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स्टूडेंट लोन नहीं मिला तो लगाई मुख्यमंत्री से गुहार

मनीष कुमार
१४ जुलाई २०२१

बिहार में पांच साल बाद फिर से जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम आयोजित किया गया. 2016 में प्रदेश में लोकसेवा अधिकार कानून लागू होने के बाद इसे बंद कर दिया गया था. आखिर क्या है जनता दरबार फिर से शुरू करने की वजह?

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Indien | Nitish Kumar im Bürgerdialog
तस्वीर: CMO Bihar

मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को आयोजित इस कार्यक्रम में लोगों की समस्याएं सुनीं और उसके त्वरित समाधान के लिए दिशा-निर्देश जारी किए. शिकायतों को सुनकर मुख्यमंत्री हैरान हुए तथा सरकारी कार्यप्रणाली पर कई बार आश्चर्य भी प्रकट किया. अंतत: उन्हें यह कहना पड़ा कि अच्छा हुआ, जनता दरबार फिर शुरू किया. दरअसल, इस कार्यक्रम से एक ओर मुख्यमंत्री को जनता की समस्याओं से रूबरू होने का मिलता है तो वहीं दूसरी ओर सिस्टम से हैरान-परेशान आमजन को अपनी बात सीधे सीएम तक पहुंचाने का मौका मिल जाता है.

मीडिया के मौके पर मौजूद रहने के कारण शिकायत विशेष खास चर्चा में भी आ जाती है. ऐसे में कई बार उसका समाधान भी हो जाता है या फिर उसकी गुंजाइश बढ़ जाती है. जानकार इस आयोजन को मुख्यमंत्री के लिए व्यवस्था को देखने का आईना मानते हैं. यही काम राजा-महाराजा भी अपने दौर में दरबार लगा कर करते थे. कई कुशल राजा तो वेश बदलकर अपने राज्य में घूमते थे, ताकि वे प्रजा की समस्याओं को समझ सकें व अपनी प्रशासनिक व्यवस्था की खामियों को जान सकें.

फीडबैक पर फिर शुरू हुआ जनता दरबार

2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार ने फिर से जनता दरबार शुरू करने की बात कही थी. मुख्यमंत्री ने कहा भी, "जब लोगों से मुलाकात होती थी तो वे कहते थे कि जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम को फिर से शुरू किया जाए. यदि इसे जारी रखा जाएगा तो लोगों को सुविधा होगी, क्योंकि बहुत से लोग लोक शिकायत निवारण कानून में नहीं जा पाते हैं. इसी को देखते हुए हमने तय किया कि पिछली बार की तरह ही हर महीने के तीन सोमवार को यह आयोजित किया जाए." मुख्यमंत्री ने साथ ही यह भी कहा कि हमलोगों को लगा कि लोक शिकायत निवारण कानून तो है ही, लेकिन लोगों की बातें भी सुननी चाहिए.

Indien | Nitish Kumar im Bürgerdialog
शिकायत के बारे में अधिकारियों से बात करते मुख्यमंत्रीतस्वीर: CMO Bihar

जनता दरबार शुरू होने के बाद मुख्यमंत्री को अपने प्रशासन की समस्याओं से भी सामना हुआ. मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम से यह अनुभव हुआ कि लोगों की किस-किस प्रकार की समस्याएं हैं. अपनी यात्राओं के दौरान भी मिलने वाली शिकायतों पर गौर किया और इसी के आधार पर कई तरह के कानून भी बनाए गए. उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यह देखा गया कि जमीनी विवाद और संपत्ति को लेकर हिंसा के ज्यादा मामले काफी हैं. इसके बाद राज्य में भूमि सर्वे कराने का निर्णय लिया गया जो अभी चल ही रहा है. तभी यह विचार आया कि क्यों न लोगों को इसके लिए कानूनी अधिकार दे दिया जाए और इस तरह लोक शिकायत निवारण कानून 2016 में अस्तित्व में आया.

शिकायतों से हैरान हुए मुख्यमंत्री

लोगों की शिकायतों को सुन कर मुख्यमंत्री को आखिरकार यह कहना पड़ गया, "यह तो गलत है. एक-एक चीज का पता चल रहा है. अच्छा हुआ कि हमने इसे फिर से शुरू कर दिया." उन्होंने कई मौके पर तल्ख अंदाज में कहा, यह ठीक नहीं. एक आंगनबाड़ी सेविका के पति ने 2018 से पत्नी को मानदेय नहीं मिलने की शिकायत की. इस पर सीएम काफी अचंभित हुए. पूछा, ऐसा कैसे हो रहा है. तुरंत ही समाज कल्याण विभाग के अपर मुख्य सचिव को लाइन पर लिया. इसी बीच एक अन्य आंगनबाड़ी सेविका ने तीन वर्ष से मानदेय भुगतान नहीं होने की शिकायत की. चौंकते हुए मुख्यमंत्री ने फिर अपर मुख्य सचिव को फोन लगाया, किंतु फोन समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी ने उठाया. अपर मुख्य सचिव दफ्तर से निकल चुके थे. सीएम ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई और तल्ख अंदाज में मंत्री से कहा, "यह ठीक नहीं है. दो मामले सामने आए हैं. सभी जगह पता कीजिए."

इसी बीच समाज कल्याण विभाग के आंगनबाड़ी से ही संबंधित एक और मामला आ गया. समस्तीपुर की महिला ने सीएम को बताया कि जिले के विभूतिपुर प्रखंड में 2017 में ही आंगनबाड़ी सेविका के लिए आवेदन दिया था. अभी तक नियुक्ति नहीं हुई है. इस बार सीएम झल्ला गए और कहा, ऐसा कैसे हो रहा है. इसी तरह गया के एक मामले में उन्हें शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी को फोन लगाना पड़ गया. मामला गया के एक गांव से संबंधित था. वहां 2007 से ही प्राथमिक विद्यालय के लिए जमीन उपलब्ध थी, लेकिन अब तक भवन नहीं बनाया गया था. शिकायतकर्ता ने उन्हें बताया कि तीन बार इस मामले को जनता दरबार में लाया गया, जिलाधिकारी के पास भी गुहार लगाई गई, लेकिन नतीजा सिफर रहा. इस पर नीतीश ने कहा, आश्चर्य है. हमलोगों ने बीसों हजार विद्यालय भवन बनाए. ऐसा कैसे हो रहा है.

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मुख्यमंत्री से बात करने वालों के लिए कोरोना प्रोटोकॉलतस्वीर: CMO Bihar

तरह तरह की शिकायतें

स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड दिलाने की गुहार लगाते हुए एक युवती ने रोते हुए कहा कि गलती से उसने दो महीने तक स्वयं सहायता भत्ता ले लिया है. इसी वजह से उसे स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड के तहत लोन नहीं दिया जा रहा. वह भत्ते की राशि लौटा देगी. उसे लोन दिलवा दिया जाए. उसके पापा विकलांग हैं और सब्जी बेचकर घर चल रहा है. वह आगे पढ़ना चाहती है. इस पर सीएम ने फिर शिक्षा मंत्री से मामले को देख लेने का आग्रह किया. दो युवतियों ने दो-तीन साल पहले ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद भी मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना के तहत मिलने वाली प्रोत्साहन राशि अब तक नहीं मिलने की शिकायत की. वहीं एक युवक ने शिकायत के दौरान कहा, उसे ब्लैक फंगस है. उसका उपचार कराया जाए. यह सुनते ही सभी सतर्क हो गए. मुख्यमंत्री ने तुरंत विभागीय अधिकारी के पास युवक को भेजा. बाद में उसकी जांच करवाई गई. हालांकि उसे ब्लैक फंगस नहीं था.

बिहार में किसान बने फिल्ममेकर

इस बार कॉन्ट्रैक्ट पर रखे गए लोगों ने नौकरी से हटाए जाने की भी काफी शिकायत की. इस पर अधिकारियों ने सीएम को बताया कि मामला शिकायतकर्ता व एजेंसी के बीच का है और उसमें सरकार कहीं भी नहीं आती. नवादा से आए एक युवक ने मुख्यमंत्री से कहा कि भोजपुरी व मगही गीतों में अश्लीलता व हिंसा को बढ़ावा देने के लिए जिस तरह के शब्दों का प्रयोग हो रहा है वह सामाजिक गरिमा के लिए नुकसानदेह है. इस पर तत्काल रोक लगाए जाने की जरूरत है. यह सुनकर उन्होंने कला-संस्कृति व युवा विभाग को आवश्यक निर्देश दिए. पांच घंटे के इस कार्यक्रम में एक महिला ने जनता दरबार में आने के क्रम में जांच के दौरान अपना लॉकेट गुम होने का भी आरोप लगाया.

कोरोना के कारण प्रक्रिया में बदलाव

कोविड के कारण इसका आयोजन टलता रहा. कोरोना महामारी के इस दौर में काफी एहतियात बरतते हुए जनता दरबार की व्यवस्था में थोड़ा बदलाव किया गया. पहले भी तिथि विशेष पर विभागों को तय किया जाता था और उससे संबंधित शिकायतों को मुख्यमंत्री सुनते थे. संबंधित विभागीय अधिकारी मौके पर मौजूद रहते थे, जो उसके त्वरित समाधान के लिए तत्काल दिशा-निर्देश जारी करते थे. इस बार भी विभाग तय किए गए थे. स्वास्थ्य, शिक्षा, समाज कल्याण, वित्त, श्रम संसाधन, सामान्य प्रशासन, कला-संस्कृति व युवा, अल्पसंख्यक कल्याण, पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग कल्याण व सूचना प्रौद्योगिकी विभाग से संबंधित शिकायतें सुनीं गईं.

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महीने के तीन सोमवार को लगेगा जनता दरबारतस्वीर: CMO Bihar

अब हर महीने के तीन सोमवार को जनता दरबार किया जाना तय किया गया है. बदली व्यवस्था में इस बार मोबाइल ऐप के जरिए शिकायतों को सूचीबद्ध किया गया. जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं था उन्होंने प्रखंड विकास पदाधिकारी, अनुमंडल अधिकारी या जिलाधिकारी के कार्यालय में जनता दरबार में शामिल होने के लिए आवेदन दिया था. आवेदनों पर क्यूआर कोड लगाया गया था. उसे स्कैन करते ही संबंधित शिकायत की जानकारी प्रतिनियुक्त अधिकारी को मिल जाती थी. इस बार शिकायतकर्ताओं को पटना लाने और फिर घर पहुंचाने की भी व्यवस्था की गई. जनता दरबार में आने वालों को कोरोना जांच की आरटी-पीसीआर रिपोर्ट के आधार पर प्रवेश देने की व्यवस्था थी. इस बार 146 लोगों ने अपनी शिकायतें मुख्यमंत्री के समक्ष रखीं, जिनमें 118 पुरुष व 28 महिलाएं थीं.

शिकायत निवारण की खामियां आई सामने

पांच साल बाद शुरू हुए जनता दरबार में जितने लोग अपनी गुहार लगाने अंदर थे, उससे कहीं ज्यादा लोग बाहर थे. इन शिकायतों ने मुख्यमंत्री के समक्ष सिस्टम की खासकर निचली कतार की करतूतों से अवगत कराया. वहीं ये फरियादें लोक शिकायत निवारण कानून को कटघरे में खड़े करने को काफी थीं. जाहिर है, इस पर राजनीति भी शुरू हो गई. बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने तंज कसते हुए कहा, "नीतीश कुमार अधिकारियों के मुख्यमंत्री हैं, जनता के नहीं. तामझाम से शुरू किया गया यह कार्यक्रम एक आईवॉश है."

वहीं प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के चेयरमैन राजेश राठौड़ कहते हैं, "2005 से 2015 तक लगातार जनता दरबार का आयोजन करने वाले मुख्यमंत्री को यह स्पष्ट करना चाहिए कि जनता दरबार में अब तक कितने आवेदन आए और कितने फरियादियों को न्याय मिला, साथ ही कितने मामले निष्पादित हुए." इसके जवाब में जदयू के प्रदेश उपाध्यक्ष संजय सिंह कहते हैं, "मुख्यमंत्री जनता से सीधा संवाद करते हैं. उनकी पीड़ा सुनकर उसका निवारण करना उनकी कार्यशैली है. सरकार का ही एक ही लक्ष्य है- जनसेवा." बातें जो भी हों, लेकिन इतना तो तय है कि शिकायतों पर मुख्यमंत्री का हैरान होना सिस्टम की करतूत पर उनकी झल्लाहट ही है, जिसे वे कसौटी पर खरा देखना चाहते हैं.