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भारत में बढ़ते जा रहे हैं आपराधिक छवि वाले सांसद

चारु कार्तिकेय
६ जून २०२४

एक रिपोर्ट के मुताबिक इन लोकसभा चुनावों में जीतने वाले प्रत्याशियों में से 46 प्रतिशत ऐसे हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. आखिर भारत में चुनाव दर चुनाव ऐसे सांसदों की संख्या बढ़ती क्यों जा रही है?

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आपराधिक मामलों का सामना कर रहे सांसद
चुनाव दर चुनाव आपराधिक मामलों का सामना कर रहे सांसदों की संख्या बढ़ती जा रही हैतस्वीर: India's Press Information Bureau/REUTERS

लोकतंत्र में सुधार के मुद्दों पर काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इन लोकसभा चुनावों में जीतने वाले सभी प्रत्याशियों के हलफनामों का अध्ययन कर यह जानकारी निकाली है.

एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 543 जीतने वाले प्रत्याशियों में से 46 प्रतिशत (251) प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. इसके अलावा सभी जीतने वाले प्रत्याशियों में 31 प्रतिशत (170) ऐसे हैं जिनके खिलाफ बलात्कार, हत्या, अपहरण आदि जैसे गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.

27 जीतने वाले प्रत्याशी ऐसे हैं जो दोषी भी पाए जा चुके हैं और या तो जेल में हैं या जमानत पर बाहर हैं. चार जीतने वाले प्रत्याशियों के खिलाफ हत्या के मामले, 27 के खिलाफ हत्या की कोशिश के मामले, दो के खिलाफ बलात्कार, 15 के खिलाफ महिलाओं के खिलाफ अन्य अपराध, चार के खिलाफ अपहरण और 43 के खिलाफ नफरती भाषण देने के मामले दर्ज हैं.

भारतीय चुनाव
भारतीय चुनावों में पैसों और बल की भूमिका बढ़ती जा रही हैतस्वीर: Rajesh Kumar Singh/AP Photo/picture alliance

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि किसी साफ पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशी की जीतने की संभावना सिर्फ 4.4 प्रतिशत है, जबकि आपराधिक मामलों का सामना कर रहे प्रत्याशी की जीतने की संभावना 15.3 प्रतिशत है.

किस पार्टी और किस राज्य में सबसे ज्यादा

बीजेपी के 240 विजयी प्रत्याशियों में से 39 प्रतिशत (94), कांग्रेस के 99 विजयी प्रत्याशियों में से 49 प्रतिशत (49), सपा के 37 में से 57 प्रतिशत (21), तृणमूल कांग्रेस के 29 में से 45 प्रतिशत (13), डीएमके के 22 में से 59 प्रतिशत (13), टीडीपी के 16 में से 50 प्रतिशत (आठ) और शिवसेना (शिंदे) के सात में से 71 प्रतिशत (पांच) प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. आरजेडी के 100 प्रतिशत (चारों) प्रत्याशियों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.

स्थिति को राज्यवार देखें तो केरल सबसे आगे है, जहां विजयी प्रत्याशियों में से 95 प्रतिशत के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. उसके बाद तेलंगाना (82 प्रतिशत), ओडिशा (76 प्रतिशत), झारखंड (71 प्रतिशत) और तमिलनाडु (67 प्रतिशत) जैसे राज्यों का स्थान है.

इनके अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, गोवा, कर्नाटक और दिल्ली में 40 प्रतिशत से ज्यादा विजयी प्रत्याशी आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं.

बढ़ती जा रही है ऐसे नेताओं की संख्या

एडीआर की रिपोर्ट दिखा रही है कि चुनाव दर चुनाव ऐसे सांसदों की संख्या बढ़ती जा रही है जिनके खिलाफ आपराधिक और गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. 2009 में लोकसभा में आपराधिक मामलों का सामना कर रहे सांसदों की संख्या 30 प्रतिशत थी.

2014 में यह संख्या बढ़ कर 34 प्रतिशत, 2019 में 43 प्रतिशत और 2024 में 46 प्रतिशत हो गई. गंभीर आपराधिक मामलों वाले सांसदों की संख्या देखें तो 2009 में उनकी संख्या 14 प्रतिशत थी, 2014 में बढ़कर 21 प्रतिशत, 2019 में 29 प्रतिशत और 2024 में 31 प्रतिशत हो गई.

लेकिन आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? एडीआर के संस्थापक जगदीप छोकर ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह संख्या इसलिए बढ़ गई है क्योंकि राजनीतिक दल यह मान नहीं रहे हैं कि जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हों ऐसे लोगों को चुनाव लड़ाना देश के लिए अच्छा नहीं हैं. यह सबसे महत्वपूर्ण कारण है."

कुछ जानकार इसे देश की कानून व्यवस्था और राजनीति के चरित्र से भी जोड़ कर देखते हैं. बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार की कंसल्टिंग एडिटर अदिति फडनिस कहती हैं, "पहली बात तो यह कि आज जिसके पास संसाधन नहीं हैं उसके लिए चुनाव लड़ना बहुत मुश्किल हो गया है. जब आप चुनाव लड़ने का खर्च उठा नहीं सकते हैं तो संसाधन जुटाने यानी अमीर बनने के रास्तों में से एक होता है कानून तोड़ के पैसा कमाना."

आपराधिक छवि
पार्टियों को भी यह समझने की जरूरत है कि वो आपराधिक छवि वाले लोगों को टिकट ना देंतस्वीर: Amit Dave/REUTERS

डीडब्ल्यू से बातचीत में अदिति ने बताया, "दूसरी बात यह है कि हमारा तंत्र में मुकदमे बहुत होते हैं. आपने कोई टैक्स नहीं भरा हो या कोई सरकारी बिल नहीं दिया हो तो भी आपके खिलाफ मुकदमा दायर हो सकता है."

एक और समस्या का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "तीसरी बात यह है कि पिछले करीब 15 सालों में पीएमएलए अधिनियम का इस्तेमाल - विशेष रूप से विदेशी फंडिंग के मामलों में - काफी बढ़ गया है. कानून काफी कड़ा है और आप पाएंगे कि खासकर जन प्रतनिधियों के खिलाफ लंबित मामलों में से कई मामले इसी कानून के तहत हैं."