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सिर्फ पुरुषों में ही नहीं, महिलाओं में भी लैंगिक पूर्वाग्रह

१३ जून २०२३

लैंगिक पूर्वाग्रह महिलाओं और पुरुषों में बड़े पैमाने पर मौजूद है. यह महिलाओं और पुरुषों को समान रूप से प्रभावित करता है. मसलन, दुनिया की 69 प्रतिशत आबादी को अभी भी लगता है कि पुरुष, महिलाओं से ज्यादा अच्छे नेता बनेंगे.

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चौंकाने वाली बात है कि एक चौथाई जनसंख्या पुरुषों का पत्नी पर हाथ उठाना जायज मानती है.
चौंकाने वाली बात है कि एक चौथाई जनसंख्या पुरुषों का पत्नी पर हाथ उठाना जायज मानती है.तस्वीर: Issei Kato/REUTERS

संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रह आज भी समाज में बहुत गहराई तक पैठ बनाए हुए है. आंकड़े बताते हैं कि 'मी टू' जैसे अभियानों के बावजूद पिछले दशक में महिलाओं की छवि में कोई बदलाव नहीं आया है.

सयुंक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने इस रिपोर्ट में जिन लोगों को शामिल किया, उनमें से 90 फीसदी ने कम से कम एक लैंगिक पूर्वाग्रह से ग्रस्त होने की बात स्वीकार की. लैंगिक पूर्वाग्रह केवल पुरुषों के लिए ही नहीं, महिलाओं के लिए भी सामान्य बात है.

रिपोर्ट के मुताबिक, "ये पूर्वाग्रह पुरुषों और महिलाओं, दोनों के भीतर बड़े स्तर पर मौजूद हैं. इनसे संकेत मिलता है कि ये पूर्वाग्रह काफी अंदर तक घुसे हुए हैं और ये महिलाओं और पुरुषों को समान रूप से प्रभावित करते हैं."

सोच में घुसा है लैंगिक पूर्वाग्रह

मिसाल के तौर पर, दुनिया की 69 प्रतिशत जनसंख्या को अभी भी लगता है कि पुरुष, महिलाओं से ज्यादा अच्छे नेता बनेंगे. सिर्फ 27 प्रतिशत लोगों का मानना है कि महिलाओं के लिए बराबरी का अधिकार लोकतंत्र के लिए जरूरी है. इसी तरह लगभग 46 प्रतिशत लोगों को लगता है कि पुरुषों का नौकरी पर ज्यादा अधिकार है, वहीं 43 प्रतिशत लोग सोचते हैं कि पुरुष बेहतर कारोबारी बनेंगे.

चौंकाने वाली बात है कि एक चौथाई जनसंख्या पुरुषों का पत्नी पर हाथ उठाना जायज मानती है. वहीं 28 प्रतिशत लोग मानते हैं कि विश्वविद्यालय जाना पुरुषों के लिए अधिक महत्वपूर्ण है.

यह भी पाया गया कि पूर्वाग्रह महिलाओं के लिए मुश्किलें पैदा करता है. रिपोर्ट के अनुसार, "पू्र्वाग्रही लैंगिक सामजिक मानदंडों से छुटकारा पाए बिना हम लैंगिक समानता या सतत विकास का लक्ष्य नहीं हासिल कर सकते." हेरिबर्टो टापिया, यूएनडीपी में शोध और रणनीतिक सामरिक साझेदारी की सलाहकार और रिपोर्ट की सह-लेखक है. उन्होंने कहा, "समय के साथ जितना सुधार हुआ है, वो काफी निराशाजनक है."

पाया गया कि जिन 57 देशों में महिलाएं, पुरुषों से ज्यादा पढ़ी-लिखी हैं, वहां भी आमदनी में 39 प्रतिशत का औसत अंतर है. शिक्षा को हमेशा से ही महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुधारने का अहम जरिया माना गया, लेकिन सर्वे से सामने आए ब्योरे पढ़ाई और आमदनी के बीच के फासले को उजागर करते हैं.

दुनिया में सब पुरुषों के पैमाने पर ही क्यों बनाया जाता है?

एचवी/एसएम (एएफपी, रॉयटर्स)