31 सदस्यीय समिति में सिर्फ एक महिला सांसद
३ जनवरी २०२२केंद्र सरकार बाल विवाह निषेध (संशोधन) अधिनियम 2021 को दिसंबर में संसद के शीतकालीन सत्र में ले कर आई थी. इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं के लिए विवाह करने की न्यूनतम कानूनी उम्र को 18 से बढ़ा कर 21 करना था.
अधिनियम का काफी विरोध देखने के बाद सरकार ने इसे राज्य सभा की शिक्षा, महिलाओं, बच्चों, युवाओं और खेल की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया. समिति में अलग अलग पार्टियों से राज्य सभा के 10 और लोक सभा के 21 सांसद हैं.
लेकिन चौंकाने वाली बात है कि 31 सदस्यों की इस सूची में सिर्फ एक महिला सांसद हैं - तृणमूल कांग्रेस से राज्य सभा की सदस्य सुष्मिता देव. समिति के अध्यक्ष बीजेपी के विनय सहस्त्रबुद्धे हैं.
शिव सेना से राज्य सभा की सदस्य प्रियंका चतुर्वेदी ने राज्य सभा अध्यक्ष और देश के उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू से इस विषय में शिकायत की है और उनसे समिति में और महिलाओं को शामिल करने का अनुरोध किया है.
नायडू ने अभी तक इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की है. समिति की एकलौती महिला सदस्य सुष्मिता देव ने भी इस मामले पर आपत्ति व्यक्त की है और कहा है कि इसमें और महिला सांसदों को शामिल किया जा सकता था.
इस मुद्दे ने भारतीय संसदीय व्यवस्था में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के संकट को एक बार फिर रेखांकित कर दिया है. इंटर पार्लियामेंटरी यूनियन के मुताबिक वैसे भी राष्ट्रीय संसदों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में पूरी दुनिया में भारत का 148वां स्थान है. चीन 46वें स्थान पर, बांग्लादेश 111वें और पाकिस्तान 116वें स्थान पर हैं.
भारतीय संसद के दोनों सदनों में कुल मिला कर 788 सदस्य हैं जिनमें से सिर्फ 103 महिलाएं हैं, यानी सिर्फ 13 प्रतिशत. राज्य सभा के 245 सदस्यों में से सिर्फ 25 महिलाएं हैं, यानी लगभग 10 प्रतिशत. लोक सभा में 543 सदस्यों में से सिर्फ 78 महिलाएं हैं, यानी 14 प्रतिशत. केंद्रीय सरकार में भी सिर्फ 14 प्रतिशत मंत्री महिलाएं हैं.
विधान सभाओं में तो स्थिति और बुरी है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में को 4,120 विधायकों में से सिर्फ नौ प्रतिशत विधायक महिलाएं हैं. पार्टियां महिलाओं को चुनाव लड़ने का अवसर भी कम देती हैं.
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2002 से 2019 तक लोक सभा चुनावों में लड़ने वाले उम्मीदवारों में से 93 प्रतिशत उम्मीदवार पुरुष थे. इसी अवधि में विधान सभा चुनावों में यह आंकड़ा 92 प्रतिशत था.