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पाकिस्तान: ईशनिंदा हत्याओं में पुलिस की भूमिका से बढ़ी चिंता

२ अक्टूबर २०२४

कार्यकर्ताओं का कहना है कि पुलिस द्वारा ईशनिंदा के दो आरोपियों की हत्या किए जाने के मामलों ने पाकिस्तान में लंबे समये से चली आ रही मानवाधिकार संबंधी चिंताओं को और गंभीर रूप दे दिया है.

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पाकिस्तान के सिंध प्रांत के उमरकोट जिले में शाह नवाज के परिवार के सदस्य मीडिया से बात करते हुए. बाईं ओर उनकी मां रहमत, बीच में पत्नी नियामत और दाहिनी ओर बेटी हरीम नवाज बैठी हैं.
परिवार का कहना है कि ईशनिंदा के आरोप में नवाज ने समर्पण किया था और हिरासत में ही उनकी हत्या की गईतस्वीर: Allah Bux/AP/picture alliance

बीते सप्ताह पाकिस्तान के सिंध प्रांत में शाह नवाज नाम के एक शख्स को पुलिस ने गोली मार दी. 32 साल के नवाज पेशे से डॉक्टर थे. पुलिस का दावा है कि नवाज ने सोशल मीडिया पर पैगंबर मुहम्मद का अपमान किया, आपत्तिजनक बातें लिखीं और गिरफ्तार किए जाने पर विरोध किया.

नवाज के घरवालों ने पुलिस के दावों को गलत बताया है. उनका कहना है कि ईशनिंदा के आरोप में नवाज ने समर्पण किया था. हिरासत में ही उनकी हत्या की गई. परिवार का यह भी कहना है कि प्रशासन ने नवाज से कहा था कि उनके पास खुद को निर्दोष साबित करने का मौका होगा.

जुलाई 2024 में एक ईसाई व्यक्ति को ईशनिंदा के मामले में सजा दिए जाने का विरोध करते पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग
जुलाई 2024 में पाकिस्तान की एक अदालत ने ईशनिंदा के आरोप में एहसान शान नाम के एक ईसाई को मौत की सजा सुनाईतस्वीर: Fareed Khan/AP/picture alliance

एक सप्ताह के भीतर यह इस तरह की हत्या का दूसरा मामला था. इससे पहले 12 सितंबर को बलूचिस्तान में एक 52 वर्षीय व्यक्ति को एक पुलिस थाने में हिरासत के दौरान मार दिया गया था. उसे भी ईशनिंदा के आरोप के बाद हिरासत में लिया गया था. 

नहीं थम रहीं पाकिस्तान में ईशनिंदा आरोपियों की हत्याएं

गैर-सरकारी संगठन 'पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग' (एचआरसीपी) ने इन हत्याओं की निंदा करते हुए अपने बयान में कहा कि वह, "ईशनिंदा के दो आरोपियों की कथित न्यायेतर हत्याओं से बेहद चिंतित है." एचआरसीपी ने बयान में कहा है, "ईशनिंदा के मामलों में हिंसा के ऐसे मामले, जिनमें कथित तौर पर पुलिसकर्मी शामिल हैं, चिंताजनक रुझान है."

ईशनिंदा कानून लंबे समय से चिंता का विषय

धार्मिक तौर पर रूढ़िवादी देश पाकिस्तान में इस्लाम के लिए अपमानजनक या आलोचक मानी जाने वाली गतिविधियों में मौत की सजा का प्रावधान है. हालांकि, अब तक किसी को भी ईशनिंदा कानूनों के तहत आधिकारिक तौर पर मौत की सजा नहीं मिली है, लेकिन ऐसे दर्जनों मामले हैं जिनमें मुकदमा चलने से पहले ही भीड़ ने आरोपी को मार दिया.

पाकिस्तान: ईशनिंदा के शक में थाने से घसीटकर मॉब लिंचिंग

पाकिस्तान में बीते कुछ वर्षों के दौरान ईशनिंदा संबंधित हत्या की घटनाएं बढ़ी हैं. कई मामलों में महज आरोप लगने भर से भीड़ उग्र हो गई. पिछले साल ईशनिंदा के आरोपों के चलते भीड़ ने पंजाब प्रांत में ईसाई आबादी वाले इलाकों में हमला बोला, कई चर्च जला दिए गए और सैकड़ों लोगों को बेघर होना पड़ा. ईसाई समुदाय का यह भी कहना है इस हिंसा में शामिल लोगों पर अब तक केस नहीं चला है.

साल 2011 में पंजाब के पूर्व गर्वनर सलमान तासीर की उनके ही बॉडीगार्ड ने हत्या कर दी थी क्योंकि वह पाकिस्तान के ईशनिंदा कानूनों में सुधार का समर्थन कर रहे थे.

पाकिस्तान: बंदूकधारियों ने पेशावर में की पादरी की गोली मारकर हत्या

पाकिस्तान में फैसलाबाद के बाहरी हिस्से में एक हिंसक भीड़ द्वारा जलाए गए चर्च की क्षतिग्रस्त इमारत का निरीक्षण करते पुलिस अधिकारी. यह तस्वीर अगस्त 2023 की है.
पाकिस्तान में बीते कुछ वर्षों के दौरान ईशनिंदा संबंधित हत्या की घटनाएं बढ़ी हैंतस्वीर: Aamir Qureshi/AFP/Getty Images

वॉशिंगटन के 'वूड्रो विल्सन सेंटर फॉर स्कॉलर्स' में दक्षिण एशिया के विशेषज्ञ माइकल कूगलमन ने डीडब्ल्यू को बताया, "इस तरह की हत्याएं धार्मिक असहिष्णुता, गहरी जड़ें जमा चुकी धार्मिक ताकतों और समस्या का सामना करने में सरकार के अनिच्छुक या असमर्थ होने जैसे कारणों का मिश्रण हैं."

कुछ मामलों में निजी दुश्मनी, बदला लेने या संपत्ति पर कब्जा करने के उद्देश्य से भी लोगों पर ईशनिंदा का आरोप लगा दिया जाता है. मानवाधिकार कार्यकर्ता ताहिरा अब्दुल्ला ने डीडब्ल्यू को बताया "कोर्ट जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती. सिर्फ सार्वजनिक तौर पर किसी के ऊपर ईशनिंदा का आरोप लगाने से भीड़ भड़क जाती है और आरोपी को लिंच कर देती है, मामले के अदालत में जाने का इंतजार किए बिना."

पाकिस्तान में चर्चों और ईसाईयों पर हमले के मामले में गिरफ्तारियां

रूथ स्टीफन, पाकिस्तान में अल्पसंख्यक अधिकारों से जुड़ी एक कार्यकर्ता हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि किसी पर ईशनिंदा का आरोप लगाना "निजी मामलों को भुनाने" का भी जरिया बनता है. वह कहती हैं कि पाकिस्तान सरकार धार्मिक कट्टरपंथियों को "संगठित और समर्थ" करती है. यह भी ईशनिंदा आरोपियों की हत्याओं में एक भूमिका निभा रहा है.

ताहिरा अब्दुल्ला कहती हैं कि इसका दीर्घकालिक समाधान यही होगा कि प्रशासन "कानून और इससे जुड़ी उन प्रक्रियाओं की समीक्षा और संशोधन करे, जिनमें 1980 के दशक में सैन्य तानाशाह जिया उल हक ने गैरकानूनी और असंवैधानिक तरीके से हस्तक्षेप किया था."

पाकिस्तान के क्वेटा में ईशनिंदा की एक कथित घटना के विरोध में सड़क जाम करते लोग.
पाकिस्तान में ऐसे दर्जनों मामले हुए हैं जिनमें ईशनिंदा के आरोपी को उग्र भीड़ ने मार डाला तस्वीर: Abdul Ghani Kakar/DW

क्या सरकार दखल दे सकती है?

एचआरसीपी ने मांग की है कि ईशनिंदा के आरोपों में पुलिस के हाथों हुई हालिया हत्याओं में सरकार स्वतंत्र जांच सुनिश्चित करे.

हालांकि, कूगलमन का कहना है कि मुस्लिम कट्टरपंथी पाकिस्तान की राजनीति में "बहुत प्रभावशाली" हैं और "सरकार व सैन्य नेतृत्व उनका विरोध नहीं करना चाहते हैं." वह कहते हैं, "हमने देखा है कि पाकिस्तान के अब तक के इतिहास में जिन लोगों ने ईशनिंदा कानूनों का बेजा फायदा उठाया और जो लोग न कानूनों का कथित तौर पर उल्लंघन करने वाले लोगों के विरुद्ध हिंसा का समर्थन करते हैं, उनके साथ सरकार नर्मी से पेश आती है."

रूथ स्टीफन कहती हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान सरकार पर दबाव डालना चाहिए कि वह ईशनिंदा हत्याओं के खिलाफ कार्रवाई करे. ऐसी कार्रवाई के क्रम में वह पाकिस्तान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने जैसी चेतावनियों का उदाहरण देती हैं. 

पाकिस्तान में भीड़ ने ईशनिंदा के आरोपी को मारकर पेड़ पर लटकाया

'यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रीलिजियस फ्रीडम' लगातार जोर देता रहा है कि पाकिस्तान सबसे सख्त और सबसे नियमित तौर पर ईशनिंदा कानूनों का इस्तेमाल करने वाले देशों में है.  

पाकिस्तान में खस्ताहाल पारंपरिक बैंड बाजा

कूगलमन के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ईशनिंदा से जुड़ी हत्याओं के चलते पाकिस्तान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की हद तक नहीं जाएगा. वह कहते हैं, "हालांकि, हमने देखा है कि पश्चिमी देशों की सरकारें कई बार यह मुद्दा उठाती हैं. इनमें अमेरिका भी है, जो धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़ी अपनी सालाना रिपोर्ट में यह दर्ज करता है. बेशक, केवल ध्यान दिलाने भर से समस्या खत्म नहीं होगी, लेकिन इसके कारण कम-से-कम यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रेखांकित होता है. यह महत्वपूर्ण है."

वह आगे कहते हैं, "अंतरराष्ट्रीय दबाव भीड़ द्वारा की जाने वाली हत्याओं को नहीं रोक सकता है, लेकिन यह इस मुद्दे पर जारूकता बढ़ा सकता है. और, इससे कम-से-कम पाकिस्तान की सरकार पर दबाव बनेगा. उसे समझ आएगा कि प्रमुख सरकारें, खासतौर पर पश्चिमी देश एक ऐसी समस्या के बारे में चिंतित हं जिसे या तो इस्लामाबाद रोकना नहीं चाहता या फिर रोकने में असमर्थ है."