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चीनी वैज्ञानिकों ने बनाया बंदर का क्लोन

१९ जनवरी २०२४

चीन के वैज्ञानिकों ने पहली बार एक बंदर का क्लोन तैयार किया है. इस बार क्लोनिंग की नई तकनीक इस्तेमाल की गई.

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बंदर का क्लोन तैयार
मुश्किल है बंदर की क्लोनिंगतस्वीर: Marijan Murat/dpa/picture alliance

इस हफ्ते चीन के वैज्ञानिकों ने ऐलान किया कि उन्होंने रीसस मंकी का क्लोन तैयार कर लिया है. दो साल के इस बंदर का नाम रेट्रो है. रेट्रो को तैयार करने के लिए उस तकनीक में बदलाव किए गए जिससे डॉली नाम की भेड़ का क्लोन बनाया गया था.

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस तकनीक के सफल होने से उन्हें रिसर्च में बंदरों के इस्तेमाल में लाभ मिलेगा. बंदरों को क्लोन करना बहुत मुश्किल माना जाता है इसलिए चीनी वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि को काफी बड़ा माना जा रहा है.

वैज्ञानिकों को बरसों तक मिली विफलताओं के बाद यह सफलता मिली है. उन्होंने भ्रूण को क्लोन की गई कोशिकाओं से बदल दिया. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि नई तकनीक से वे एकदम समरूप रीसस मंकी बना पाएंगे जो विज्ञान में शोध के काम आएंगे.

लेकिन दुनिया के अन्य वैज्ञानिकों का कहना है कि इस नए तरीके की सफलता की दर बहुत कम है. साथ ही उन्होंने चीनी वैज्ञानिकों के प्रयोग में नैतिकता पर भी सवाल उठाए हैं.

मुश्किल है बंदर की क्लोनिंग

1996 में वैज्ञानिक सबसे पहले किसी जानवर का क्लोन बनाने में कामयाब हुए थे जब डॉली नामक एक भेड़ का क्लोन बनाया गया था. सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर (SCNT) नाम की तकनीक से डॉली का क्लोन बनाया गया था. तब से कुत्ते, बिल्ली, सूअर और गाय समेत 20 से ज्यादा जानवरों के क्लोन बनाए जा चुके हैं. भारत में 2009 में एक भैंस का क्लोन बनाया गया था.

लेकिन बंदर का क्लोन बनाने में वैज्ञानिकों को अब तक कामयाबी नहीं मिल पाई थी. इससे पहले 2018 में चीन में ही मैकाकेस बंदरों की प्रजाति के दो जुड़वां बंदरों हुआ हुआ और जोंग जोंग के क्लोन बनाए गए थे.

उसके लिए चाइनीज अकैडमी ऑफ साइंसेज इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंस के शोधकर्ताओं ने SCNT तकनीक का ही इस्तेमाल किया था. लेकिन इंस्टिट्यूट के कियांग सन को मिली नई कामयाबी में दो फीसदी से भी कम कोशिशों के बाद क्लोन का जन्म संभव हो गया.

विफलताओं का अध्ययन

इस बारे में नेचर कम्यूनिकेशंस नामक पत्रिका में शोध प्रकाशित हुआ है. मुख्य शोधकर्ता कियांग सन ने एएफपी को बताया कि अपने शोध के लिए उनके दल ने अब तक हुई कोशिशों का बहुत गहन अध्ययन किया था और समझने का प्रयास किया कि रीसस मंकी की क्लोनिंग में सफलता क्यों नहीं मिल रही.

एक बार पहले भी इस बंदर के क्लोन का जन्म हुआ था. 35 भ्रूणों में से एक अकेला बंदर जन्मा था लेकिन उसकी एक ही दिन में मौत हो गई थी. कियांग बताते हैं कि सबसे बड़ी समस्याओं में से एक यह थी कि क्लोन किए गए भ्रूण के प्लेसेंटा में गड़बड़ियां दिख रही थीं.

इसलिए शोधकर्ताओं ने उन कोशिकाओं को ही बदल दिया जो बाद में प्लेसेंटा बनती हैं. ट्रोफोब्लास्ट नाम की ये कोशिकाएं एक स्वस्थ बंदर से ली गईं. ट्रोफोब्लास्ट कोशिकाएं भ्रूण के विकास के लिए पोषक तत्व सप्लाई करती हैं. ये पोषक तत्व ही भ्रूण को ऑक्सीजन और अन्य जरूरी तत्व उपलब्ध कराते हैं.

कियांग बताते हैं, "इस तकनीक ने SCNT के जरिए क्लोनिंग की दर में बहुत सुधार किया और रेट्रो का जन्म हुआ.”

नैतिकता का सवाल

इस शोध में शामिल नहीं रहे स्पेनिश नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी के लुइस मोंटोलियू कहते हैं कि 113 भ्रूणों में से सिर्फ एक बचा है, यानी सफलता की दर एक फीसदी से भी कम है. साथ ही उन्होंने नैतिकता का भी सवाल उठाया. वह कहते हैं कि अगर कभी इंसान का क्लोन बनाया गया तो उसके लिए पहले बंदरों की अन्य प्राजियों के क्लोन बनाने होंगे.

मोंटोलियू कहते हैं, "इन कोशिशों में सफलता की कम दर ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि इंसान की क्लोनिंग ना सिर्फ गैरजरूरी और विवादित है बल्कि अगर इसकी कोशिश भी की गई तो यह बेहद कठिन होगा.”

कियांग खुद भी इंसान की क्लोनिंग के समर्थक नहीं हैं. उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह अस्वीकार्य है.

वीके/एए (एएफपी)