीत के दौरान बताया कि वह गंगा के साथ मां और बेटे का रिश्ता महसूस करते हैं और इसी वजह से वह 1983 से अलग अलग भूमिकाओं में गंगा की सेवा में लगे हुए हैं.

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करीब 25-30 साल जब उनसे उनके अपने ही शहर में नदी की हालत देखी नहीं गई तो उन्होंने खुद नदी में उतर कर कचरा साफ करने की मुहिम शुरू की. उस समय नदी की हालत के बारे में भावुक हो कर बताते हुए सिंह ने कहा, "हमने देखा एक दिन लोग मरा हुआ जानवर नदी में फेंक गए."

गंगा नदी में गंदगी
सिंह की याचिका पर सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यावरण विभाग ने 13 दिसंबर 2024 को जो हलफनामा दायर किया उसके मुताबिक महाकुंभ शुरू होने से एक महीना पहले तक स्थिति यह थी कि शहर के कुल 81 नालों में से 44 नाले शहर के घरों की नालियों से निकले सीवेज को सीधे गंगा में गिरा रहे थेतस्वीर: Ab Rauoof Ganie/DW

कुछ दिनों बाद उन्हें सफाई करते देख कुछ और लोग साथ आ गए. साल 2000 में उस समय के जिला मजिस्ट्रेट ने उन्हें गंगा की सफाई करते हुए देखा और वह भी उनके साथ आ गए. और इस तरह नदी की सफाई से उनका जुड़ाव बढ़ता चला गया.

सिंह आगे बताते हैं, "2022 में सरकार ने घोषणा की कि 2025 में महाकुंभ में 40 करोड़ लोग प्रयागराज में गंगा स्नान करने आएंगे. तब से मैं गहरी चिंता में डूब गया कि जिस नदी में 81 नालों का पानी सीधे गिर रहा है उसमें 40 करोड़ श्रद्धालु कैसे स्नान करेंगे और कल्पवासी कैसे उसी पाने से आचमन करेंगे."

उन्हें यहां तक आभास हुआ कि इन हालात में तो आगे चल कर कुंभ का महत्व ही खत्म हो जाएगा. उन्होंने फैसला किया कि वह हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे रह सकते हैं और तब उन्होंने यह याचिका दायर की.

44 नालों का पानी सीधे गंगा में

याचिका पर सुनवाई के दौरान ट्रिब्यूनल ने तमाम प्रशासनिक अधिकारियों और विभागों से जवाब तलब किया और जब सब के जवाब आए तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यावरण विभाग द्वारा 13 दिसंबर 2024 को दिए गए हलफनामे के मुताबिक महाकुंभ शुरू होने से बस एक महीना पहले तक स्थिति यह थी कि शहर के कुल 81 नालों में से 44 नाले शहर के घरों की नालियों से निकले सीवेज को सीधे गंगा में गिरा रहे थे.

इतना ही नहीं, राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक इन नालों से कुल 468.28 मेगा लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) सीवेज निकलता है, जबकि शहर में लगे 10 सीवेज उपचार संयंत्रों की (एसटीपी) सीवेज ट्रीट करने की कुल क्षमता 394.48 एमएलडी ही है.

वहीं 128.28 एमएलडी सीवेज ऐसा है जिसका उपचार हो ही नहीं रहा है. इसके ऊपर से प्रशासन का अनुमान था कि महाकुंभ के दौरान शहर में रोज का सीवेज उत्पादन 10 प्रतिशत और बढ़ जाएगा. प्रदूषण बोर्ड के मुताबिक नदी में सामूहिक रूप से नहाने की इजाजत देने के जो मानक हैं उनके हिसाब से पानी में मल में पाए जाने वाली बैक्टीरिया (फीकल कॉलिफोर्म) की मात्रा जितनी होनी चाहिए, प्रयागराज में गंगा में इसकी मात्रा उससे लगभग दोगुनी थी.

इसकी आदर्श मात्रा होनी चाहिए 500 एमपीएन प्रति 100 एमएल. जहां प्रयागराज में प्रवेश करने के स्थान पर गंगा में इसकी मात्रा 450 पाई गई, वहीं संगम पर यह मात्रा 610, यमुना से मिलने के बाद 780 और शहर के बीच शास्त्री पुल के पास 930 पाई गई.

आनन-फानन उठाए गए कदम

इन आंकड़ों के सामने आने तक बहुत देर हो चुकी थी. महाकुंभ सिर पर था और नदी को स्वच्छ करने के दीर्घकालिक उपाय करने का समय नहीं था. ऐसे में एनजीटी के आदेश पर सभी विभागों ने अपनी अपनी योजनाएं बनाई और कई अस्थायी उपाय किए.

सिंह बताते हैं कि इसके तहत गंगा में 400-500 किलो पॉलीएल्युमीनियम क्लोराइड (पीएसी) नाम का केमिकल डाला गया. इसे प्रदूषित पानी में डाल देने से पानी का सारा कचरा नीचे बैठ गया. फिर टिहरी बांध और कुछ बैराजों से पानी छोड़ा गया और जब वह पानी आया तो वो इस कचरे को आगे बहा ले गया.

 'स्टूडेंट केमिस्ट' नाम की दवा की दुकान में बैठते हैं कमलेश सिंह
प्रयागराज के आलोपी बाग मोहल्ले में शहर की ऐतिहासिक ढिंगवस कोठी के पास 'स्टूडेंट केमिस्ट' नाम की दवा की दुकान में बैठते हैं सिंहतस्वीर: Ab Rauoof Ganie/DW

इसके अलावा सीधे गंगा में गिरने वाले नालों में से 90 प्रतिशत को एसटीपी से जोड़ दिया गया. जो बाकी बचे उनमें जियो ट्यूब फिल्टर लगा दिए गए और कुछ नालों में अस्थायी एसटीपी लगा दिए गए. जियो ट्यूब कपड़े के ट्यूब होते हैं जिनसे हो कर जब पानी गुजरता है तो सॉलिड कचरा ट्यूब के अंदर ही रह जाता है.

उन्होंने बताया कि मेले में आने वाले करोड़ों लोगों के मल-मूत्र की सफाई के लिए भी व्यापक इंतजाम किया गया है. कई टॉयलेट लगाए गए हैं जिनके पीछे बड़े बड़े गड्ढे खोदे गए हैं. उनमें पहले पॉली लेयर बिछाया गया है, ताकि मल-मूत्र जमीन में ना जाए. गड्ढे भर जाने पर मल-मूत्र टैंकरों में भर कर एसटीपी भिजवा दिया जाता है. 

सिंह बताते हैं कि इन सब कोशिशों का असर यह हुआ कि महाकुंभ के पहले दिन जब वह नदी पर गए तो उन्होंने पाया कि पानी कम से कम देखने पर तो इतना साफ दिख रहा है कि उसमें आप अपना चेहरा देख सकते हैं.

स्थायी कदमों की जरूरत

वह बोतलों में पानी का सैंपल अपने साथ ले आए, जिसकी वह जांच कराएंगे ताकि वैज्ञानिक रूप से भी पता किया जा सके कि नदी आखिर कितनी साफ हुई है. सिंह इन अस्थायी कदमों से खुश हैं, लेकिन वह चेताते हैं कि यह स्थिति बनाए रखने के लिए स्थायी कदम उठाने की जरूरत है.

सिंह कहते हैं, "आज हमारी नदियां जो प्रदूषित हो रही हैं, उसका कारण यह है कि हम आगामी 20 साल की जनसंख्या को ध्यान में रखकर योजना नहीं बनाते हैं. यही वजह है कि एसटीपी की क्षमता धीरे धीरे कम हो जाती है, जिसकी वजह से नदियों में गंदा पानी जाने लगता है और नदियां प्रदूषित होती चली जाती हैं."

क्या भूकंप के कारण फिर बदल सकती है गंगा नदी की धारा?

वह बताते हैं कि पीएसी डालने जैसे कदम हर समय नहीं उठाए जा सकते हैं. पीएसी से इंसानों को तो कोई नुकसान नहीं होता है. लेकिन जलीय जीवों को जरूर नुकसान होता है. इसलिए उसे पानी में तभी डालना चाहिए जब पानी का कोई आकस्मिक इस्तेमाल हो.

उनका कहना है कि हमें भविष्य की जरूरत को ध्यान में रखते हुए एसटीपी बनाने चाहिए, सभी नालों को एसटीपी से जोड़ना चाहिए और एसटीपी के पानी के इस्तेमाल की भी व्यापक व्यवस्था करनी चाहिए.

सिंह का अगला लक्ष्य है यमुना की सफाई. उन्हें मध्य प्रदेश की केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना से काफी उम्मीदें हैं और वह चाहते हैं कि इस परियोजना का 25 प्रतिशत पानी यमुना को भी दिया जाए. उनका कहना है कि जिस दिन यह हो जाएगा "उस दिन हमारा संकल्प पूरा हो जाएगा."