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हैरान करने वाले नहीं हैं पूर्वोत्तर के चुनावी नतीजे

प्रभाकर मणि तिवारी
२ मार्च २०२३

त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय के चुनाव नतीजे कांग्रेस के लिए निराशाजनक हैं. लेकिन इनमें बीजेपी की कमजोरी भी छुपी है.

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त्रिपुरा में चुनाव
तस्वीर: Subrata Goswami/DW

असम को छोड़ दें तो पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों के विधानसभा चुनावों को इससे पहले कभी मुख्यधारा में इतनी सुर्खियां नहीं मिली थीं. बीते महीने त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में हुए विधानसभा चुनाव कई वजहों से अहम बन गए थे. त्रिपुरा में पांच साल से सत्ता में रही बीजेपी के सामने इस बार कांग्रेस और वामपंथी दलों के बीच हुए गठबंधन और क्षेत्रीय पार्टी टिपरा मोथा के उभार से कड़ी चुनौती थी. नागालैंड में कोई तीन दशक से जारी शांति प्रक्रिया किसी मुकाम तक नहीं पहुंच सकी थी और कभी इन तीनों राज्यों पर लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस अपने वजूद के लिए जूझ रही थी.

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इन तीनों राज्यों के नतीजे ठीक वैसे ही रहे हैं जैसा अनुमान लगाया जा रहा था. त्रिपुरा में बीजेपी सत्ता में वापसी कर रही है, राज्य के वोटरों ने वाम-कांग्रेस गठबंधन का समर्थन नहीं किया है और टिपरा मोथा ने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन किया है. वह किंगमेकर तो नही बन सकी. लेकिन राजनीति में उसने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा दी है. नागालैंड और मेघालय में लोगों ने सत्तारूढ़ दल पर ही भरोसा जताया है. मेघालय में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) को अपने बूते भले बहुमत नहीं मिल सका है. लेकिन सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के बाद उसकी सत्ता में वापसी करीब तय है. उधर, नागालैंड ने पहली बार एक महिला विधायक को चुन कर इतिहास रच दिया है.

त्रिपुरा में कई सीटें हार गई बीजेपी
त्रिपुरा में कई सीटें हार गई बीजेपीतस्वीर: Altaf Qadri/AA/picture alliance

त्रिपुरा

पूर्वोत्तर के तीनों राज्यों में सबकी निगाहें बांग्लाभाषी बहुल त्रिपुरा पर ही टिकी थी. पांच साल पहले बीजेपी ने लंबे अरसे तक यहां राज करने वाली सीपीएम को बाहर का रास्ता दिखा कर सत्ता हासिल की थी. लेकिन तब उसकी कई वजहें थीं. प्रतिष्ठान-विरोधी लहर, राज्य में बढ़ती घुसपैठ और वामपंथी नेताओं और कार्यकर्ताओं पर भ्रष्टाचार और अत्याचार के आरोपों ने बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभाई थी. लेकिन अबकी विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए नाक और साख का सवाल बन गया था. उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं पर भी वही आरोप लग रहे थे जो पहले सीपीएम के लोगों पर लगे थे. तमाम आरोपों के कारण ही साल भर पहले पार्टी को अचानक अपना मुख्यमंत्री भी बदलना पड़ा था. पिछली बार उसने इंडीजीनस पीपुल्स फ्रंट आफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. लेकिन बाद में उसके साथ मतभेद उभरे. दूसरी ओर, शाही घराने के प्रद्योत माणिक्य देबबर्मन ने टिपरा मोथा नामक क्षेत्रीय पार्टी का गठन कर ग्रेटर टिपरालैंड की मांग उठाते हुए आदिवासी बहुल बीस विधानसभा क्षेत्रों में अपनी मजबूत पैठ बना ली. यह कहना ज्यादा सही होगा कि उसने आईपीएफटी के पैरों तले की जमीन खींच ली. आईपीएफटी के तमाम विधायक भी टिपरा मोथा में शामिल हो गए थे.

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टिपरा मोथा चुनावी खेल बिगाड़ सकता है, इसी आशंका के कारण बीजेपी और कांग्रेस-वाम गठबंधन ने आखिर तक उसे अपने पाले में खींचने का प्रयास किया. लेकिन प्रद्योत के ग्रेटर टिपरालैंड की मांग पर लिखित आश्वासन मांगने के कारण तालमेल नहीं हो सका. टिपरा मोथा ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए बीजेपी और विपक्षी गठबंधन दोनों को नुकसान पहुंचाया है.

कांग्रेस और वाममोर्चा के बीच तालमेल ने भी बीजेपी की चिंता बढ़ा दी थी. लेकिन नतीजों से साफ है कि वाममोर्चा के वोट तो कांग्रेस को ट्रांसफर हुए हैं, लेकिन कांग्रेस के वोट वाममोर्चा उम्मीदवारों को नहीं मिले हैं. कांग्रेस के ज्यादातर वोटरों ने पिछली बार की तरह इस बार भी बीजेपी का ही समर्थन किया है.

मुख्यमंत्री माणिक साहा कहते हैं, "हम और अधिक सीटों की उम्मीद कर रहे थे. चुनाव के बाद विश्लेषण करेंगे कि आखिर ऐसा क्यों नहीं हुआ." दूसरी ओर, सीपीएम ने कहा है कि टिपरा मोथा के कारण ही गठबंधन को शिकस्त का सामना करना पड़ा है. यह गठबंधन पांच साल बाद दोबारा सत्ता हासिल करने की उम्मीद कर रहा था.

कोनराड संगमा के नेतृत्व में एनपीपी का ठीक ठाक प्रदर्शन
कोनराड संगमा के नेतृत्व में एनपीपी का ठीक ठाक प्रदर्शनतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

मेघालय

पूरब का स्कॉटलैंड कहे जाने वाले मेघालय में पांच साल से कोनराड संगमा के नेतृत्व में एनपीपी, भाजपा और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों की गठबंधन सरकार थी. वर्ष 2018 में बीजेपी ने राज्य में 47 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद महज दो सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन पार्टी ने इस बार एनपीपी से नाता तोड़ कर तमाम सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 21 सीटों के साथ राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी. लेकिन नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने अपनी 20 सीटों को साथ बीजेपी व दूसरे सहयोगियों के समर्थन से सरकार बना ली थी. बीते साल नवंबर में पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा के नेतृत्व में कांग्रेस के 12 विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे. इससे तृणमूल रातोंरात राज्य की प्रमुख विपक्ष पार्टी बन गई थी.

यहां बीते कुछ समय से किसी भी पार्टी को अपने बूते बहुमत नहीं मिला है. इस बार भी वैसा ही हुआ है. एनपीपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है और उसने एक बार फिर बीजेपी और क्षेत्रीय दलों के साथ मिल कर सरकार बनाने का संकेत दिया है.

नागालैंड में परंपरागत झूम खेती
नागालैंड में परंपरागत झूम खेतीतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

नागालैंड

नागालैंड में पिछली बार नेफ्यू रियो के नेतृत्व वाली नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) गठबंधन सरकार में शामिल बीजेपी ने इस बार भी अपनी जमीनी ताकत के लिहाज से गठबंधन को बरकरार रखा था. तालमेल के तहत भगवा पार्टी ने यहां महज 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. पार्टी ने यहां भी पूरी ताकत झोंकी थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दीमापुर में चुनावी रैली की थी. इसके अलावा पार्टी के कई शीर्ष नेता चुनाव प्रचार के लिए राज्य के दौरे पर आए थे. एनडीपीपी का गठन वर्ष 2017 में हुआ था. वर्ष 2018 के चुनाव में उसने 18 और भाजपा ने 12 सीटें जीती थीं. दोनों दलों ने चुनाव से पहले गठबंधन किया था. एनडीपीपी, बीजेपी और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) यहां सरकार में शामिल हैं. राज्य में कांग्रेस ने  23 और नागालैंड पीपुल्स फ्रंट ( एनपीएफ) 22 सीटों पर चुनाव लड़ा था.

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नागालैंड के वोटरों ने अबकी एक महिला विधायक को चुन कर इतिहास रच दिया है. दीमापुर सीट से एनडीपीपी के टिकट पर जीतने वाली हेकानी जखालु राज्य की पहली महिला विधायक बन गई हैं.

राजनीतिक विश्लेषक सुप्रतिम घोष कहते हैं, "त्रिपुरा समेत तीनों राज्यों के चुनावी नतीजे प्रत्याशित ही रहे हैं. त्रिपुरा में अपनी सरकार बचाना ही इस चुनाव में बीजेपी की सबसे बड़ी उपलब्धि है."