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विज्ञानऑस्ट्रेलिया

खाने की बर्बादी बचाने के लिए एक डॉलर की मशीन

विवेक कुमार
१४ जुलाई २०२२

क्या 1 डॉलर कीमत की एक डिवाइस 10 लाख डॉलर की समस्या हल करने में मदद कर सकती है? ऑस्ट्रेलिया में काम करने वाले भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ. सिवम कृष के मुताबिक अब ऐसा संभव है.

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गोमाइक्रो डिवाइस
तस्वीर: Flinders University, Adelaide, Australia

गोमाइक्रो नामक कंपनी के संस्थापक डॉ. कृष ने एक ऐसी डिवाइस बनाई है जो ऐप के जरिए फोन से जुड़कर बता सकती है कि कौन सा ताजा खाना खराब होने वाला है. इसी हफ्ते ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में हुई एक फोरम में उन्होंने यह डिवाइस पेश की.

डॉ. कृष का मानना है कि यह खोज कृषि उद्योग के लिए बड़ी बचत करने में मददगार साबित हो सकती है. उन्होंने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित यह डिवाइस और ऐप अत्याधुनिक इमेजिंग तकनीक पर काम करती है. उन्होंने कहा, "हम फलों और सब्जियों के पके होने का 86-90 प्रतिशत तक की शुद्धता के साथ पता लगा सकते हैं."

मोबाइल के साथ आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस
मोबाइल के साथ आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसतस्वीर: Flinders University, Adelaide, Australia

डॉ. कृष के मुताबिक कृषि उद्योग में उत्पादों का खराब हो जाना एक बड़ी समस्या है और इस समस्या का समाधान एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि लगभग 30 प्रतिशत उत्पादन खराब हो जाता है. उन्होंने कहा, "हम देख सकते हैं कि खराबी का पता लगाने वाली एक सस्ती और आसानी से इधर-उधर ले जा सकने लायक युक्ति के लिए बाजार में बहुत मजबूत व्यवसायिक संभावनाएं हैं."

कैसे काम करती है डिवाइस?

गोमाइक्रो कंपनी की बनाई यह डिवाइस आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित है. डॉ. कृष बताते हैं कि उनकी टीम ने अलग-अलग सब्जियों की हर रोज सौ तस्वीरें ली और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को ट्रेनिंग देने वाला एक प्रोग्राम तैयार किया. आम तौर पर इस तरह का प्रोग्राम तैयार करने के लिए हजारों तस्वीरों की जरूरत होती है और फिर भी सटीक नतीजे नहीं मिल पाते हैं.

माइक्रोस्कोप को आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से जोड़कर यह डिवाइस-ऐप फल और सब्जियों के खराब होने की जानकारी देती है. इस डिवाइस का पेटेंट अभी दर्ज नहीं हुआ है. कंपनी का दावा है कि यह डिवाइस अत्याधिक गुणवत्ता वाली तस्वीरें लेती है जिनके कारण नतीजों की सटीकता बढ़ जाती है और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को सीखने के लिए कम तस्वीरों की जरूरत पड़ती है.

कंपनी फिलहाल किसानों और कृषि-अर्थशास्त्रियों को कीटाणु, पत्तों की बीमारियों और खाने की गुणवत्ता का पता लगाने में मदद करने पर ध्यान दे रही है. डॉ. कृष कहते हैं, "कोई भी किसान जिसके पास बस एक फोन है अब किसी कृषि वैज्ञानिक की तरह पता लगा सकता है. उसे बस स्पॉटचेक माइक्रोस्कोप को अपने फोन से जोड़ना है. यह एक महत्वपूर्ण खोज है क्योंकि माइक्रोस्कोपिक जानकारियां कृषि क्षेत्र से संबंधित बहुत विस्तृत सूचनाएं उपलब्ध करवा सकती हैं."

खाना बर्बाद होने की समस्या

खाने का खराब हो जाना या व्यर्थ हो जाना दुनिया की बहुत बड़ी समस्या है. संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनईपी का कहना है कि हर साल जितने फल और सब्जियां पैदा होते हैं उनका लगभग आधा हिस्सा खराब चला जाता है. यूएनईपी के एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया का एक तिहाई खाना यानी लगभग 1.3 अरब टन खाने लायक उत्पाद या तो खराब हो जाता है या व्यर्थ चला जाता है.

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यह रिपोर्ट कहती है कि सिर्फ विकसित देशों में लगभग 680 अरब डॉलर का खाना व्यर्थ होता है जबकि विकासशील देशों में यह मात्रा 310 अरब डॉलर के बराबर है. खराब होने वाले उत्पादों में सबसे ज्यादा मात्रा फल और सब्जियों की ही होती है. इसके अलावा 30 फीसदी दालें, लगभग 40-50 फीसदी जड़ें, फल और सब्जियां व 20 प्रतिशत तैलीय फसलें खराब होती हैं.

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