रियो में हरियाणे की छोरियों का जलवा होगा
३ अगस्त २०१६विनेश फोगाट जिस तरह अपनी प्रतिद्वन्द्वियों को पटकती हैं, उसे देखकर एक बात तो साफ हो जाती है कि अबला जैसा शब्द उनके लिए नहीं है. लेकिन अबला और महिला होने की सारी परेशानियों से दूर फोगट इस वक्त रियो ओलंपिक के लिए अपनी दांव पक्के करने में जुटी हैं. वह भारत की ओर से कुश्ती में हिस्सा लेने रियो जा रही हैं. हां, फोगाट भले ही ऐसा नहीं सोचतीं कि वह महिला हैं और भारत के उस समाज से आती हैं जहां आज भी लड़कियों को इज्जत के नाम पर कत्ल किया जाता है, लेकिन उन्होंने बेड़ियां तो तोड़ ही दी हैं.
विनेश, उनकी चचेरी बहन बबीता और दोस्त साक्षी मलिक, तीनों ने ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई किया है. तीनों हरियाणा की रहने वाली हैं जो अपनी ऑनर किलिंग्स और खराब लैंगिक अनुपात के लिए बदनाम है. विनेश और साक्षी को वे पल याद आते हैं जब गांव वाले उन्हें लड़कों के साथ कुश्ती करता देख नाक-भौं सिकोड़ा करते थे क्योंकि उनके गांव में तो ज्यादातर औरतें मुंह तक ढककर रखती हैं. 21 साल की विनेश बताती हैं, "जब हम प्रैक्टिस के लिए शॉर्ट्स पहनती थीं तो लोग बड़ी गंदी निगाहों से हमें देखते थे. वे हमारे बारे में तरह तरह की बातें करते और कहते कि यह गलत है." वैसे विनेश का पूरा परिवार ही पहलवानी में है.
तस्वीरों में: क्या मेकअप सिर्फ लड़कियों के लिए?
हरियाणा में लड़कियों की स्थिति आज भी ज्यादा अच्छी नहीं है. 1000 पुरुषों पर सिर्फ 877 महिलाएं जो कि देश में सबसे खराब लैंगिक अनुपात है. आलम यह है कि लड़कियों की कमी के कारण लड़कों की शादियां भी नहीं हो पा रही हैं. ऐसे में साक्षी मलिक जब बड़ी हो रही थीं तो लोग उनके परिवार को कहते थे कि बेटी को पहलवानी ना सिखाएं क्योंकि उससे उनके कान बड़े हो जाएंगे और फिर शादी नहीं होगी. पहलवानों में कान बड़े हो जाना आम बात है. 23 साल की मलिक कहती हैं, "दुख तो होता था. मैं सोचती थी कि लोग ऐसी बातें क्यों करती हैं. तब तो मैं इतनी छोटी थी. इसे मुझे भी खुद पर संदेह होने लगा था." मलिक ने सिर्फ 12 साल की उम्र में कुश्ती शुरू कर दी थी.
लेकिन, लड़की होने के मायने बदलतीं इन लड़कियों की सोच बबीता फोगाट की बड़ी बहन गीता ने बदली. गीता फोगाट भी पहलवान हैं और 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था. वह ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई करने वाली पहली महिला पहलवान बनी थीं.
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वैसे, यह भी छोटी बात नहीं है कि इन लड़कियों की सफलता के पीछे एक पुरुष है जो लौह बनकर खड़ा रहा है. महावीर सिंह फोगाट खुद एक पहलवान रहे हैं. वह अपनी इन बच्चियों को किसी भी पुरुष से ज्यादा ताकतवर बनाने के लिए मेहनत करते रहते हैं. विनेश उनकी भतीजी हैं. वह कहती हैं, "वह लड़कों को उतना नहीं डाटंते थे जितना हमें डांटते थे. वह हमेशा कहते थे कि तुम उनसे कमजोर नहीं हो." विनेश बताती हैं कि महावीर के हाथ में हमेशा एक छड़ी होती थी. जब दूसरे माता-पिता अपनी बेटियों को शादी के लिए तैयार कर रहे थे तब महावीर उन्हें कुश्ती के दांव सिखा रहे थे. वह बताते हैं, "हरियाणा में जो संस्कृति है, उसके हिसाब से यह आसान तो नहीं था. गांव वालों ने तो मुझसे बात करना ही बंद कर दिया था. मेरे अपने माता-पिता मुझे रोज कोसते थे. यह सब बकवास सुनकर मुझे गुस्सा भी बहुत आता था. लेकिन मैं बस लगा रहा यह सोचकर कि इन सबको गलत साबित करूंगा. मुझे लोगों को दिखाना था कि ये लड़कियां कुछ भी कर सकती हैं."
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और कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत की महिला पहलवानों को मिले मेडल ने सब बदल दिया. उसके बाद सबकी नजरें बदल गईं और उनमें सम्मान आ गया. अब ये लड़कियां रियो ओलंपिक के लिए मेहनत कर रही हैं और अगर वहां एक भी मेडल आ गया तो यह ऐसा इतिहास होगा जिसके नक्श ए कदम से लाखों लड़कियों की जिंदगी बदल जाएगी.