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काम के दौरान हिंसा का सामना कर रहे हैं भारत के गिग वर्कर्स

१८ मार्च २०२४

ऑनलाइन डिलीवरी करने वालों और ऐप बेस्ड टैक्सी ड्राइवरों को लेकर हुए एक सर्वे में कई अहम तथ्य सामने हैं. सर्वे में शामिल लोगों ने कहा है कि उनके काम के घंटे लंबे होते हैं और कमाई कम होती है.

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सर्वे में शामिल लोगों ने कहा वे काम ज्यादा करते हैं लेकिन कमाई कम होती है
सर्वे में शामिल लोगों ने कहा वे काम ज्यादा करते हैं लेकिन कमाई कम होती हैतस्वीर: DW

एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 47 प्रतिशत कैब ड्राइवर और 41.5 प्रतिशत डिलीवरी करने वालों को काम पर किसी न किसी प्रकार की हिंसा का सामना करना पड़ता है, जिनमें से अधिकांश 10 मिनट की डिलीवरी पॉलिसी को बंद करने की मांग कर रहे हैं.

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के लिए काम करने वाले कर्मचारियों के हालात पर दिल्ली स्थित एनजीओ पीपल्स एसोसिएशन इन ग्रासरूट्स एक्शन एंड मूवमेंट (पीएआईजीएएम) नेटवर्क और आईएफएटी ने एक सर्वे किया है.

सर्वे में दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, इंदौर, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद और बेंगलुरू समेत आठ राज्यों में अप्रैल 2022 से 2023 के बीच 10,000 ऑनलाइन डिलीवरी करने वाले और ऐप-आधारित ड्राइवरों की प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया गया है.

इस सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 41.5 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बताया कि उन्हें काम पर हिंसा का सामना करना पड़ा है. इस रिपोर्ट के मुताबिक 72 प्रतिशत ऑनलाइन कर्मचारियों को प्रति माह 15,000 रुपये से कम कमाई के साथ अपने खर्चों का प्रबंधन करना मुश्किल लगता है.

काम ज्यादा, कमाई कम

"प्रिजंस ऑन व्हिल्स" नाम से जारी सर्वे रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में ऐप आधारित टैक्सी ड्राइवरों में से 83 फीसदी से अधिक रोजाना 10 घंटे से ज्यादा काम कर रहे हैं. इसके बावजूद उनकी कमाई काफी कम है.

लंबे समय तक काम करने से इन ड्राइवरों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, लगभग 93.3 प्रतिशत कैब ड्राइवरों ने शिकायत की है कि उन्हें जोड़ों के दर्द और पीठ दर्द समेत शारीरिक दर्द का सामना करना पड़ता है. 98.5 प्रतिशत डिलीवरी करने वाले व्यक्तियों ने कहा कि वे चिंता, अवसाद, तनाव, घबराहट और चिड़चिड़ापन का अनुभव करते हैं.

भेदभाव का सामना करते गिग वर्कर

ऑनलाइन डिलीवरी करने वाली कई कंपनियां डिस्काउंट की पेशकश करती हैं और ऑर्डर देने के 10 मिनट के भीतर डिलीवरी नहीं होने पर ऑर्डर मुफ्त में देने का वादा करती हैं. लेकिन 10 मिनट में डिलीवरी का काम करने वाले लोगों का कहना है कि इस पॉलिसी के कारण हादसे का खतरा बना रहता है. सर्वे में शामिल 86 प्रतिशत ऑनलाइन डिलीवरी करने वालों ने इस नीति को पूरी तरह से अस्वीकार्य बताया है.

इस रिसर्च के डायरेक्टर आकृति भाटिया ने कहा, "ऑनलाइन डिलीवरी करने वाले और ऐप-आधारित श्रमिकों को कर्मचारी माना जाना चाहिए और कंपनियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ड्राइवरों को न्यूनतम वेतन मिले."

पीएआईजीएएम के चीफ कॉऑर्डिनेटर दीपक इंडोलिया कहते हैं, "अधिकांश रेसिडेंसिशियल अपार्टमेंट्स में काम करने वाले श्रमिकों और डिलीवरी कर्मियों को निवासियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाली लिफ्ट के उपयोग करने की अनुमति नहीं है. यही बात एंट्री गेट पर भी लागू होती है."

हाल के सालों में भारत में ऑनलाइन डिलीवरी का बाजार बहुत तेजी से बढ़ा है और आने वाले सालों में इसके और विशाल होने का अनुमान लगाया जा रहा है. रेडसीअर कंपनी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2025 तक भारत का हाइपर-लोकल डिलीवरी बाजार 50-60 फीसदी बढ़कर 15 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है. रिपोर्ट में कहा गया कि 10 मिनट में डिलीवरी की सेवा ऑनलाइन डिलीवरी के बाजार का मुख्य इंजन भी हो सकती है.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक गिग अर्थव्यवस्था के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है. एशिया प्रशांत क्षेत्र के सभी गिग वर्कर्स में से 56 फीसदी भारत में काम करते हैं.