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रेडियोधर्मी विकिरण से बचने में आयोडीन कितना मददगार?

१२ मार्च २०२२

यूक्रेन के एटमी ठिकाने पर रूसी हमले के बाद रेडियोधर्मी विकिरण फैलने का डर बढ़ गया है.विकिरण से लड़ने में आयोडिन कारगर तो है लेकिन यह हमेशा मददगार नहीं होता. बल्कि कई बार तो यह खतरनाक हो सकता है.

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चेरनोबिल परमाणु दुर्घटना में रेडियोधर्मी आयोडीन हवा में जाने वाले पहले पदार्थों में से एक थातस्वीर: Viktor Drachev/TASS/imago images

जब एटमी ऊर्जा संयंत्र में कोई दुर्घटना होती है- कोई विस्फोट या कोई रिसाव या युद्ध के दौरान कोई क्षति- तो उस स्थिति में रेडियोधर्मी आयोडीन, हवा में मिलने वाले सबसे पहले पदार्थों में से एक होती है.

अगर वो रेडियोधर्मी आयोडीन शरीर में चला जाए तो वो थाइरॉयड कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाकर कैंसर पैदा कर सकता है. आप विकिरण  को अपनी सांस में अंदर खींच सकते हैं या त्वचा के जरिए यह आपके शरीर में दाखिल हो सकती है. आप इसे ना देख सकते हैं, ना सूंघ सकते हैं, ना इसमें कोई स्वाद होता है. यह एक अदृश्य खतरा है.

विकिरण  की अत्यधिक चपेट में आ जाने के सबसे बुरे प्रभावों में से कुछ हैं- थाइरॉयड, ट्यूमर, एक्यूट ल्युकेमिया (रक्त कैंसर), आंखों की बीमारी और मनोवैज्ञानिक और मानसिक विकार. विकिरण  आने वाली नस्लों के लिए आपकी जीन तक को नुकसान पहुंचा सकता है. छोटी सी अवधि के दरमियान विकिरण  की ज्यादा मात्रा की जद में आ जाने जैसे कुछ अतिशय मामलो में तो कुछ रोज या कुछ ही घंटों में मौत हो सकती है.

विकिरण से बचने के लिए आयोडीन लेना सही है?

हमारा शरीर खुदबखुद आयोडीन नहीं पैदा करता है. लेकिन हमें उसकी जरूरत तो होती ही है लिहाजा हम अपने भोजन या खाद्य सप्लीमेंटो के जरिए आयोडीन लेते हैं.

आप आयोडीन को गोली के रूप में ले सकते हैं. आयोडीन हमारे शरीर की थाइरॉयड ग्रंथि में जमा हो जाती है जहां वो हॉर्मोन बनाती है. उनकी बदौलत हमारा शरीर विभिन्न कार्यों को अंजाम देता है और मस्तिष्क का विकास होता है. थाइरॉयड, आयोडीन के साथ संतृप्त या गीली हो सकती है और ऐसा होने पर वो उसे और जमा नहीं करेगी. 

कहने का मतलब ये है कि अगर आप कथित रूप से "अच्छी” आयोडीन पर्याप्त मात्रा में ग्रहण कर लेते हैं तो थाइराइड में किसी "बुरी” या रेडियोएक्टिव आयोडीन के लिए कोई जगह नहीं बचेगी. वो रेडियोएक्टिव आयोडीन फिर मजे से शरीर में उतर आएगी और गुर्दों के जरिए बाहर निकल जाएगी. 

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एहतियान आयोडिन भी नुकसान कर सकता है

एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र में रिसाव या हमले के बाद विकिरण  की चपेट में आने से बचने के लिए एहतियाती उपाय के तौर पर आयोडीन लेने का कोई मतलब नहीं हैं.थाइरॉयड सिर्फ थोड़े से समय के लिए ही आयोडीन को  जमा रख पाती है और बहुत ज्यादा आयोडीन लेने से जो सही मात्रा गई भी होगी वो भी खतरनाक साबित हो सकती है.

उदाहरण के लिए जर्मनी में बहुत से लोग, ओवरएक्टिव (अतिसक्रिय) थाइरॉयड से पीड़ित हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञ कोई भी आयोडीन सप्लीमेंट ना लेने की सलाह देते हैं बशर्ते वैसा करना हर हाल में जरूरी ना हो जाए.

जर्मनी के पर्यावरण, प्राकृतिक संरक्षण, एटमी सुरक्षा और उपभोक्ता सुरक्षा के संघीय मंत्रालय का कहना है कि 100 किलोमीटर के दायरे में अगर किसी एटमी संयंत्र में हादसा हो जाए तो वहां आयोडीन सप्लीमेंट मददगार  हो सकते हैं. लेकिन आयोडीन तभी कारगर रहती है जब उसे जरूरत पड़ने पर लिया जाए. विशेषज्ञों का कहना है कि आयोडीन "ब्लॉक” तभी काम आ सकता है जब अच्छी आयोडीन रेडियोएक्टिव आयोडीन के संपर्क में आने से ठीक पहले या उस दौरान ले ली गई हो.

शरीर में सीजियमस्ट्रोनटियम की खपत

आयोडीन 131 और आयोडीन 133 नाम के रेडियोएक्टिव आइसोटोप, थाइरॉयड कैंसर के कारण हैं. ये दोनो आइसोटोप ही किसी एटमी ऊर्जा संयंत्र में रिसाव या विस्फोट से निकलने वाले विकिरण  से सबसे ज्यादा जुड़े होते हैं.

स्ट्रोनटियम 90 और सेल्सियम 137 नाम के रेडियोएक्टिव आइसोटोप भी कैंसर पैदा करते हैं. वे अस्थि ऊतक में जमा हो जाते हैं और कैंसर का खतरा बढ़ा देते हैं. हमारा शरीर इन आइसोटोपों को गफलत में कैल्सियम समझ बैठता है और मांसपेशियों और अस्थियों की शारीरिक क्रियाओं में उन्हें सोखकर इस्तेमाल कर सकता है. अगर ऐसा हो जाए तो अस्थि मज्जा बेकाबू हो सकती है.

अस्थि मज्जा नयी रक्त कोशिकाओं के उत्पादन के लिए जिम्मेदार होती है. वो ऐसा ना कर पाए तो रक्त कैंसर यानी ल्युकेमिया हो सकता है जो अक्सर प्राणघातक होता है.

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हमारा शरीर आयोडीन का उत्पादन नहीं करता है, लेकिन हमें इसकी आवश्यकता होती है, इसलिए हमें इसका सेवन भोजन के माध्यम से करना पड़ता हैतस्वीर: Fabian Sommer/dpa/picture alliance

आनुवंशिक सामग्री को नुकसान

रेडियोएक्टिव विकिरण से शरीर की आनुवंशिक सामग्री भी क्षतिग्रस्त हो जाती है. दूसरे विश्व युद्ध के आखिरी दिनों में जापानी शहरों, नागासाकी और हिरोशिमा में एटमी बम गिराए जाने के बाद भी ऐसा ही कुछ हुआ था.युद्ध के बाद, बच्चे शारीरिक विकृतियों के साथ पैदा हुए थे.

अप्रैल 1986 में यूक्रेन में चेर्नोबिल परमाणु ठिकाने पर हुए हादसे के बाद भी दीर्घ अवधि के प्रभाव देखे गए थे. उस तबाही के 20 साल बाद, ज्यादातर प्रभावित इलाकों में कैंसर की दर 40 फीसदी बढ़ गई थी. रिएक्टर की सफाई में मदद करने के परिणामस्वरूप करीब 25,000 रूसियों की मौत हो गई थी.

रेडियोधर्मी विकिरण का कमोबेश कोई इलाज नहीं

विकिरण  का कोई उपचार शायद ही होगा. ये बात निर्णायक हो जाती है कि विकिरण  से व्यक्ति सिर्फ "संक्रमित” हुआ है या वो विकिरण उसके शरीर में "समाविष्ट” हो चुका है.

संक्रमण की स्थिति में, रेडियोएक्टिव कचरा शरीर की बाहरी सतह पर ही जमा हो जाता है. यह बात हास्यास्पद लग सकती है लेकिन वैसे मामलों में लोगों को पहला काम ये करना चाहिए कि रेडियोएक्टिव कचरे को सामान्य साबुन और पानी से अच्छी तरह धो लें.

"रेडियोएक्टिव समावेश” कहीं ज्यादा खतरनाक है. एकबारगी रेडियोएक्टिव पदार्थ शरीर में दाखिल हो जाए तो उसे दोबारा बाहर निकाल पाना लगभग नामुमकिन हो जाता है.

तीव्रता और समय

रेडियोधर्मिता की माप मिलीसीवर्ट में की जाती है. लघु अवधि में 250 मिलीसीवर्ट वाला विकरण, विकिरण  बीमारी पैदा करने के लिए काफी है. कहने का आशय ये है कि जर्मनी में विकिरण सुरक्षा का संघीय कार्यालय (बीएफएस), पर्यावरण में एक साल के दौरान औसतन 2.1 मिलीसीवर्ट की मात्रा दर्ज करता है.

4000 मिलीसीवर्ट (या 4 सीवर्ट) की मात्रा में गंभीर विकिरण  सिकनेस तेजी से शुरू हो जाती है. मृत्यु का खतरा भी बढ़ जाता है. 6 सीवर्ट पर मृत्यु का खतरा 100 प्रतिशत हो जाता है. यानी बचने का कोई मौका नहीं. मौत कमोबेश एक झटके में आ जाती है.

 

रिपोर्टः गुडरुन हाइजे