1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का दुबई में निधन

५ फ़रवरी २०२३

सेना प्रमुख, सैन्य शासक, राष्ट्रपति और सजायाफ्ता अपराधी, पाकिस्तान में कितने ही रूपों में मौजूद रहने के बाद आखिर परवेज मुशर्रफ की वतन से बाहर मौत हो गई. 79 साल के मुशर्रफ ने दुबई में आखरी सांस ली.

https://p.dw.com/p/4N7IO
Pakistan Ex-Präsident Pervez Musharraf
तस्वीर: Lefteris Pitarakis/AP/picture alliance

परवेज मुशर्रफ नहीं रहे. करीब नौ साल तक देश पर राज करने वाले जनरल मुशर्रफ का रविवार को दुबई में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. आतंकवादी हमलों से लेकर अदालत द्वारा फांसी के आदेश तक कई बार मौत को चकमा देने वाले मुशर्रफ की जान एमीलॉयडोसिस नामक एक बीमारी से हुई, जिसके कारण उनके सारे अंगों ने काम करना बंद कर दिया था. मुशर्रफ ने एक बार कहा था कि मौत से उनकी आंख मिचौली तब से जारी है जब वह बच्चे थे और आम के एक पेड़ से गिर गए थे.

भारत के कट्टर विरोध और करगिल युद्ध के रचनाकार से लेकर अमेरिका की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दाहिना हाथ बनकर अंतररष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक बनने तक मुशर्रफ ने जियोपॉलिटक्स में कई अहम भूमिकाएं निभाईं. विस्की के शौकीन एक उदारवादी चार सितारा जनरल के रूप में जाने जाने वाले मुशरर्फ ने 1999 में नवाज शरीफ की सरकार का तख्ता पलट दिया था. यह वही साल था जब भारत और पाकिस्तान के बीच करगिल में लड़ाई हुई थी और जिसके लिए नवाज शरीफ ने सेना को (यानी मुशर्रफ को) जिम्मेदार ठहराया था.

दो साल तक मुशर्रफ बिना किसी संवैधानिकता के देश पर राज करते रहे. 2001 में 9/11 आतंकी हमला हुआ जिसने पाकिस्तान को अमेरिका के लिए बेहद अहम बना दिया. अमेरिका ने अफगानिस्तान में अल कायदा के खिलाफ जंग छेड़ दी और मुशर्रफ उस जंग में अमेरिका के साथी बन गए.

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ
मुशर्रफ ने 1999 में पाकिस्तान की सत्ता संभालीतस्वीर: B.K. Bangash/AP/picture alliance

नौ साल का राज

अपने नौ साल लंबे शासन के दौरान उन्होंने अल कायदा द्वारा अपनी जान पर किए गए कम से कम तीन हमले झेले और देश को आर्थिक प्रगति की राह पर भी डाला. वह बतौर राष्ट्रपति भारत गए और कश्मीर मुद्दा सुलझाने जैसा ऐतिहासिक काम करने की कोशिश भी की. हालांकि वह ना सिर्फ इसमें नाकाम रहे बल्कि तमाम उदारवादी विशेषण पाने के बावजूद पाकिस्तान में सेना और सरकार के बीच का फर्क भी नहीं मिटा पाए.

एक बार मुशर्रफ ने कहा था, "संविधान बस एक कागज का टुकड़ा है जिसे रद्दी की टोकरी में फेंक देना चाहिए.” अपने संस्मरण ‘इन द लाइन ऑफ फायर' में उन्होंने इटली के तानाशाह नेपोलियन और अमेरिकी राष्ट्रपति रहे रिचर्ड निक्सन को अपना राजनीतिक आदर्श बताया था. दोनों ही नेताओं को उनके जिद्दीपन के लिए जाना जाता है और दोनों का ही पतन अपने घमंड के कारण हुआ.

परवेज मुशर्रफ का जन्म 11 अगस्त 1943 को भारत की राजधानी दिल्ली के मशहूर पुरानी दिल्ली इलाके में हुआ था. चार साल बाद देश का बंटवारा हो गया और उनका परिवार पाकिस्तान चला गया. 18 साल की उम्र में मुशर्रफ सेना में भर्ती हो गए और पांच साल बाद कमांडो बन गए. 1971 में जब पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए और बांग्लादेश बना, उस साल वह भारत से करारी मात खाने वाली पाकिस्तानी सेना के अफसर थे.

भारत से रिश्ते

करगिल युद्ध से ठीक पहले फरवरी 1999 में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बस से लाहौर गए थे और ऐतिहासिक शांति समझौता हुआ था. लेकिन मुशर्रफ ने करगिल कर उस शंति समझौते पर पानी फेर दिया. उसके बाद 2001 में उन्होंने खुद भारत-पाक संबंध बेहतर करने की बात कहते हुए भारत यात्रा की. तब भी भारत में वाजपेयी ही प्रधानमंत्री थे. दोनों नेताओं के बीच आगरा में शिखर वार्ता हुई. लेकिन यह वार्ता बुरी तरह नाकाम रही. 

मुशर्रफ और वाजपेयी के बीच मुलाकात तो हुई लेकिन वार्ता से पहले ही मुशर्रफ ने मीडिया में एकतरफा बयान दे दिया. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में हो रही हिंसा को 'आतंकवाद' नहीं कहा जा सकता है. भारत इससे बिल्कुल सहमत नहीं था.

अपनी किताब 'इन द लाइन ऑफ फायर' में मुशर्रफ ने लिखा है कि किसी 'तीसरे शख्स' ने आगरा सम्मेलन को कामयाब नहीं होने दिया. उन्होंने लिखा कि उस 'तीसरे' व्यक्ति ने दो बार उनका और वाजपेयी का अपमान किया. कुछ लोग कहते हैं कि उनका इशारा लाल कृष्ण आडवाणी की तरफ था. हालांकि 2006 में वाजपेयी ने मुशर्रफ की इस टिप्पणी पर कहा था कि वहां किसी की बेइज्जती नहीं हुई थी. उन्होंने कहा, “आगरा में किसी की बेइज्जती नहीं हुई थी. मेरी तो कतई नहीं. सच तो यह है कि मुशर्रफ ने कश्मीर में खून-खराबे को 'जंग-ए-आजादी' बताया था, जिसकी वजह से आगरा शिखर वार्ता नाकाम हुई थी.”

खुद को खुदा समझते थे

एक कैडेट से शुरू हुआ मुशरर्फ का सैन्य सफर सर्वोच्च पद तक पहुंचा जब 1998 में नवाज शरीफ ने उन्हें सेनाध्यक्ष नियुक्त किया. उसके अगले ही साल उन्होंने करगिल युद्ध रचा, जिसने भारत और पाकिस्तान को परमाणु युद्ध के मुहाने तक पहुंचा दिया था.

1999 में ही मुशर्रफ ने पाकिस्तानी लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता पलटकर देश की सत्ता पर कब्जा कर लिया. 2002 में एक जनमत संग्रह करवाकर वह पांच साल के लिए राष्ट्रपति बन गए लेकिन सेना प्रमुख का पद 2007 तक नहीं छोड़ा.

जब मुशर्रफ राष्ट्रपति थे, उस वक्त इस्लामाबाद में एक चुटकुला सुनाया जाता था जो कुछ यूं था कि खुदा और मुशर्रफ क्या फर्क है. जवाब है कि खुदा खुद को मुशर्रफ नहीं समझता.

तालिबान और अल कायदा के खिलाफ अमेरिका की जंग में उसका साथ देकर मुशर्रफ ने पश्चिमी जगत में खूब तारीफें बटोरीं. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने उन्हें एक ऐसा नेता बताया था जो "मजबूत और ताकतवर है और उन लोगों के निशाने पर है, जो उदारवाद को सहन नहीं कर सकते.”

परवेज मुशर्रफ
मुशर्रफ पाकिस्तान के चौथे सैन्य शासक थेतस्वीर: Zia Mazhar/AP/picture alliance

और फिर पतन

मुशर्रफ के पतन की शुरुआत 2007 में तब हुई जब उन्होंने मार्च में देश के मुख्य न्यायाधीश को बर्खास्त करने की कोशिश की. इस फैसले के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन शुरू हो गए और महीनों तक अफरातफरी मची रही जिसके बाद उन्होंने इमरजेंसी लगा दी. दिसंबर 2007 में विपक्ष की नेता बेनजीर भुट्टो को कत्ल कर दिया गया. इस घटना ने बिगड़ते माहौल की आग में घी का काम किया और 2008 में उनके सहयोगी दलों की चुनावों में करारी हार हुई.

अब मुशर्रफ अकेले पड़ गए थे. उनके खिलाफ महाभियोग की तैयारी चल रही थी जब उन्होंने इस्तीफा दे दिया और गिरफ्तारी के डर से देश छोड़ दिया. हालांकि 2013 में वह फिर से पाकिस्तान लौटे लेकिन उनका स्वागत किसी नायक की तरह नहीं अपराधी की तरह किया गया. उन पर कई मुकदमे दर्ज किए गए. तालिबान ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी और मीडिया ने उनका मजाक उड़ाया. उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहरा दिया गया और उन चुनावों में वही नवाज शरीफ जीतकर प्रधानमंत्री बने, जिनकी कुर्सी मुशर्रफ ने 1999 में पलटी थी.

शरीफ की सरकार ने मुशर्रफ पर बेनजीर भुट्टो की हत्या की साजिश का मुकदमा दर्ज किया और उन्हें घर में नजरबंद कर दिया. कभी खुद को खुदा समझने वाला देश का सबसे ताकतवर माना जाने वाला जनरल अपने ही घर में बेबस सा बंद हो गया था. 2016 में उन्हें देश से बाहर जाने की इजाजत दी गई. वह लौटने की बात कहकर इलाज कराने के लिए विदेश चले गए. 2007 में लागू की गई इमरजेंसी के लिए एक अदालत ने 2019 में उन्हें मौत की सजा सुनाई. हालांकि एक अन्य अदालत ने इस फैसले को रद्द कर दिया लेकिन पाकिस्तान में उनकी प्रासंगिकता की मौत हो चुकी थी.

वीके/एमजे (रॉयटर्स, एएफपी