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शिक्षाएशिया

नीट-पीजी दाखिलों पर गतिरोध खत्म

चारु कार्तिकेय
७ जनवरी २०२२

सुप्रीम कोर्ट ने 27 प्रतिशत ओबीसी कोटा और 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटा के साथ नीट-पीजी दाखिलों को हरी झंडी दिखा दी है. हालांकि ईडब्ल्यूएस कोटा पर सुनवाई जारी रहेगी.

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Indien Oberster Gerichtshof in Neu Dehli
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo

अदालत के आदेश के बाद अब 2021 के लिए नीट-पीजी में दाखिले के लिए काउंसलिंग की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की पीठ के आदेश के मुताबिक राज्य सरकारों के मेडिकल कॉलेजों में भी अखिल भारतीय कोटा की सीटों पर काउंसलिंगओबीसी छात्रों के लिए 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस छात्रों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण के साथ होगी.

ओबीसी कोटा पर अदालत का यह अंतिम फैसला है. ईडब्ल्यूएस कोटा पर सुनाई जारी रहेगी. अदालत ने कहा कि इस समय ईडब्ल्यूएस कोटा के लिए सरकार द्वारा तय की गई आठ लाख रुपए सालाना आय की योग्यता को ही माना जाएगा.

दाखिले का रास्ता खुला

हालांकि उस पर अलग से मार्च में सुनवाई होगी और उसके बाद जो भी फैसला आएगा उसके हिसाब से आगे के दाखिलों में परिवर्तन लाए जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट में इन दोनों कोटा के तहत आरक्षण को चुनौती दी गई थी.

इस चुनौती की वजह से काउंसलिंग की प्रक्रिया रुक गई थी जिसके विरोध में देश भर में हजारों रेजिडेंट डॉक्टर पिछले कई दिनों से विरोध कर रहे थे. हाल ही में ये डॉक्टर हड़ताल पर भी चले गए थे जिसकी वजह से कई अस्पतालों का काम बाधित हुआ था.

अदालत के फैसले का अधिकांश रेजिडेंट डॉक्टरों ने स्वागत किया है. इस फैसले से करीब 50 हजारों डॉक्टरों के पीजी में दाखिले का रास्ता खुल गया है. पीजी में डॉक्टर आगे की पढ़ाई के साथ अस्पतालों में काम भी करते हैं. इस वजह से अस्पतालों ने भी इस फैसले से राहत की सांस ली है.

ईडब्ल्यूएस कोटा पर विवाद जारी

लेकिन ईडब्ल्यूएस कोटा का मामला वहीं का वहीं है. याचिकाकर्ताओं ने आठ लाख आय की योग्यता का विरोध किया था. अदालत ने भी सरकार से यह बताने के लिए कहा था कि आखिर वो इस आंकड़े तक कैसे पहुंची.

इसके बाद सरकार ने इस मामले पर एक तीन सदस्यीय समिति बनाई. समिति में पूर्व वित्त सचिव अजय भूषण पांडे, आईसीएसएसआर के सदस्य सचिव वी के मल्होत्रा और केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल थे.

समिति ने 31 दिसंबर, 2021 को अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें उसने आठ लाख की सीमा को सही ठहराया. याचिकाकर्ता चाह रहे थे कि यह सीमा 2.5 लाख पर ला दी जाए. इस आय तक की सीमा में आने वाले लोगों को आय कर नहीं देना होता है.

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