क्या अब अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत नहीं है?
२६ मई २०१७सैन्य मदद में भारी कटौती के बाद अमेरिका की तरफ से पाकिस्तान को वित्त वर्ष 2018 में 10 करोड़ डॉलर मिलेंगे. लेकिन व्हाइट हाउस ने यह फैसला अमेरिकी विदेश मंत्रालय पर छोड़ दिया है कि यह राशि मदद के तौर पर दी जाए या फिर कर्ज के रूप में. मौजूदा वित्त वर्ष 2017 सितंबर में खत्म हो रहा है.
पिछले साल पाकिस्तान को अमेरिकी विदेश मंत्रालय के बजट के तहत 53.4 करोड़ डॉलर की मदद मिली थी, जिसमें 22.5 करोड़ डॉलर की विदेशी सैन्य फंडिंग भी शामिल थी. व्हाइट हाउस में बजट प्रबंधन कार्यालय के निदेशक माइक मुलवाने का कहना है, "पाकिस्तान को विदेशी सैन्य फंडिंग लोन गारंटी के तौर पर उलब्ध करायी जायेगी." उन्होंने बताया कि ट्रंप प्रशासन ने अपने पहले बजट में बहुत से देशों को दी जाने वाली विदेशी सैन्य फंडिंग को वित्तीय लोन में तब्दील करने का प्रस्ताव रखा है. पाकिस्तान भी इन्हीं देशों में शामिल है.
कटौती के बाद भी पाकिस्तान पूरे दक्षिण एशिया में अमेरिकी मदद पाने वाले दूसरा सबसे बड़ा देश है. इस मामले में वह सिर्फ अफगानिस्तान से पीछे है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय की मदद के अलावा पाकिस्तान को अफगानिस्तान में अमेरिकी अभियान पर आने वाले खर्च का पैसा भी मिलता है.
लेकिन ट्रंप के ताजा रुख से साफ है कि वह पाकिस्तान के प्रति नीति में बड़ा बदलाव करने जा रहे हैं. दरअसल अमेरिका चरमपंथियों के खिलाफ पाकिस्तान की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं है. अमेरिकी अधिकारी अकसर आरोप लगाते हैं कि पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान तालिबान जैसे गुटों की मदद कर रहा है जो अफगानिस्तान को अस्थिर करने में जुटे हैं. अफगानिस्तान पर अपना दबदबा मजबूत करने की पाकिस्तान की कोशिशें भी अमेरिका को नागवार गुजरती है. हालांकि पाकिस्तान इस तरह की सभी बातों से इनकार करता है.
अमेरिका की डिफेंस इंटेलीजेंस एजेंसी के निदेशक विंसेट स्टुअर्ट ने सीनेट की सशस्त्र सेवा कमेटी के सामने एक सुनवाई में कहा, "उन्होंने (पाकिस्तान ने) आतंकवादी गुटों को सुरक्षित रखा हुआ है ताकि अगर अफगानिस्तान भारत की तरफ झुकता है, तो फिर वे एक सुरक्षित और स्थिर अफगानिस्तान के विचार का समर्थन नहीं करेंगे और इससे पाकिस्तान के हित प्रभावित हो सकते हैं."
हाल के सालों में अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते खराब हुए हैं. अब पाकिस्तान अमेरिका से दूर जा रहा है और अपने नजदीकी दोस्त चीन पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर हो रहा है. पाकिस्तानी रक्षा विश्लेषक और एक पूर्व सैन्य अधिकारी अयाज आवान कहते हैं कि अमेरिकी मदद में कटौती से पाकिस्तान रूस जैसे नए सहयोगी तलाशने के लिए मजबूर होगा. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "पाकिस्तान के लिए विकल्प खुले हैं. रूस इस्लामिक स्टेट को काबू करने के लिए तालिबान का समर्थन करना चाहता है. मॉस्को दक्षिण एशिया में अमेरिकी प्रभाव को कम करना चाहता है. यह बात पाकिस्तान के हक में है." वह मानते हैं कि अमेरिका अफगानिस्तान में नाकाम हो रहा है और अपनी नाकामी का दोष वह अब पाकिस्तान के ऊपर मढ़ रहा है.
जानकारों को पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते निकट भविष्य में सुधरने की उम्मीद नहीं है. सऊदी अरब में राष्ट्रपति ट्रंप के भाषण से साफ हो गया है कि जहां तक दक्षिण एशिया में अमेरिकी हितों की बात है तो पाकिस्तान को समाधान नहीं बल्कि समस्या के तौर पर देखा जाता है. ट्रंप ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के सिलसिले में पाकिस्तान का नाम लेना भी जरूरी नहीं समझा, बल्कि क्षेत्र में कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवाद पर भारत के रुख को दोहराया.
विश्लेषक खालिद जावेद जान ने डीडब्ल्यू को बताया, "अमेरिका को अब अफगानिस्तान में पाकिस्तान की जररूत नहीं है. पहले अफगानिस्तान में तालिबान को सत्ता से बाहर करने के लिए उन्हें हमारी जरूरत थी. फिर वे चाहते थे कि पाकिस्तान चरमपंथी गुटों का सफाया करे. लेकिन पाकिस्तान डबल गेम खेलता रहा (यानी अमेरिकी मदद भी ली और तालिबान को सपोर्ट भी किया)."
जान कहते हैं, "इसी वजह से अमेरिका को अफगान सेना को ज्यादा वित्तीय मदद देनी पड़ी. साथ ही साथ अमेरिका ने भारत को अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाने दिया. इसलिए अब अमेरिका को हमारी जरूरत नहीं है."