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खेलफ्रांस

क्या चाइल्ड एथलीटों के लिए ओलंपिक में शामिल होना सही है?

जोनाथन हार्डिंग
२६ जुलाई २०२४

पेरिस ओलंपिक 2024 का आगाज हो चुका है. इस बार 11 साल की उम्र तक के एथलीट भी ओलंपिक में शामिल होंगे. ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या इतनी कम उम्र के एथलीटों का ओलंपिक में शामिल होना सही है?

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पेरिस ओलंपिक 2024
ओलंपिक में युवा प्रतियोगियों का लंबा इतिहास रहा है, लेकिन अब चीजें बदल सकती हैंतस्वीर: David Goldman/AP/picture alliance

चीन के 11 वर्षीय स्केटबोर्डर चोंग हाओहाओ, 14 वर्षीय भारतीय तैराक धिनिधि देसिंघु, और अमेरिका के 16 वर्षीय हेजली रिवेरा एवं 16 वर्षीय क्विंसी विल्सन पेरिस में हो रहे ओलंपिक में शामिल होने वाले कुछ युवा एथलीट हैं. दरअसल, ओलंपिक की वजह से कुछ खेलों के भविष्य को लेकर लोगों का उत्साह बढ़ा है, लेकिन इस तरह की उच्च स्तरीय प्रतियोगिता का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है, इस बारे में भी सवाल उठ रहे हैं.

माइकल बर्जरॉन ने युवा एथलीटों पर व्यापक शोध किया है और वे युवा एथलेटिक विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) के साथ मिलकर काम करते हैं. वह सवालिया लहजे में कहते हैं, "किशोरावस्था शारीरिक, संज्ञानात्मक, और मनो-सामाजिक रूप से अत्यधिक अस्थिर अवधि होती है. फिर जब आप विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी खेलों से जुड़ी जरूरतों को जोड़ दें, तो यह समझना मुश्किल हो जाता है कि इसे कैसे सफलतापूर्वक संभाला जाए."

वह आगे कहते हैं, "आप यह अनुमान नहीं लगा सकते कि क्या होने वाला है. हर बच्चे के साथ, यह एक ही तरह से, एक ही समय पर और एक ही गति से नहीं होता है."

टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा लेती स्काई ब्राउन
यूके की स्काई ब्राउन सिर्फ 13 साल की थीं जब उन्होंने 2020 टोक्यो ओलंपिक में भाग लिया और कांस्य पदक जीतातस्वीर: Ben Curtis/AP/picture alliance

बर्जरॉन ने हाल ही में युवाओं के विकास और शीर्ष स्तर के खेल में उनकी भागीदारी पर किए गए अध्ययन का नेतृत्व किया है, जो इस साल के अंत में प्रकाशित होगा. अध्ययन का उद्देश्य युवाओं के विकास से जुड़े कारकों को स्वीकार करना है. साथ ही, इस बात पर भी सकारात्मक प्रभाव डालने का प्रयास करना है कि उन्हें किस तरह का प्रशिक्षण और सहायता उपलब्ध कराया जाना चाहिए.

पूरे विश्व में युवाओं के खेल से जुड़ा उद्योग तेजी से बढ़ रहा है. बर्जरॉन और उनकी टीम चाहती है कि युवाओं से जुड़े उच्च स्तर के खेलों में शामिल सभी लोगों के लिए एक मानक तय किया जाए.

बर्जरॉन ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह आम सहमति ओलंपिक पदक जीतने का कोई नुस्खा नहीं है. यह एक ऐसा ढांचा है जिससे हर युवा को एक बच्चे, एक इंसान और एक खिलाड़ी के रूप में सफल होने का सबसे अच्छा मौका मिलेगा."

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युवाओं के लिए शारीरिक चिंताएं

युवा खेलों में भागीदारी के लिए 15 से 18 वर्ष की उम्र निर्धारित है, लेकिन ओलंपिक में शामिल सभी 32 खेलों में हिस्सा लेने के लिए कोई उम्र सीमा निर्धारित नहीं है. इसमें, हर खेल से जुड़ी संस्था खुद तय करती है कि उस खेल में उम्र की सीमा होनी चाहिए या नहीं. जैसे, जिमनास्टिक के लिए 16 साल और डाइविंग के लिए 14 साल तय किया गया है.

जो युवा बड़े मंच पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं या पहुंच गए हैं, उनके ऊपर पड़ने वाले कई तरह के असर पर विचार करना होता है. शारीरिक रूप से, किशोरों की लंबाई अलग-अलग समय पर बढ़ती है. कुछ बच्चों की लंबाई 16 साल में रुक जाती है तो कुछ की 21 साल में, लेकिन पूरी तरह से शरीर विकसित होना और हड्डियों का विकास अलग-अलग चीजें हैं.

इंग्लैंड स्थित बाथ यूनिवर्सिटी में, खेल में वृद्धि और परिपक्वता पर शोध करने वाले सीन कमिंग कहते हैं, "हमारे पास एपोफिसियल साइट्स नाम की चीजें होती हैं. एपोफिसिस वह जगह होती है जहां मांसपेशी वाली नस हड्डी से जुड़ती है. जब बच्चा बढ़ रहा होता है, तो ये जगहें थोड़ी अधिक नाजुक होती हैं. अगर इस जगह पर बहुत ज्यादा तनाव पड़ता है, तो दर्द के साथ-साथ अन्य समस्याएं हो सकती हैं. इस तरह की जगहों पर कभी-कभी 21 या 22 साल की उम्र तक भी नस और हड्डी पूरी तरह नहीं जुड़ी होती हैं. इसलिए, अगर आप युवा एथलीटों के साथ काम कर रहे हैं, तो आपको वास्तव में इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि उन पर कितना भार डाला जा सकता है."

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ओलंपिक में शामिल होने वाले युवाओं पर असर

ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रोजमेरी पर्सेल उच्च स्तर के खेल से जुड़ी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं. उनका मानना है कि युवा खिलाड़ियों का मानसिक स्वास्थ्य बहुत जटिल होता है. वह कहती हैं, "इस समुदाय और इन युवा एथलीटों में काफी अंतर होता है. कुछ खेलों में युवा एथलीटों में खाने की समस्या और शारीरिक समस्या अधिक होती है. हालांकि दूसरी तरफ, उनमें उदासी और चिंता की समस्या कम हो सकती है जो इस समुदाय में देखी जाती है."

पर्सेल भी कमिंग और बर्जरॉन के साथ युवा विकास के लिए बनी आईओसी समीक्षा कमिटी का हिस्सा थीं. पर्सेल को इस बात से जूझना पड़ता है कि इतने छोटे बच्चे ओलंपिक मंच पर प्रतिस्पर्धा करते हैं, लेकिन वह इस बात पर भी सवाल उठाती हैं कि युवा लोगों को उम्र सीमा के कारण प्रतिस्पर्धा में शामिल होने से रोकने पर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है. बहुत कुछ सहायक वातावरण और प्रत्येक व्यक्ति को समग्र रूप से देखने पर निर्भर करता है.

इसके लिए, हमें रिस्क मैनेजमेंट की सोच से हटकर बच्चों की सुरक्षा और बचाव पर ध्यान देना होगा. पर्सेल कहती हैं, "इसका मतलब यह समझना है कि मानसिक रूप से स्वस्थ वातावरण कैसा होता है. वहां खिलाड़ियों के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है. कोच और माता-पिता बच्चों को कैसे प्रभावित करते हैं? हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हम बच्चों की मदद कैसे कर सकते हैं कि उनका स्वास्थ्य बेहतर बना रहे और वे आगे बढ़ें.”

वह कहती हैं, "अच्छी बात यह है कि यह सब नीचे से ऊपर की ओर जाएगा, क्योंकि आज के युवा मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में बहुत जागरूक हैं."

गलत संदेश और पैमाना?

ओलंपिक खेलों में रजत पदक हासिल कर चुकीं कैथ बिशप कहती हैं कि यह बदलाव ऊपर से भी होना चाहिए. लेखक और सलाहकार बिशप ने कहा, "यहां बात संस्कृति और नेतृत्व की आती है. ये दोनों ही बहुत कमजोर हैं और अक्सर इस बात से कोई लेना-देना नहीं होता है कि आपको कोच, परफॉर्मेंस डायरेक्टर या सीईओ के रूप में नौकरी क्यों मिली है."

बिशप आगे कहती हैं, "हमने कई कोच को पदक जीतने के आधार पर इनाम दिया है या उन्हें हटा दिया है, इस आधार पर नहीं कि उन्होंने बच्चों के साथ कैसा व्यवहार किया. इसलिए आपके पैमाने व्यवहार को बिगाड़ रहे हैं. हम जानते हैं कि जब भी हम किसी चीज को मापने का पैमाना बनाते हैं, तो लोग उस पैमाने को हासिल करने के लिए अपना व्यवहार बदल लेते हैं."

कैथ बिशप मेडल के साथ (बाएं)
कैथ बिशप (बाएं) 2004 के ग्रीस ओलंपिक में रजत पदक विजेता थीं, लेकिन उनका मानना ​​है कि पदकों पर बहुत अधिक ध्यान देने से खेल नेतृत्व भटक गया हैतस्वीर: Mary Evans/IMAGO

शायद यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि ओलंपिक का असली मकसद क्या है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि नए खेलों को शामिल करने के आईओसी के फैसले का एक उद्देश्य युवा पीढ़ी को यह विश्वास दिलाना है कि ओलंपिक उनके समय के हिसाब से है, लेकिन विकास के साथ-साथ नुकसान की संभावना भी बढ़ जाती है. उम्मीद है कि ऊपर बताए गए ढांचे से इस तरह के नुकसान को कम करने में काफी मदद मिलेगी. 

बिशप ने डीडब्ल्यू को बताया, "जब हम पदक जीतते हैं, तो हम एक व्यक्ति को नुकसान पहुंचाते हैं. हम जीत के इस रास्ते में बहुत से अन्य लोगों को नुकसान पहुंचाते हैं. आखिर इसका सामाजिक मूल्य क्या है? यह बहुत नकारात्मक है. समय के साथ पदक की सच्चाई सामने आ सकती है. ठीक है, हमने इसे खरीदा. हमने बहुत सारा पैसा खर्च किया और इस दौरान लोगों को नुकसान पहुंचाया. क्या इससे हम बेहतर हो रहे हैं?”

अगर नाइकी के नए विज्ञापन को देखें तो जवाब साफ है, हां, यह सही है. नाइकी ने अपने नए विज्ञापन में युवा और बड़े खिलाड़ियों के खेलने के वीडियो दिखाकर लोगों को नाराज किया है. इसमें यह सवाल उठाया गया है कि क्या जीतने के लिए कुछ भी करना सही है?

इस जटिल समस्या का कोई आसान जवाब नहीं है. हालांकि, जब हम इस गर्मी में पेरिस में बच्चों को प्रतिस्पर्धा करते हुए देखेंगे, तो हमें उम्मीद है कि उन्हें हर तरह से बढ़ने का सबसे अच्छा मौका देने वाला एक सुरक्षित और मददगार माहौल ओलंपिक से मिलना चाहिए.