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नीति आयोग: पांच साल में 13.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले

आमिर अंसारी
१८ जुलाई २०२३

नीति आयोग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पांच साल के अंतराल में बहुआयामी गरीबी 2015-16 के 24.85 प्रतिशत के मुकाबले 2019-21 में घटकर 14.96 प्रतिशत हो गई है.

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रिपोर्ट के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में 5.27 प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण आबादी का 19.28 प्रतिशत बहुआयामी रूप से गरीब है
रिपोर्ट के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में 5.27 प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण आबादी का 19.28 प्रतिशत बहुआयामी रूप से गरीब हैतस्वीर: Aamir Ansari/DW

नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक दो नेशनल फैमिली हेल्‍थ सर्वे (एनएफएचएस) के पांच साल के अंतराल में 13.5 करोड़ से ज्‍यादा लोग गरीबी रेखा से बाहर आये हैं और गरीबों की संख्‍या में 14.96 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है.

नीति आयोग की रिपोर्ट "राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई), एक प्रगति समीक्षा 2023" सोमवार 17 जुलाई को जारी की गई. इसके मुताबिक उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान में गरीबी दर में सबसे तेज कमी देखी गई.

रिपोर्ट दावा करती है कि भारत की बहुआयामी गरीबी में महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गई है, जो 2015-16 में 24.85 प्रतिशत से घटकर 2019-21 में 14.96 प्रतिशत हो गई. नीति आयोग का दावा है कि पांच साल में गरीबी 9.89 प्रतिशत घटी है.

ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट

रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट आई है. रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी 32.59 प्रतिशत से घटकर 19.28 प्रतिशत हो गई, जबकि शहरी क्षेत्रों में गरीबी 8.65 प्रतिशत से घटकर 5.27 प्रतिशत हो गई.

हालांकि, सकारात्मक रुझानों के बावजूद कुछ बिंदुओं पर अब भी चिंता कायम है. जैसे कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच असमानताएं बनी हुई हैं. रिपोर्ट से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों में 5.27 प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण आबादी का 19.28 प्रतिशत बहुआयामी रूप से गरीब है.

गरीबों के घरों में मुस्कान बिखेरती चंपा

इस अंतर को पाटने और समाज के सभी वर्गों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए ठोस प्रयासों और लक्षित हस्तक्षेप की जरूरत होगी. राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के स्तर के मापदंड में लोगों की वित्तीय स्थिति को मापा जाता है. इसे 12 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) से जुड़े इंडिकेटर्स से दिखाया जाता है.

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में एमपीआई मूल्य 0.117 से आधा होकर 0.066 हो गया है और 2015-16 से 2019-21 के बीच गरीबी की तीव्रता 47 प्रतिशत से घटकर 44 प्रतिशत हो गई है. इससे भारत एसडीजी लक्ष्य 1.2 (बहुआयामी गरीबी को कम से कम आधे कम करने) को हासिल करने की राह पर आगे बढ़ गया है.

पांच साल में गरीबी घटने का दावा
पांच साल में गरीबी घटने का दावा तस्वीर: Aamir Ansari/DW

बड़ा हिस्सा अब भी बुनियादी सुविधाओं से दूर

रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा पोषण, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं तक अपर्याप्त पहुंच समेत अलग-अलग अभावों से जूझ रहा है.

नीति आयोग की रिपोर्ट भले ही भारत में गरीबी घटना का दावा कर रही हो लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि कोरोना काल के दौरान भारत में गरीबी बढ़ी थी. पिछले साल वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट "पॉवर्टी एंड शेयर्ड प्रॉस्पैरिटी 2022" में कहा गया था कि कोविड-19 के कारण भारत में 5.6 करोड़ लोग गरीबी में चले गए.

रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक अत्यधिक गरीबी (यानी 2.15 डॉलर से कम पर जीवनयापन करने वाले लोगों की संख्या) 2019 में 8.4 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में अनुमानित 9.3 प्रतिशत हो गई. इसका अर्थ है कि दुनियाभर में गरीबों की संख्या 7.1 करोड़ बढ़ी है, जिनमें 80 फीसदी के करीब भारत में थे.