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पेरिस जलवायु बैठक: ‘ब्रिजटाउन इनिशिएटिव‘ पर टिकी निगाहें

२० जून २०२३

फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों की अगुआई में दुनिया भर के 50 से ज्यादा नेता पेरिस में चर्चा करेंगे कि कैसे गरीबी, ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु संकट से जुड़े मसलों के वित्तीय पहलुओं पर एक नई व्यवस्था तैयार की जाए.

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इमानुएल मैक्रों
इमानुएल मैक्रोंतस्वीर: Ludovic Marin/Pool/REUTERS

बारबाडोस, केन्या, घाना समेत अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि भी इसमें हिस्सेदारी भाग ले रहे हैं. इस तरह की बैठक का सुझाव मैक्रों ने पिछले साल मिस्र में संयुक्त राष्ट्र की क्लाइमेट कॉफ्रेंस- कॉप27 के दौरान दिया था.

गुरूवार को शुरू होने वाली इस बातचीत के केन्द्र में हैं जलवायु संकट से जूझ रही दुनिया में औद्योगिक विकास और वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में सुधार के नए उपाय. इस चर्चा में निगाहें टिकी रहेंगी विकासशील देशों के एक समूह के सुझावों की उस सूची पर जिसे ‘ब्रिजटाउन इनिशिएटिव‘ कहा जाता है.

कॉप27 के दौरान ही ये सुझाव पेश किए गए थे जिन पर इस बैठक में विस्तृत चर्चा होने और कुछ ठोस कदम उठाए जाने की उम्मीद है. विकासशील देश लंब समय से इस बात की मांग कर रहे हैं कि पर्यावरण संकट का वित्तीय बोझ उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर नहीं डाला जा सकता.

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ऐसे उपायों की जरूरत है जो इन देशों के विकास की जरूरत और जलवायु संकट से जूझने के लिए जरूरी धन मुहैया करा सकें. इस साल नवंबर में होने वाली अगली कॉप बैठक से पहले हो रही इस पेरिस मीटिंग को कुछ नए रास्ते निकालने की दिशा में अहम माना जा रहा है.

क्या है ब्रिजटाउन इनिशिएटिव

जलवायु संकट की मार झेलने वाले देशों की कतार में सबसे आगे खड़े कैरेबियाई देश बारबाडोस की प्रधानमंत्री मिया मोत्ले ने पिछले साल कॉप27 के दौरान दुनिया के नेताओं का ध्यान इस ओर खींचा कि जलवायु आपदाओं से निपटने का बोझ विकासशील देशों पर ना पड़े इसके लिए वैश्विक संगठनों की ऋण व्यवस्था को दुरूस्त करने और जरूरतमंद देशों को आसान शर्तों पर उधार देने के उपाय ढूंढना बेहद जरूरी है.

मोत्ले के ये सुझाव ब्रिजटाउन इनिशिएटिव या ब्रिजटाउन पहल कहलाते हैं जो बारबाडोस के शहर ब्रिजटाउन के नाम पर पड़ा है. जरूरी सुधारों के दायरे में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र की ढांचागत व्यवस्थाओं को रखा गया.

इसमें सुझाया गया कि वैश्विक संस्थाओं को इस तरह काम करना चाहिए कि गरीब और विकासशील देश पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करने के लिए वित्तीय तौर पर तैयार हो सकें, उन्हें जरूरी पैसा मिले और उधार के बोझ में दबकर उनकी अर्थव्यवस्थाएं चरमराए नहीं.

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इसका तरीका ये सुझाया गया है कि कुछ वक्त के लिए कर्ज ना चुकाना पड़े ताकि प्रभावित देश के पास स्थिति से जूझने के लिए पर्याप्त पैसा हो. एक अहम मांग ये भी है कि अंतर्राष्ट्रीय वित्त संस्थाएं जैसे आईएमएफ या विकास बैंक जैसे विश्व बैंक, पर्यावरण लक्ष्यों को पूरा करने में मदद के लिए 1 ट्रिलियन डॉलर की अतिरिक्त राशि जुटाएं.

मुख्य मांगें

पर्यावरण को बचाने और विकास की जरूरतों के दो पाटों के बीच से रास्ता निकालने के इरादे से ब्रिजटाउन इनिशिएटिव में कुछ खास मांगे रखी गई हैं. जैसे प्राकृतिक आपदा से जूझ रहे किसी देश को कर्ज देने और वसूली की वर्तमान व्यवस्था को बदला जाए ताकि विकासशील देश कर्ज के चक्रव्यूह में ही ना फंस कर रह जाएं.

इसके अलावा ये इनिशिएटिव मांग करता है कि जलवायु संकटों से निपटने और आपदा के बाद पुनिर्माण की जरूरतों को भी ध्यान में रखा जाए और इसके लिए ग्लोबर क्लाइमेट मिटिगेशन ट्रस्ट बनाया जाए.

साथ ही सबसे ज्यादा खतरा झेल रहे देशों के लिए कर्ज लेने की व्यवस्था को उदार बनाते हुए बाजार से कम दर पर कर्ज लेना मुमकिन बनाया जाए ताकि ऐसे देश पर्यावरण को बचाने की दिशा में कदम उठाने लायक बन सकें. इसके साथ ही किसी भयंकर आपदा की स्थिति में मदद देने के लिए एक नया फंड बनाने की मांग भी ब्रिजटाउन इनिशिएटिव में है.

कुल मिलाकर इन सारी मांगों का उद्देश्य पर्यावरण को बचाने के लिए वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के ऐसे ढांचे का खाका तैयार करना है जो पर्यावरण के संकट को सुलझाने के लिए दुनिया के पिछड़े और विकासशील देशों को बलि का बकरा बनने से बचा सके.

एसबी/सीके (रॉयटर्स)