फिर जिंदा किया जाएगा विलुप्त हुआ तस्मानियन टाइगर
१७ अगस्त २०२२माना जाता है कि तस्मानियन टाइगर, जिसका वैज्ञानिक नाम थाइलासिन है, 2,000 साल पहले ऑस्ट्रेलिया की मुख्य भूमि पर पाया जाता था. इस प्रजाति का एकमात्र बचा जीव 1936 में ऑस्ट्रेलिया के द्वीपीय राज्य तस्मानिया की राजधानी होबार्ट के एक चिड़ियाघर में मर गया था. 1980 में इस प्रजाति को विलुप्त घोषित कर दिया गया था
अब मेलबर्न यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक ऐंड्र्यू पास्क और उनकी टीम इस टाइगर को फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रही है. पास्क की थाइलासfन इंटिग्रेटेड जेनेटिक रीस्टोरेशन रीसर्च (TIGRR) लैब ने अमेरिका स्थित कोलोसल बायोसाइंसेज नाम की एक कंपनी के साथ काम करने पर समझौता किया है. पास्क कहते हैं कि यह समझौता इंसान को "ऑस्ट्रेलिया के खतरे में पड़े जीवों के संरक्षण और विलुप्त हो चुके जीवों को वापस लाने" की दिशा में बड़ा कदम उठाने में मददगार होगा.
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कोलोसल जीन-एडिटिंग तकनीकों पर काम करने वाली संस्था है. उसकी तकनीकों का इस्तेमाल कर ऑस्ट्रेलियाई लैब में पहले जारी तस्मानियन टाइगर को दोबारा जिंदा करने का काम और तेज किया जा सकेगा.
एक बयान में पास्क ने कहा, "इस सहयोग के जरिए, मेरा मानना है कि दस साल में हम थाइलासिन का जीवित शावक देख सकते हैं, जिसे हमने एक सदी पहले शिकार करके खत्म कर दिया था. तकनीक हमारे पास है."
कैसे जन्मेगा शावक?
डॉ. पास्क लंबे समय से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. उन्होंने चिड़ियाघर में संभालकर रखे गए थाइलासिन के अवशेषों में से डीएनए लेकर उसका जीनोम पहले ही तैयार कर लिया है. कोलोसल से जीन एडिटिंग तकनीक लेकर उनका अगल कदम तैयार जीनोम को जिंदा जीव में बदलना होगा.
अमेरिका के डैलस स्थित कोलोसल भी अन्य कई विलुप्त जीवों को जीन एडिटिंग के जरिए जिंदा करने पर काम कर रही है, जिनमें महाकाय मैमथ शामिल है. कंपनी के सीईओ बेन लाम ने एक बयान जारी कर रहा, "हम मौजूदा प्रजातियों से डीएनए लेते हैं, जो विलुप्त जीवों के सबसे नजदीकी रिश्तेदार हैं. हम जीनोम की तुलना करते हैं ताकि जेनेटिक अंतर को अच्छे से समझा जा सके."
डॉ. पास्क ने बताया कि जब यह समझ तैयार हो जाएगी तो "हम कोशिकाओं के भीतर जाकर एडिटिंग यानी बदलाव करना शुरू करेंगे." उसके बाद आईवीएफ जैसी तकनीकों के जरिए बच्चों को जन्म दिया जा सकता है. उन्होंने बताया, "थाइलासिन चावल के दाने जितने बच्चों को जन्म देते हैं तो उनके भ्रूण को टेस्ट ट्यूब में तैयार करना ज्यादा बड़ी चुनौती नहीं है."
क्या यह सही है?
विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इस काम में सफलता से अन्य विलुप्त और विलुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण का रास्ता खुल सकता है. इनमें ऑस्ट्रेलिया के कोआला जैसे कई जीव शामिल हैं जिन पर खत्म हो जाने का खतरा मंडरा रहा है. इसलिए वैज्ञानिक इन जीवों के डीएनए जमा कर एक जीन बैंक भी बना रहे हैं.
हालांकि डॉ. पास्क के प्रोजेक्ट की आलोचना भी होती रही है. आलोचक आरोप लगाते हैं कि वे कुदरत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. इस बारे में डॉ. पास्क ने ऑस्ट्रेलियाई समाचार चैनल एबीसी को बताया, "जब लोग कहते हैं कि मैं ईश्वर बनने की कोशिश कर रहा हूं तो मैं कहता हूं कि ऐसा तो हम हमेशा करते हैं. जब हमने थाइलासिन को खत्म कर दिया था, तब भी तो हम ईश्वर जैसा ही काम कर रहे थे."
रिपोर्टः विवेक कुमार (डीपीए)