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आपदाविश्व

जलवायु परिवर्तन की वजह से बड़े फायदे में हैं ये पेंग्विन

३ फ़रवरी २०२२

अंटार्कटिका में पाए जाने वाले पेंग्विन जलवायु परिवर्तन का असर समझने में वैज्ञानिकों की मदद कर रहे हैं. लेकिन कुछ पेंग्विन ऐसे भी हैं, जो इससे फायदे में हैं.

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अटांर्कटिक में वैज्ञानिक पेंग्विनों के जरिए जलवायु परिवर्तन के मामलों पर शोध कर रहे हैं.
सैटेलाइट तस्वीरों का विश्लेषण करने या किसी भी दूसरी तरीके के बजाय पेंग्विनों की सिर्फ गिनती करना ही बारीक बातों को सामने ला सकता है.तस्वीर: Natalie Thomas/REUTERS

अंटार्कटिका के एंडरसन द्वीप के पास माइकल वेथिंगटन और एलेक्स बोरोविक्ज बेहद ठंडे पानी में अपनी मोटरबोट पर सवार हैं. ये दोनों ध्रुवीय इलाकों में पारिस्थितिकी से जुड़े शोध करते हैं. ये दूरबीन की मदद से ऐसी जगह खोजने की कोशिश कर रहे हैं, जहां वे समुद्री जीवों के अपशिष्ट पदार्थों से बनी खाद डाल सकें. यह खाद आसपास मौजूद पेंग्विनों के समूहों को आकर्षित कर सकती है.

धरती के सबसे ठंडे और बर्फीले इलाकों में पाए जाने वाले पेंग्विन अब सिर्फ निहारने की चीज नहीं रह गए हैं. वैज्ञानिक इनकी मदद से दक्षिणी ध्रुव के आसपास हो रहे जलवायु परिवर्तन को समझने की कोशिश कर रहे हैं. इसके पश्चिम में अंटार्कटिक प्रायद्वीप जैसे इलाके तेजी से गर्म हो रहे हैं, जबकि पूर्वी अंटार्कटिका अब भी बेहद ठंडा और बर्फ से ढका हुआ है.

न्यूयॉर्क की स्टोनी ब्रूक यूनिवर्सिटी के बोरोविक्ज कहते हैं, "हम पेंग्विनों के बसेरे गिन रहे हैं, ताकि पता चले कि एक कॉलोनी में कितने पेंग्विन हैं, वे हर साल कितने बच्चे देते हैं और पर्यावरण में हो रहे बदलावों के साथ इनकी संख्या घट रही है या बढ़ रही है."

अंटार्कटिक में वैज्ञानिक पेंग्विनों के जरिए जलवायु परिवर्तन का असर समझने की कोशिश कर रहे हैं.
पेंग्विनों की कुछ प्रजातियों बर्फ पर रहना पसंद करती हैं, तो कुछ को बर्फ से दूर रहना सुहाता है.तस्वीर: Natalie Thomas/REUTERS

शोधकर्ता कैसे खोजते हैं पेंग्विन

अंटार्कटिका के इस सुदूर और बर्फीले इलाके में जलवायु पर शोध करने वालों के लिए कुछ भी आसान नहीं होता है. हालांकि, दूसरी किसी प्रजाति के मुकाबले पेंग्विनों को खोजना आसान होता है, क्योंकि इनके बसेरे जमीन में होते हैं. साथ ही, दूर तक फैली सफेद बर्फ में इनके काले पंख और इनका मल-मूत्र आसानी से दिख जाता है.

स्टोनी ब्रूक से ही जुड़े वेथिंगटन कहते हैं, "हम पेंग्विनों का एक बायो-इंडिकेटर के तौर पर इस्तेमाल करके यह समझ सकते हैं कि बाकी का पारिस्थितिकी तंत्र कैसा चल रहा है."

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सैटेलाइट तस्वीरों का विश्लेषण करने या किसी भी दूसरी तरीके के बजाय पेंग्विनों की सिर्फ गिनती करना ही बारीक बातों को सामने ला सकता है. जलवायु परिवर्तन की वजह से कुछ पेंग्विनों के रहने के लिए और ज्यादा जगह मिल रही है, वहीं कुछ को अपना ठिकाना छोड़कर ज्यादा ठंडे इलाके खोजने पड़ रहे हैं.

गेंटू पेंग्विनों की बढ़ती संख्या

लाल-नारंगी चोंच और सिर पर सफेद निशान वाले गेंटू पेंग्विन ऐसी जगहों पर रहना पसंद करते हैं, जहां खूब पानी हो और उसमें बर्फ के टुकड़े न तैर रहे हों. 20वीं सदी के उत्तरार्ध में अंटार्किटक प्रायद्वीप का तापमान दुनिया के किसी भी और हिस्से के मुकाबले सबसे तेजी से बढ़ रहा था. इस दौरान गेंटू पेंग्विन दक्षिण में दूर तक फैल गए. वैज्ञानिक इसे अंटार्कटिका का 'गेंटूफिकेशन' यानी गेंटुओं की संख्या बढ़ जाना कहते हैं.

पारिस्थितिकी परामर्श फर्म एचटी हार्वी ऐंड असोसिएट्स के साथ काम रहे जीवविज्ञानी डेविड एनली बीते 50 वर्षों से पेंग्विनों पर शोध कर रहे हैं. वह कहते हैं, "गेंटू पेंग्विन समुद्री बर्फ पसंद नहीं करते हैं. वे ज्यादातर महाद्वीप पर ही रहते हैं और समुद्र में दूर तक नहीं जाते हैं."

अंटार्कटिक में वैज्ञानिक पेंग्विन के जरिए जलवायु परिवर्तन को समझने का प्रयास कर रहे हैं.
कई जगहों पर समुद्री बर्फ घटने के साथ-साथ पेंग्विनों की संख्या में भी कमी देखी गई है.तस्वीर: Natalie Thomas/REUTERS

पेनिनसुला के दक्षिणी इलाके में जैसे-जैसे समुद्री बर्फ घटती गई, वैसे-वैसे गेंटू इसका फायदा उठाते हुए इधर अपनी संख्या बढ़ाते गए. लेकिन, पेंग्विनों की ही एक और प्रजाति एडेली के लिए यही हालात बदतर साबित हुए. एडेली समुद्री बर्फ पर ही खाना खाते हैं और बर्फ पर ही अंडे देते हैं.

वेथिंगटन कहते हैं, "जब भी हमें एडेली पेंग्विन दिखते हैं, तो हमें पता चल जाता है कि समुद्री बर्फ आसपास ही कहीं है. जब भी हमने समुद्री बर्फ को कम होते या खत्म होते देखा है, तो हमने पाया कि एडेली पेंग्विनों की आबादी भी इसी के साथ कम हुई है." हालांकि, दुनिया में कुल आबादी के लिहाज से तो एडेली बढ़े हैं, तो कुछ इलाकों में इनकी संख्या 65 फीसदी तक कम हो गई है.

सुरक्षित जगहें

वेडेल समुद्र के पास बर्फ अब भी जमी हुई है. स्टोनी ब्रूक के शोधकर्ताओं ने जनवरी में इस क्षेत्र की अपनी यात्रा के दौरान पाया कि यहां बीते एक दशक से एडेली पेंग्विनों की संख्या स्थिर बनी हुई है. इस यात्रा में शोधकर्ताओं की मदद करने वाले स्टोनी ब्रूक के जीवविज्ञानी हेदर लिंच कहते हैं कि शोध में मिली इन जानकारियों से इस इलाके के संरक्षण की अहमियत पता चली है. साल 2020 में ब्रितानी अंटार्कटिक सर्वे की एक टीम ने सैटेलाइट तस्वीरों की मदद से एंपरर पेंग्विनों की 11 नई कॉलोनी खोजी थीं. इससे एंपरर पेंग्विनों की ज्ञात कॉलोनियों की संख्या 20 फीसदी बढ़ गई थी.

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वेडेल समुद्र के सुदूर पूर्वी क्षेत्र में बसी पेंग्विनों की हाली बे कॉलोनी में 2016 के बाद से पैदा हुआ पेंग्विनों का लगभग हर चूजा मारा गया. इस जगह पर दुनिया में एंपरर पेंग्विनों की दूसरी सबसे बड़ी कॉलोनी बसती है, जहां हर साल पेंग्विनों के करीब 25,000 जोड़े अंडे देने के लिए आते हैं. वैज्ञानिक मानते हैं कि साल 2016 में अल नीनो की वजह से इस इलाके में समुद्री बर्फ की सक्रियता बदल गई, जिसका यह नतीजा हुआ. वैज्ञानिकों की चिंता है कि जैसे-जैसे जलवायु बदलेगी और अल-नीनो जैसी घटनाएं बढ़ेंगी, तो इसका पेंग्विनों पर बहुत बुरा असर होगा.

वीएस/एके (रॉयटर्स)

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