सिंगापुर से गोटाबाया राजपक्षा पर मुकदमा चलाने की अपील
२६ जुलाई २०२२श्रीलंका में बड़े जन आंदोलन के दबाव में आकर जुलाई 2022 की शुरुआत में तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षा देश छोड़कर मालदीव भाग गए. फिर वहां से वह सिंगापुर पहुंचे. सिंगापुर से उन्होंने राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया. तब से 73 साल के गोटाबाया सिंगापुर में ही हैं. अब दक्षिण अफ्रीका से चलने वाले अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन, इंटरनेशनल ट्रुथ एंड जस्टिस प्रोजेक्ट ने सिंगापुर से श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षा को कानून के घेरे में लाने की अपील की है. राजपक्षा पर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के उल्लंघन के आरोप लगाए गए हैं.
मानवाधिकार संगठन का कहना है कि श्रीलंका में तमिल विद्रोही संगठन लिट्टे के खिलाफ 25 साल लंबे चले गृह युद्ध के आखिरी दिनों में हजारों बेगुनाह लोगों की हत्या की गई. उस वक्त गोटाबाया राजपक्षा देश के रक्षा मंत्री थे और उनके भाई महिंदा राजपक्षा राष्ट्रपति. मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि लिट्टे के खिलाफ युद्ध के आखिरी हफ्तों में श्रीलंकाई सेना ने 40,000 तमिल नागरिकों को मौत के घाट उतारा. इंटरनेशनल ट्रुथ एंड जस्टिस प्रोजेक्ट ने 63 पन्नों की शिकायत में कहा है, "हत्याएं, कत्लेआम, यातनाएं और अमानवीय व्यवहार, बलात्कार और अन्य किस्म की यौन हिंसा, आजादी का हनन, शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न और भुखमरी" जैसे मानवता के खिलाफ अपराध किए गए.
सोमवार को सिंगापुर के अटॉर्नी जनरल्स चैंबर (एजीसी) ने इंटरनेशनल ट्रुथ एंड जस्टिस प्रोजेक्ट की शिकायत रिसीव करने की पुष्टि की. एजीसी ने इससे ज्यादा जानकारी नहीं दी.
'बेगुनाहों को मारा, दोषियों को बचाया'
कभी श्रीलंका में बेहद ताकतवर रहे राजपक्षा भाइयों का कहना है कि लिट्टे को कुचलने के दौरान कोई आम नागरिक नहीं मारा गया. यह दावा दोहराने के बावजूद राजपक्षा सरकार ने बार बार अंतरराष्ट्रीय समुदाय की स्वतंत्र जांच की मांगें नहीं मानी.
दूसरी तरफ 2021 में गोटाबाया राजपक्षा ने अपने एक करीबी दुमिन्दा सिल्वा के मृत्युदंड को माफ कर दिया. दुमिंदा सिल्वा, एक पूर्व राजनेता समेत पांच लोगों की हत्या का दोषी था. बीते सालों में राजपक्षा सरकार ने जघन्य अपराधों के कई दोषियों की उम्रकैद की सजा भी माफ कर दी. इनमें सेना का एक ऐसा भी सूबेदार था, जिस पर आठ तमिलों की हत्या का दोष था, मृतकों में तीन बच्चे भी शामिल थे. इन क्षमादानों का काफी विरोध भी हुआ. श्रीलंका में मृत्युदंड की सजा है, लेकिन फांसी के मामले दुर्लभ हैं.
गोटाबाया राजपक्षा, नवंबर 2019 में श्रीलंका के राष्ट्रपति बने. उससे पहले वह रिटायर्ड आर्मी कर्नल थे और अमेरिकी नागरिक थे. गोटाबाया पर दो मुकदमे अमेरिका में कैलिफोर्निया में भी दर्ज हैं. इनमें से एक मुकदमा उन 11 लोगों ने दर्ज करवाया है, जो यातनाओं से बच गए. याचिकाकर्ताओं में सरकार विरोधी एक अखबार के एडिटर की बेटी भी हैं. आरोप है कि राजपक्षा के इशारे पर एडिटर की हत्या की गई. 2019 में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्हें राष्ट्रप्रमुखों को मिलने वाली इम्युनिटी ने बचा लिया, लेकिन अब क्या होगा?
इंटरनेशनल ट्रुथ एंड जस्टिस प्रोजेक्ट की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर यासमीन सूका कहते हैं, "ये शिकायतें बताती हैं कि मामला सिर्फ भ्रष्टाचार और आर्थिक धांधली भर का नहीं है, बल्कि ये बड़े पैमाने पर हुए बर्बर अपराधों के प्रति जवाबदेही की भी बात है."
गोटाबाया के सामने सीमित विकल्प
सिंगापुर के विदेश मंत्रालय के मुताबिक गोटाबाया राजपक्षा ने शरण की अपील नहीं की है और ना ही उन्हें शरण दी गई है. राजपक्षा प्राइवेट विजिट पर सिंगापुर में हैं. सिंगापुर की अदालतें कथित युद्ध अपराधों, जनसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध के मामलों में मुकदमा चला सकती हैं. हालांकि इसे आखिरी विकल्प की तरह अमल में लाया जाता है.
सिंगापुर आम तौर पर खुद को तटस्थ देश के रूप में पेश करने की कोशिश करता है. शुभांकार दम, ब्रिटेन के पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी में लॉ के प्रोफेसर हैं. उनकी पढ़ाई सिंगापुर में हुई है. दम कहते हैं, "किसी देश के पूर्व प्रमुख पर मुकदमा चलाने का कोई भी फैसला, सिंगापुर को अपनी विदेश नीति के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए लेना पड़ेगा."
कभी अमेरिका की नागरिकता ले चुके गोटाबाया मुकदमों की वजह से कैलफोर्निया भी वापस नहीं लौट सकते. राजपक्षा बंधुओं के कार्यकाल में चीन और श्रीलंका के रिश्ते परवान चढ़े. कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि घिरने पर गोटाबाया चीन से मदद की उम्मीद करेंगे लेकिन, गोटाबाया की मदद कर चीन श्रीलंका में अपनी छवि और खराब कर सकता है. ऐसा हुआ तो उसका अरबों डॉलर का निवेश बर्बाद हो सकता है.
महिंदा फंसे श्रीलंका में
उम्र में गोटाबाया से 3 साल बड़े महिंदा राजपक्षा अभी श्रीलंका में ही हैं. भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों के कारण, उनके विदेश जाने पर पाबंदी लगाई जा चुकी है. 2005 से 2015 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे महिंदा राजपक्षा 2018 में फिर प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए. राजपक्षा परिवार पर श्रीलंका की राजनीति और प्रशासन में सभी अहम पदों पर कब्जा करने के आरोप भी लगते हैं. जनांदोलनों के बीच गोटाबाया तो भागने में सफल रहे लेकिन पूर्व वित्त मंत्री बासिल राजपक्षा को श्रीलंकाई अधिकारियों ने एयरपोर्ट पर ही रोक दिया.
ओएसजे/एनआर (रॉयटर्स, एएफपी)