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वर्जनाओं से जूझतीं पाकिस्तान की फेमेनिस्ट कॉमेडियन

मावरा बारी
९ दिसम्बर २०२२

तमाम मुश्किलों और सामाजिक अवरोधों के बावजूद पाकिस्तानी औरतें, लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ने, निजी अनुभवों को साझा करने और मर्दों के बनाए कायदों को चुनौती देने के लिए कॉमेडी यानी हास्य का इस्तेमाल कर रही हैं.

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कॉमेडी मंडली खवातून
कॉमेडी मंडली खवातूनतस्वीर: Khawatoons

माहवारी, सेक्स, बॉडी शेमिंग, उत्पीड़न, मर्दवाद, डेटिंगः पाकिस्तानी घरों या दोस्तों के बीच इन मुद्दों पर खुलेआम बहस नहीं की जाती है. लेकिन ये वर्जित विषय कॉमेडी या हास्य के रूप में पेश किए जाएं तो देखने वालों की भीड़ की हंसी फूट जाती है और लोग चहक उठते हैं. परिवार, युगल और युवा दर्शक, महिला कॉमेडियनों का अभिनय देखने के लिए टूट पड़ते हैं.

आमफहम होने के बावजूद, स्टैंड अप कॉमेडी, खासतौर पर महिला अदाकारों के लिहाज से, अभी भी एक नई चीज है. पाकिस्तान में ऐतिहासिक रूप से कॉमेडी एक बेहद पुरुष वर्चस्व वाली फील्ड रही है. चुनिंदा महिला अदाकार टीवी तक सीमित थीं.

हाल तक स्टैंड अप कॉमेडी करने वाली महिलाएं पाकिस्तान में स्वीकृति हासिल नहीं कर पाई हैं. क्योंकि महिला को अकेले और किसी साथ के बिना, मंच पर देखने में कई सारी वर्जनाएं, सामाजिक हायतौबा और नकारात्मक संकेतार्थ जुड़े हैं.

बेशक नूर जहां जैसी गायिकाएं पाकिस्तानी पॉप कल्चर की खास जरूरत रही हैं लेकिन महिला कॉमेडियनों को वही स्पेस हासिल नहीं है. पाकिस्तानी कल्चर में औरतो को आमतौर पर मजाक और चुटकलों के विषय की तरह देखा जाता है, उन्हें सुनाने वालों की तरह नहीं.

लेकिन पिछले दशक में ज्यादा स्टैंडअप कॉमेडियनों की आमद हुई है. इनमें महिलाएं भी हैं. जिन्होंने कॉमेडी में खुद के लिए जगह निकाली है.

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इनमे से कई कॉमेडियनों का कहना है कि सार्वजनिक रूप से हास्य प्रस्तुति देने से उनमें नया विश्वास और कौशल पैदा हुआ है. इसका श्रेय वो सिर्फ महिलाओं वाले कॉमेडी दलों में महसूस होने वाली सुरक्षा को देती हैं.

31 साल की अमतुल बवेजा डिजिटल कंटेट बनाती हैं और कॉमेडियन हैं. वो 2011 से प्रदर्शन कर रही हैं. उस समय वो विश्वविद्यालय की छात्रा थीं. लेकिन उन्हें कॉमेडी करने में सहजता नहीं महूसस होती थी. ये झिझक तब टूटी जब 2016 में वो द खवातून्स नाम के एक महिला हास्य मंडली में शामिल हो गईं.

उन्होनें डीडब्लू को बताया, "महिलाओं के साथ परफॉर्म करते हुए मेरा भरोसा बढ़ गया. पहले कॉमेडी बड़ी मर्दों की चीज लगा करती थी और वे भी सारे मजेदार या मजाकिया रोल ले लिया करते थे और ऑडियंस भी उन्हें ज्यादा मजाकिया मानने लगती थी और औरतों को ये जतलाया जाता था कि उनसे न हो पाएगा. लेकिन अपनी मंडली में हमी औरतें सारे किरदार निभाती थीं, मर्दों के किरदार भी और देखने वालों की हंसी बटोरती थीं."

द खवातून्स की शुरुआत पाकिस्तान की सबसे मशहूर कॉमेडियनों में से एक
द खवातून्स की शुरुआत पाकिस्तान की सबसे मशहूर कॉमेडियनों में से एक

द खवातून्स की शुरुआत पाकिस्तान की सबसे मशहूर कॉमेडियनों में से एक, फैजा सलीम ने की थी.

फैजा सलीम ने डीडब्लू को बताया कि उन्होंने ये मंडली इसलिए बनाई कि औरतों को आजादी से खुद को अभिव्यक्त करने के लिए सुरक्षित जगह हासिल हो सके और वे कॉमेडी के जरिए मुश्किल पेचीदा बातों के बारे में बात कर सकें.

बावेजा और सलीम न सिर्फ मंडली के सदस्य हैं बल्कि दोनों ने हास्य कलाकार के रूप में बड़ा ही कामयाब करियर बनाया है. उसके लिए सोशल मीडिया की ताकत और पहुंच का भी बखूबी इस्तेमाल उन्होंने किया. इन्स्टाग्राम पर बावेजा के 47 हजार फॉलोअर हैं और सलीम के 178000. वे कहती हैं कि सोशल मीडिया और महिला मंडली में रहने से उन्हें आजादी और सुरक्षा हासिल हुई है.

64 साल की रूबीना अहमद अवकाश प्राप्त सरकारी अधिकारी हैं. उन्होंने चार साल पहले स्टैंड-अप कॉमेडी शुरू की थी. उन्हें भी अपनी अदाकारी की आजादी पाकिस्तान के एक फेमेनिस्ट स्टैंड-अप मंडली की सदस्या बन कर ही हासिल हुई. इस मंडली का नाम है औरतनाक. उससे पहले वो जवान लड़कों के साथ कॉमेडी समूहों में अपनी प्रस्तुति देती आ रही थी लेकिन वहां उन्हें अपने मन के मुद्दे उठाने का मौका नहीं मिल पा रहा था.

पितृसत्ता पर हास्य की चोट

रुबीना अहमद ने रिटायर होने के बाद हाल में सोलो यानी एकल प्रस्तुति से और भी अवरोधों को गिरा दिया. इस प्रस्तुति के लिए हॉल के सारे टिकट बुक हो गए थे. उन्होंने डीडब्लू को बताया, "कॉमेडी मेरे लिए शक्कर लिपटी गोली की तरह है जो होती तो कड़वी है लेकिन निगलने में आसान होती है. मैं ज्यादातर अपनी प्रस्तुतियों में औरतों से जुड़े मुद्दे उठाती हूं. पितृसत्ता, मर्दवाद, वर्जनाएं, भावनात्मक उत्पीड़न, जेंडर पहचान, यौन प्राथमिकताएं जैसे कुछ विषय हैं जिनपर मैं अक्सर बात करती हूं."

अहमद इसके अलावा पंजाबी में भी हास्य प्रस्तुतियां देती हैं. पाकिस्तान के पंजाब सूबे में पंजाबी भाषा बोली जाती है. इस जबान में बोलने से उनकी प्रस्तुतियों में खासियत और प्रामाणिकता आ जाती है.

अपने एकल शो में अहमद, विभिन्न मिजाजों वाले श्रोताओं-दर्शकों के बीच बहुत सारी पितृसत्तात्मक दीवारें लांघती  हैं. वे विस्तार से बताती हैं कि बचपन से जवानी तक सामाजिक खांचों ने उनकी जिंदगी को जिस्मानी स्वायत्तता से महरूम कर दिया था.

वो कहती हैं, "मैं उन्हीं चीजों के बारे में बात करती हूं जिन्हें मैने अपनी जिंदगी में भुगता है. मैं काल्पनिक या बनीबनाई चीजों या हालातों के बारे में नहीं करती. मुझे लगता है कि इस बदौलत मेरा इजहार ज्यादा जेनुइन और भरोसेमंद बन जाता है."

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एक दूसरे टैबू का जिक्र करते हुए अहमद बताती हैं कि 60 साल की उम्र गुजार देने के बाद उन्हें अब जाकर महसूस हुआ है कि उनकी लैंगिक पहचान नॉन बाइनरी है यानी महज दो ही चीजों से जुडी नहीं है.

अपने फेमेनिज्म का खुला इजहार करते हुए, रुबीना अहमद स्टेज पर अपने कपड़ों के अंदर से ब्रा भी खोल देती हैं और इस तरह प्रतीकात्मक तौर पर पितृसत्ता का कब्जा उखाड़ फेंकती हैं.

बावेजा कहती हैं: "हम लोग अपनी जगह पर फिर से दावा ठोक रहे हैं. अगर कोई एक भी व्यक्ति औरतों के मुद्दों पर बात नहीं कर रहा है तो खड़े होकर बोलने की हिम्मत करना, फेमेनिस्ट यानी नारीवादी होना है. इस तरह आप प्रतिनिधित्व और बराबरी में योगदान देती हैं."

30 साल की आमना बेग देश की राजधानी इस्लामाबाद में एक पुलिस अधिकारी हैं. वो पिछले तीन साल से स्टैंड-अप कॉमेडी करती आ रही हैं.

पुरुषों के वर्चस्व वाले दो क्षेत्रों- पुलिस और कॉमेडी में आमना का दखल है, वो पुलिस बल में और मोटे तौर पर पूरे समाज में व्याप्त रूढ़ियों और लिंगभेद को अपनी कॉमेडी के जरिए उजागर करती हैं.

लेकिन उनका मुख्य उद्देश्य है पुलिसकर्मी के तौर पर अपनी पहचान को सामाजिक लांछनों, और शर्मो-हया से निजात दिलाना. वो कहती हैं: "अपनी प्रस्तुतियो में पुलिस का इंसानी चेहरा पेश करते हुए मैं उनके बारे में लोगों का नजरिया बदलने की कोशिश करती हूं. ताकि जब कभी उन्हें किसी मदद की जरूरत हो तो वे बेहिचक पुलिस के पास जा सकें. मैं भी ये बताती हूं कि औरतें भी पुलिस में जाने के काबिल होती हैं और उन्हें कोई परेशानी नहीं महसूस होती है."

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पाकिस्तान में फेमेनिस्ट कॉमेडी का भविष्य

ये महिला हास्य कलाकार, देश में बड़े पैमाने पर बाहर आती प्रतिभा की मिसाल है. ये भी पता चलता है कि महिला कॉमेडियनों के काम को पसंद किया जा रहा है, हालांकि कॉमेडी में अपना करियर बनाने के लिए औरतों के सामने अभी कई सारे अवरोध भी हैं. 

सलीम कहती हैं, "पिछले 10 साल में मैं ने बहुत सारी महिला कॉमेडियनों को ऑनलाइन, सोशलमीडिया, इंप्रोव कॉमेडी और स्टैंड-अप करते देखा है. लेकिन अभी लंबा रास्ता तय करना है. कई औरतें इस काम को पेशे के रूप में नहीं लेती हैं क्योंकि इसका पर्याप्त स्कोप नहीं है लेकिन मुझे उम्मीद है कि भविष्य में ये चीजें बदलेंगी."

वो कहती हैं कि भारत की महिला हास्य कलाकारों को अंतरराष्ट्रीय पहचान और बड़ी कामयाबी हासिल हुई है और इसमें नेटफ्लिक्स जैसे बड़े ओटीटी प्लेटफॉर्मों की भूमिका भी है जो शो के शो कमीशन कर देते हैं. लेकिन उनके मुताबिक पाकिस्तान में महिला कॉमेडियनों को भी वही अवसर मिल पाएंगे, ये कहना मुश्किल है क्योंकि उनके सामने "सामाजिक और मजहबी" अवरोध भी हैं.

अहमद आशावादी हैं: "मुझे लगता है कि आने वाले समय में हास्य परिदृश्य पर औरतें छाई होंगी. वे समझदार और विनोदी स्वभाव की हैं. वे सही मुद्दे उठाती हैं और जानती हैं कि समाज को आईना कैसे दिखाना है."