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भारत के सैन्य अभ्यास में पहली बार जर्मनी की वायु सेना

धारवी वैद
६ अगस्त २०२४

भारतीय वायु सेना पहली बार कई देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास कर रही है. इसमें दूसरे देशों के साथ जर्मनी की वायु सेना भी पहली बार भारतीय जमीन पर सैन्य अभ्यास में शामिल हो रही है.

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हनोवर के एक सैन्य अभ्यास में एयरबस ए400एम विमान
जर्मनी ने इस सैन्य अभ्यास के लिए एयरबस ओ 400 एम और तस्वीर: Julian Stratenschulte/dpa/picture alliance

दुनिया के कई हिस्सों से दर्जनों युद्धक विमानों का बेड़ा दक्षिण भारत के सुलुर एयरबेस पर पहुंच चुका है. मंगलवार से शुरू हो रहा यह सैन्य अभ्यास कई मामलों में अनोखा है. इसे तरंग शक्ति नाम दिया गया है. इसमें जर्मनी समेत 10 देश अपने विमानों के साथ हिस्सा ले रहे हैं. इस मौके पर जर्मन रक्षा मंत्री भी भारत आए हैं. पर्यवेक्षकों को भी मिला दें तो कुल 18 देशों की इसमें भागीदारी है. दक्षिण एशिया में इस तरह के सैन्य अभ्यास कम ही होते हैं.

भारतीय वायु सेना ने 51 मित्र देशों को इस सैन्य अभ्यास के लिए निमंत्रण भेजा था. यह अभ्यास दो चरणों में हो होगा. पहला चरण मंगलवार, 6 अगस्त से 14 अगस्त तक है. इसमें जर्मनी, फ्रांस, स्पेन और ब्रिटेन भारत के साथ युद्ध की अलग-अलग स्थितियों का अभ्यास करेंगे.

भारत और जर्मनी रक्षा संब्ध बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं

तरंग शक्ति का दूसरा चरण इसी महीने के आखिर में होना है. इसके लिए राजस्थान के जोधपुर एयरबेस पर तैयारी चल रही है. इसमें ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, सिंगापुर, ग्रीस, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका हिस्सा लेंगे. 

पिछले हफ्ते भारतीय वायु सेना के वाइस चीफ एयर मार्शल एपी सिंह ने पत्रकारों से कहा, "इस अभ्यास का मकसद अंतरराष्ट्रीय समुदाय के हमारे मित्रों के साथ रणनीतिक रिश्तों को मजबूत करना है."

इटली में नाटो के सैन्य अभ्यास में हिस्सा लेता जर्मन वायु सेना का यूरोफाइटर
जर्मन वायु सेना यूरोफाइटर टायफून लड़ाकू विमान के साथ सैन्य अभ्यास में हिस्सा ले रही हैतस्वीर: Baris Seckin/AA/picture alliance

जर्मन विमानों पर रहेगी नजर

पहली बार जर्मनी के विमान इस अभ्यास के लिए भारत आए हैं. इस अभ्यास से पहले ही दोनों देश अपने रक्षा संबंधों को मजबूत बनाने की दिशा में बढ़ने का एलान कर चुके हैं. जर्मन वायु सेना लुफ्तवाफे यूरोफाइटर टायफून जेट विमानों का बेड़ा ले कर आई है. इसके साथ ही एयरबस ए400एम परिवहन विमान को भी भारतीय अभ्यास में तैनात किया गया है. भारतीय सेना अंतरराष्ट्रीय बाजार में मध्यम आकार के परिवहन विमानों की तलाश में है.

वायु सेना के रिटायर हो चुके एयर मार्शल अनिल चोपड़ा ने डीडब्ल्यू को बताया, "भारतीय वायु सेना मध्यम आकार के परिवहन विमानों की तलाश में है. इसके लिए तीन विमानों पर नजर हैः ब्राजील का एमब्रेयर सी-390, एयरबस ए400एम जिसमें जर्मनी साझीदार है और लॉकहीड सी-130 जो अमेरिका की ओर से पहले ही उड़ान भर रहे हैं."

चोपड़ा ने यह भी कहा, "हमने जर्मनों और फ्रांसीसियों के साथ मध्यपूर्व में कुछ अभ्यासों के दौरान एयरबस ए400एम को पहले उड़ाया है, वहां इन देशों ने हमें ये विमान दिखाए थे. देखते हैं आगे यह कैसे बढ़ता है."

भारत को लेकर जर्मन कंपनियों की उम्मीद बढ़ी

रक्षा पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह अभ्यास भारत को यूरो फाइटर और ए400एम को वास्तविक परिस्थितियों में परखने का एक अच्छा मौका देगा. दिल्ली में मनोहर पर्रिकर इंस्टिट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस की एसोसिएट फेलो स्वास्ति राव का कहना है, "जर्मनी के ए400एम की भार उठाने की क्षमता 37 टन है, अगर आप भारत के टेंडर को देखें तो, हमारी जो जरूरत है, जर्मनी उससे थोड़ा ज्यादा दे रहा है जो भारत के लिए अच्छा है."

राव ने ध्यान दिलाया कि भारत को मध्यम आकार के परिवहन विमान की जरूरत लद्दाख इलाके में चीन के साथ चल रहे तनाव की वजह से है. राव का कहना है, "अगर आप जानते हैं कि बेहद ऊंचाई वाले ये इलाके कितने अहम हैं और कठिन हैं तो उन परिस्थितियों में ऐसे भार उठाने की क्षमता वाले विमान हमारे हक में होंगे और हम बेहतर योजना बना सकेंगे."

राव के मुताबिक समय की भूमिका अहम होती है और 2-3 विमानों के बार-बार चक्कर लगाने से ऐसे हालात में काम नहीं बनता. इसकी बजाय एक ही साथ सब कुछ ले जाने की क्षमता काफी फायदेमंद साबित हो सकती है. 

भारत क्या हासिल करना चाहता है

बड़े अंतरराष्ट्रीय अभ्यास के साथ भारत अपने आपको भारत प्रशांत श्रेत्र में एक मजबूत ताकत के रूप में दिखाना चाहता है. विशेषज्ञों का कहना है कि रूस पर निर्भर रही भारतीय वायु सेना में इस विशाल सैन्य अभ्यास के जरिए पश्चिमी देशों के ज्यादा उन्नत हथियारों के शामिल होने से आए बदलाव को भी दिखाने की कोशिश हो रही है. दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायु सेना ने इस अभ्यास के जरिए अपनी बढ़ती ताकत का भी प्रदर्शन किया है.

चोपड़ा का कहना है, "इस तरह के जटिल और कई तरह की ताकत वाले अभ्यास में बड़ी योजना बनानी पड़ती है. कई सारे बड़े ताकत वाले विमान उड़ान भरेंगे. कई कई महीनों तक योजना बनाने और वायु शक्ति के मामले में आपसी समझ को बढ़ाने के साथ ही वास्तविक अभियानों पर हमारा ध्यान है. यह सब सुलुर में दिखेगा."

जर्मनी का क्या फायदा है?

जर्मनी का भारत के प्रति रुख बदल रहा है. खासतौर से यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद जर्मनी भारत के साथ रक्षा संबंधों को आगे बढ़ा रहा है. जर्मनी की दिलचस्पी भारत प्रशांत क्षेत्र में भी है क्योंकि चीन उस इलाके में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है और इलाके के देशों पर उसने दबाव बढ़ाने की नीति अपनाई है. इस स्थिति में भारत के साथ रक्षा समझौते काफी अहम साबित होंगे. 

विशेषज्ञों का कहना है कि बहुत दिलचस्पी होते हुए भी भारत प्रशांत क्षेत्र में जर्मनी के लिए अकेले बहुत कुछ करना संभव नहीं होगा क्योंकि जर्मन मॉडल डिफेंस प्लेयर का मॉडल नहीं है. जर्मनी के पास बेहतहीन रक्षा उद्योग है लेकिन मजबूत सेना नहीं.

हाल के वर्षों में जर्मनी का यहां प्राथमिक उद्देश्य आर्थिक सुरक्षा रहा है क्योंकि इस इलाके से बहुत व्यापार होता था. इस इलाके में सुरक्षा, स्थिरता और कारोबारी अभियानों की स्वतंत्रता जर्मनी के राष्ट्रीय हित में है. ठीक वैसे ही जैसे कि भारत और दूसरे मित्र देशों के लिए. 

चोपड़ा ने ध्यान दिलाया कि भारत में अभ्यास के दौरान जिन उड़ानों की योजना बनी है उनमें जर्मनों को भारतीय बेड़े के रूसी विमानों से भी मुकाबले का मौका मिलेगा. इसके साथ ही वो भारतीय वायु सेना के युद्ध के तौर तरीकों को भी देखेंगे.