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कितना अहम है नरेंद्र मोदी का पहला अमेरिका राजकीय दौरा

आमिर अंसारी
२० जून २०२३

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 जून से 24 जून तक अमेरिका के पहले राजकीय दौरे पर रहेंगे. मोदी की यात्रा को भारत-अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर के रूप में देखा जा रहा.

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बाइडेन के साथ मोदी
बाइडेन के साथ मोदीतस्वीर: Sean Kilpatrick/The Canadian Press via AP

मंगलवार की सुबह प्रधानमंत्री मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और अमेरिका की फर्स्ट लेडी जिल बाइडेन के आमंत्रण पर अमेरिका रवाना हो गए. अमेरिका में मोदी का लंबा चौड़ा कार्यक्रम तय है. वे अमेरिकी कारोबारियों से मिलेंगे, संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में योग दिवस में भाग लेंगे, भारतीय समुदाय को संबोधित करेंगे, राष्ट्रपति बाइडेन के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे और अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करेंगे. साथ ही उनके सम्मान में व्हाइट हाउस में रात्रिभोज रखा जाएगा. प्रधानमंत्री की इस यात्रा की खाएस बात यह है कि वह दूसरी बार अमेरिकी कांग्रेस की संयुक्त बैठक को संबोधित करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे.

मोदी के अमेरिका के राजकीय दौरे से कई दिनों पहले से ही अखबारों में पूर्व राजनयिकों, अर्थशास्त्रियों, टिप्पणीकारों और वरिष्ठ पत्रकारों के लेख व टिप्पणिययां छप रही हैं. ज्यादातर लेख और टिप्पणियों में इस यात्रा को लेकर काफी उत्साह देखने को मिल रहा है. जबकि भारतीय प्रधानमंत्रियों की यात्राओं के दौरान भारत में यह आम बात है, इस बार वॉशिंगटन के राजनीतिक और नीति समुदाय में उत्साह कई कारणों से अभूतपूर्व स्तर पर है.

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दोस्ती का नया दौर

उत्साह आंशिक रूप से स्टेट डिनर के लिए निमंत्रण सूची के आसपास केंद्रित है, जो कि दुर्लभ अवसर है. बाइडेन प्रशासन के ढाई साल में इस तरह का यह केवल तीसरा आयोजन होगा, मोदी से पहले  फ्रांसीसी और दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपतियों के लिए बाइडेन स्टेट डिनर की मेजबानी कर चुके हैं.

हाल ही में मोदी और बाइडेन की हिरोशिमा में जी-7 बैठक के दौरान मुलाकात हुई थी. दोनों नेता बेहद गर्मजोशी के साथ मिले थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी का यह सातवां अमेरिका दौरा है लेकिन इस बार मोदी अपनी पहली राजकीय यात्रा के लिए अमेरिका रवाना हुए हैं.

अमेरिका रवाना होने से पहले पीएम मोदी ने विश्वास व्यक्त किया कि उनकी अमेरिका की यात्रा से दोनों देशों के बीच संबंध और भी मजबूत होंगे. मोदी ने कहा, "मैं राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रथम महिला जिल बाइडेन के निमंत्रण पर अमेरिका की राजकी यात्रा पर जा रहा हूं. यह विशेष निमंत्रण हमारे लोकतंत्रों के बीच साझेदारी के उमंग और शक्ति को दर्शाता है."

इस यात्रा को उनकी पिछली तमाम यात्राओं से ज्यादा अहमियत दी जा रही है तो उसके पीछे ठोस वजहें हैं. आजाद भारत के इतिहास में मोदी से पहले सिर्फ दो नेता ऐसे रहे जो अमेरिका के राजकीय दौरे पर गए, पहले जून 1963 में तत्कालीन राष्ट्रपति राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह गए थे.

मोदी की यात्रा को इतनी अहमियत क्यों

जानकारों का कहना है कि अगर अमेरिका ने आज के माहौल में मोदी की यात्रा को इतनी अहमियत देने का फैसला किया है तो वह अकारण नहीं है. ऐसी कूटनीतिक पहल सोच समझ कर की जाती है. अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत अरुण के सिंह अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में एक लेख में लिखते हैं कि "अमेरिकी कूटनीति समुदाय, पूरा अमेरिकी प्रशासन, थिंक टैंक और समस्त व्यापार जगत भारत-अमेरिका संबंधों के लिए सटीक रूपरेखा और क्षमता का पता लगाने की कोशिश कर रहा है. अमेरिका के पास द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से गठबंधनों से निपटने का अनुभव है, जहां सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका की स्पष्ट प्रतिबद्धताएं हैं, लेकिन चुनौती के क्षणों में अपने खुद के आकलन के आधार पर उन पर कार्य करता है."

भारत-अमेरिकी साझेदारी पर दुनिया की नजरें टिकी हैं. मोदी अपनी यात्रा के दौरान रक्षा समेत कई अहम क्षेत्रों में सहयोग को लेकर करार कर सकते हैं. भारत-अमेरिका के आपसी रिश्ते परस्पर विश्वास के दौर में पहुंच चुके हैं और अमेरिका के हित में है कि वह जल्द चीन के विकल्प के रूप में खड़ा होने में भारत की मदद करे.

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यात्रा से पहले भारत आए कई अमेरिकी अधिकारी

मोदी के दौरे से पहले बाइडेन ने एक के बाद एक कई अधिकारियों को भारत भेजा और सहमतियों और समझौतों को हरी झंडी दिखाई. पिछले साल मार्च में अमेरिकी वाणिज्य सचिव जीना राएमोंडो, इसी जून के पहले सप्ताह में अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन और 13 जून को अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन भारत के दौरे पर आए. ये सब दौरे इशारे करते हैं कि बाइडेन प्रशासन भारत को लेकर कितना गंभीर है और उसे चीन से निपटने के लिए क्षेत्र में एक मजबूत खिलाड़ी चाहिए.

वरिष्ठ पत्रकार संजय कपूर डीडब्ल्यू से कहते हैं कि भारत के लिए एक और बड़ा मुद्दा चीन के साथ संबंध खराब होने की स्थिति में अमेरिका से समर्थन की गारंटी से संबंधित है. वह कहते हैं, "मुझे नहीं पता कि बीजिंग में अमेरिकी विदेश मंत्री की (बहुत अच्छी) बैठक के बाद अमेरिका क्या कहेगा (भारत-चीन संबंध में तनाव पर)- जहां उन्होंने संबंधों को फिर से स्थापित करने की कोशिश की है."

चीन से कोरोना महामारी के विश्व भर में फैलाव और यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद दुनिया की भू-राजनीति में भारी बदलाव हुआ है. रूस और चीन ने आपसी सामरिक साझेदारी को और मजबूत बनाकर अमेरिका से मुकाबला करने का संकल्प लिया है. वहीं अमेरिका ने समान विचार वाले देशों के बीच कई तरह के गुट बनाकर चीन की चुनौतियों से निपटने की रणनीति बनाई है.

रूस पर अगर सवाल हुआ तो

मोदी की यात्रा इसलिए भी अहम क्योंकि यह भारत में होने वाली जी-20 बैठक के पहले हो रही है. कपूर कहते हैं, "यात्रा को बढ़ा चढ़ाकर बताने के अलावा यह स्पष्ट नहीं है कि जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए बाइडेन आते हैं, अगर पुतिन भी आएंगे तो. अमेरिका नहीं चाहेगा कि वह पुतिन के साथ मंच साझा करे."

कपूर आगे कहते हैं, "प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान अमेरिका जो मुख्य प्रश्न पूछ सकता है वह पुतिन की दिल्ली यात्रा और रूस के साथ संबंधों के बारे में हो सकते हैं. वॉशिंगटन ने रूस पर हथियारों के लिए भारत की निर्भरता पर बेचैनी दिखाई है. मुझे लगता है कि इस यात्रा में अमेरिका कुछ रक्षा सौदे हासिल करने के लिए ठोस पेशकश करेगा. और इसमें भारत में जीई इंजनों का निर्माण शामिल है."

प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के पहले विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा था कि अहम क्षेत्रों में ठोस नतीजे सामने आने की उम्मीद है. उन्होंने कहा, "यह दोनों देशों के संबंधों को लेकर मील का पत्थर है. यह एक अहम यात्रा है. हम नए क्षेत्र में सहयोग को लेकर प्रतिबद्ध हैं."