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समाज

पौधों का पेटेंट बना किसानों के लिए परेशानी का सबब

८ अक्टूबर २०१९

कई कंपनियां पौधों को अपनी संपत्ति होने का दावा कर रही हैं और पेटेंट करा रही हैं. ऐसे दावों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इसका पूरी दुनिया के किसानों पर नाटकीय परिणाम हो सकता है. भारत में इसका असर दिखना शुरू हो गया है.

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Indien Landwirtschaft Kartoffeln
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात में रहने वाले हरिभाई देवजीभाई पटेल सालों से बादाम, आलू और कपास की खेती कर रहे हैं. उनके पास चार एकड़ जमीन है. अगले साल खेती के लिए वे और उनका परिवार इस साल पैदा हुई फसल का ही कुछ हिस्सा बीज के रूप में रख लेते थे. पिछले साल उन्होंने आलू की एक नई किस्म एफसी5 की खेती की. लेकिन उनका यह फैसला उन्हें कोर्ट में घसीट लाया. वजह ये थी कि अमेरिकी कंपनी पेप्सिको का दावा था कि एफसी5 किस्म के सभी आलू पर उसका अधिकार है.

पटेल कहते हैं कि वे एफसी5 आलू के नाम के बारे में नहीं जानते थे और न हीं उन्हें पेप्सिको के दावे के बारे में ज्यादा जानकारी थी. उन्होंने कहा, "मुझे इन सब के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. न हीं इस बात की कि मुझे कोर्ट में कैसे घसीटा गया." अप्रैल महीने में पटेल और क्षेत्र के चार अन्य किसानों के ऊपर पेप्सिको कंपनी द्वारा एफसी 5 की खेती और इसके पेटेंट के कथित उल्लंघन के लिए मुकदमा किया गया था.

पेप्सिको के वकील आनंद यादनिक के अनुसार मुकदमे में आरोप लगाया गया कि एफसी5 प्रजाति की आलू विशेष रूप से पेप्सिको की सहायक कंपनी लेज और उनके उत्पाद (आलू के चिप्स) के लिए है. पेप्सिको ने इस मामले में हर्जाने के तौर पर एक करोड़ रुपये की मांग की थी. पटेल कहते हैं, "मैं पूरी तरह से तबाह हो गया था. मैं भयभीत था. पेप्सिको ने जितने पैसे का दावा किया था, उतना मैं पूरी जिंदगी कमा कर भी नहीं दे सकता था." पटेल की उम्र 46 साल है और वे दो बच्चों के पिता हैं. उनकी सालाना आय करीब ढ़ाई लाख रुपये है.

पेप्सिको ने पटेल के खेत से जमा किए गए साक्ष्यों के आधार पर मुकदमा किया था. पटेल के वकील के अनुसार कंपनी ने साक्ष्य और डाटा जमा करने के लिए निजी जासूसी एजेंसी को काम पर रखा था. पटेल कहते हैं, "निजी जासूसी एजेंसी के एजेंटों ने अपने मूल इरादे छिपाते हुए गुप्त वीडियो फुटेज तैयार किए और खेतों से नमूने एकत्र किए थे."

Tasty Frito Lay Snacks
तस्वीर: Imago-Images/R. Levine

मई महीने में पेप्सिको के खिलाफ बड़े विरोध-प्रदर्शन हुए. किसानों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर रोक लगाने की मांग की. नेताओं ने भी कंपनी की तीखी आलोचना की. इसके बाद कंपनी ने राज्य सरकार से बंद कमरे में बैठक के बाद मुकदमा वापस ले लिया था. मुकदमा वापस लिए जाने के बाद पटेल की स्थिति सामान्य हुई लेकिन वे अभी भी चिंतित रहते हैं. वे कहते हैं, भविष्य में भी कंपनी मेरे खिलाफ मुकदमा कर सकती है. मैं ऐसी कंपनियों का मुकाबला करने की हैसियत नहीं रखता हूं."

संसाधनों का निजीकरण

यह मामला बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा पूरी दुनिया में पौधों या आनुवांशिक पदार्थों को अपनी संपत्ति बताने के चलन का एक उदाहरण है. गैर सरकारी संगठन जीन एथिकल नेटवर्क की जूडिथ डुइसबर्ग कहती हैं, "मानवों के लिए उपलब्ध संसाधनों का अब निजीकरण हो रहा है." 1980 के दशक में सबसे पहले अमेरिका ने जैविक पदार्थों के पेटेंट की शुरुआत की थी. इसके तुरंत बाद पश्चिमी देशों ने इसका अनुकरण किया. यूरोपीय इनिशिएटिव नो-पेटेंट-ऑन-सीड्स के अनुसार 1990 में कुल पेटेंट की संख्या 120 थी, जो आज 12 हजार है. सिर्फ यूरोप में ही 3500 रजिस्टर्ड पेटेंट हैं.

किसी पौधे या पौधे के लक्षण को पेटेंट करवाने से पेटेंट मालिक के पास उत्पाद के निर्माण, विकास और बिक्री के लिए विशेष अधिकार मिल जाते हैं. इसके बाद यह नियम किसानों को बिना इजाजत के उस नस्ल की खेती करने या पौद लगाने से रोकता है. आम तौर पर पेटेंट विशेष गुण वाले पौधों या व्यक्तिगत जीन वाली प्रजातियों का किया जाता है. जैसे कि मोनसैंटो कीटनाशकों से बचाने वाले पौधों का विकास कर रहा है, जिसे वह खुद बेचता है.

जूडिथ डुइसबर्ग कहती हैं, "किसी विशेष लक्षण या गुण का पेटेंट एक समस्या है. क्योंकि पौधे विकसित होते हैं और उनके जीन स्वाभाविक रूप से बदलते हैं. ऐसे में यदि गुलाबी धब्बे वाले सेब की प्रजाति को किसी ने पेटेंट करवा लिया है और किसी किसान को अपने पेड़ पर गुलाबी धब्बे का कोई सेब मिलता है तो पेटेंट करवाने वाला व्यक्ति उस किसान पर मुकदमा कर सकता है."

Indien Anbau von Gerste am Indus-Fluss bei Kloster Thiksay
तस्वीर: Imago/Aurora

वर्ष 2004 में बहुराष्ट्रीय कंपनी मोनसैंटो ने बिना इजाजत सोयाबीन का बीज घर पर रखने और अगले साल उसकी खेती के लिए एक कनाडाई किसान पर्सी श्माइसर पर मुकदमा किया था. इसके जवाब में किसान ने दावा किया था कि उसका खेत आनुवंशिक रूप से संशोधित पराग द्वारा वर्षों पहले दूषित हो गया था. लेकिन कोर्ट में मोनसैंटो का दावा सही साबित हुआ. हालांकि फसल में पेटेंट प्रजाति की मात्रा कम होने की वजह से कोर्ट ने कहा कि किसान ने किसी तरह का लाभ नहीं उठाया है. किसान को किसी तरह का मुआवजा देने की जरूरत नहीं है.

मोनसैंटो का कहना है कि पेटेंट कानूनों को बनाए रखना जरूरी है क्योंकि इससे नए आविष्कारों के लिए पैसे का इंतजाम होता है. यदि कानून का सही ढ़ंग से पालन नहीं किया जाएगा तो नई और बेहतर प्रौद्योगिकी के विकास में रुकावट पैदा होगी. हालांकि आलोचक तर्क देते हैं कि पेटेंट की वजह से किसानों के लिए जैविक पदार्थों को प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है और इससे जैवविविधता में कमी होती है. बीज उत्पादन करने वालों पर किसानों की निर्भरता बढ़ती है. मोनसैंटो की मूल कंपनी जर्मनी की बायर का कहना है, "किसान इस बात के लिए स्वतंत्र हैं कि वे कौन सा उत्पाद किस कंपनी से खरीदना चाहते हैं. सभी किसान स्वतंत्र रूप से यह निर्णय लेते हैं. यदि किसानों को लाभ मिलता है तभी वे हमारे उत्पाद खरीदेंगे."

खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंता
कुछ साल पहले यूरोप में मोनसैंटो और खरबूजे की प्रजाति से जुड़े एक मामले ने पूरी दुनिया की मीडिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था. कंपनी ने खोज की थी कि भारतीय तरबूज की विशेष किस्म एक विशिष्ट वायरस के लिए स्वाभाविक रूप से प्रतिरोधी थी. इसके बाद भारतीय खरबूजे की तरह ही अन्य किस्म का खरबूजा विकसित किया गया और मोनसेंटो ने इसके पेटेंट के लिए यूरोपीय कार्यालय में सफल आवेदन किया. इसके बाद से न सिर्फ मोनसेंटो का खुद से विकसित की गई खरबूजे की उस किस्म पर अधिकार हो गया बल्कि भारतीय खरबूजे पर भी. पेटेंट का विरोध करने वाले इसे बायोपाइरेसी कहते हैं. बाद में यूरोपीय संस्थानों ने पेटेंट को निरस्त कर दिया और कहा कि 'विशेषता' को कोई खोज नहीं कहा जा सकता है.

Infografik Pflanzenpatente EN


भारत स्थित बाजार शोध एजेंसी मोरडॉर इंटेलिजेंस के अनुसार 2018 में बीज सेक्टर का कारोबार 60 अरब डॉलर का था जो 2024 तक 90 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है. और इस पूरे बाजार में आधे से अधिक हिस्सेदारी तीन कंपनियों मोनसैंटो, डू पोंट और सिंजेन्टा के पास होगी. ऑक्सफैम नीदरलैंड्स के ब्रैम डी जोंग का कहना है कि पौधों की पेटेंट की बढ़ती संख्या और बीज उद्योग के बढ़ने से संयुक्त राष्ट्र द्वारा किसानों को अपनी फसल से बीज या फसलों के भंडारण, उपयोग और बिक्री के लिए दिए गए अधिकारों को खतरा है. यह ऐसा कुछ है जो सिर्फ यूरोप और अमेरिका में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हो रहा है. पेटेंट मुख्य रूप से मानव आविष्कारों जैसे रेडियो या मोबाइल फोन के अधिकार सुरक्षित करने के लिए बनाया गया था. यह जीवित पदार्थों के लिए नहीं था.

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट भोजन का अधिकार में भी खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंता जताई गई है. चेतावनी दी गई है कि अधिकारों के संकेंद्रन वाले 'ओलिगोपॉलिस्टिक संरचना' की वजह से खाने की चीजों की कीमतें बढ़ सकती है और गरीब लोग भूखे रह सकते हैं. चिंता का विषय यह भी है कि बीज के मालिक और भोजन का उत्पादन करने वाले एक नहीं हैं. गैर सरकारी संगठन जर्मन वॉच के अनुसार बीज उत्पादन करने वाली ज्यादातर कंपनियां दुनिया के उत्तरी हिस्से में हैं लेकिन 90 प्रतिशत जैविक संसाधन दक्षिणी हिस्से से हैं. दक्षिणी हिस्से में पेटेंट कानून अधिक प्रतिबंधात्मक हैं.

रिपोर्ट: टिम शाउएनबर्ग

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