नई पीढ़ी के मुसलमानों को अंग्रेजी में मिलेगी धार्मिक शिक्षा
२२ जून २०२३लखनऊ निवासी यूसुफ मुस्तफा स्नातक छात्र हैं. वह एक आधुनिक युवा हैं, जिन्हें समय के साथ चलना, सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना, ड्राइविंग करना और दोस्तों के साथ समय बिताना ज्यादा पसंद है. लेकिन इधर वह अपने धर्म के बारे में जानकारी लेने के लिए उत्सुक हैं.
मदरसे में दीनी तालीम हासिल करेंगे ट्रांसजेंडर
यूसुफ कहते हैं, "अक्सर दोस्तों के साथ और सोशल मीडिया पर तरह-तरह की चीजें सुनने और देखने को मिलती हैं. क्या मुसलमान चार शादी करते हैं? क्या मुसलमान हमेशा टोपी पहने होते हैं? तरह-तरह की बातें होती हैं, मुझे इतनी जानकारी नहीं है. मुझे अंग्रेजी आती है और उर्दू नहीं आती है. ऐसे में मुझे जानकारी के लिए इंटरनेट का सहारा लेना पड़ता है. बेहतर होता, अगर धार्मिक शिक्षा अंग्रेजी में होती, जो समय की मांग है."
शारीरिक उत्पीड़न का शिकार होते दक्षिण एशियाई देशों के मदरसा छात्र
अलीगढ़ के रहने वाले नवाज सरवर एक कंप्यूटर प्रोफेशनल हैं. उनका अधिक समय ऑनलाइन बीतता है. इधर वह काफी दिनों से कोई ऐसा ऑनलाइन कोर्स करने के बारे में सोच रहे हैं, जो उनको इस्लाम, उससे संबंधित शिक्षा और जानकारी उपलब्ध करा सके.
नवाज बताते हैं कि वह अब धार्मिक शिक्षा के लिए मदरसे में जा कर नहीं पढ़ेंगे और अरबी उनको बिलकुल नहीं आती, ऐसे में विकल्प यह है कि अंग्रेजी में धार्मिक शिक्षा दी जाए, वरना धीरे-धीरे वह धार्मिक परंपरा से दूर होते जा रहे हैं. घर में ही कई मामले आते हैं जैसे लड़कियों को इस्लामिक शरिया में कितना हिस्सा दिया जाए. इसकी जानकारी उसी को होगी जिसने अध्ययन किया होगा.
मदरसों की स्थिति
मुसलमानों के लिए धार्मिक शिक्षा का केंद्र मदरसा होता है. उत्तर प्रदेश में 18 अगस्त, 2017 से मदरसा पोर्टल शुरू किया गया है. उत्तर प्रदेश सरकार इस विशेष पोर्टल के माध्यम से मदरसों को एक मंच पर लाने का प्रयास कर रही है.
इस पोर्टल पर 19,123 मदरसों ने पंजीकरण करवाया था, जिसमें जांच के बाद 16,513 मदरसे मानक के अनुरूप पाए गए. इनमें से कुल 558 मदरसे सरकारी अनुदान श्रेणी में आते हैं.
क्यों घट रहे हैं यूपी के मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे
वर्तमान में उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षा परिषद् अस्तित्व में है. मदरसों में अब सात विषय अनिवार्य कर दिए गए हैं जिसमें हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी शामिल हैं. मदरसों में मान्यता के भी स्तर हैं जो प्राइमरी स्तर (तहतानिया), अपर प्राइमरी स्तर (फौकानिया), मुंशी/मौलवी (माध्यमिक), आलिम (वरिष्ठ माध्यमिक), स्नातक (कामिल) एवं परास्नातक (फाजिल) हैं. इनमें लगभग 18 लाख छात्रों का पंजीकरण हुआ था.
अनुदानित मदरसों को लगभग 800 करोड़ रुपये का सरकारी अनुदान मिला था. इससे इतर मदरसा आधुनिकीकरण के लिए अलग व्यवस्था है. इसके अलावा मदरसे मुसलमानों से चंदे और जकात के माध्यम से धन एकत्र करते हैं. वास्तविकता में मदरसों में गरीब मुसलमानों के बच्चे ही अधिक जाते हैं.
भाषा की चुनौती
अब मदरसे से निकले छात्रों और मुसलमानों की नई पीढ़ी, दोनों के सामने परेशानी है. मदरसे से निकले छात्रों के पास अंग्रेजी का सीमित ज्ञान होता है और मुसलमानों की नई पीढ़ी को अरबी आती नहीं. इस कारण एक दूरी बन जाता है और तरह-तरह की भ्रांतियां फैलती जाती हैं. फिर एक नई बहस शुरू हो जाती है.
मुसलमानों में नई पीढ़ी भी अब अपने करियर और अभिनव शिक्षा की तरफ मुड़ चली है. ऐसे में अंग्रेजी और अन्य आधुनिक व प्रचलित विषयों की तरफ उनका झुकाव होना स्वाभाविक है. वहीं दूसरी ओर कॉलेज में पढ़ने वाले मुस्लिम छात्र-छात्राएं, वर्किंग प्रोफेशनल, डॉक्टर, इंजीनियर, गृहिणी वगैरह समाज में कदम से कदम मिला कर चलने लगे हैं, लेकिन उर्दू-अरबी में मिलने वाली धार्मिक शिक्षा से थोड़ा दूर हो रहे हैं.
लखनऊ के एक मदरसे से पढ़ कर निकले अब्दुल हफीज कहते हैं कि आजकल की दुनिया में मौलवी, कामिल की डिग्री लेकर कहां नौकरी करेंगे? विकल्प बहुत सीमित हैं. बाजार में इन डिग्री के आधार पर रोजगार उपलब्ध नहीं है. आधुनिक शिक्षा की तरफ रुख करना पड़ता है.
हालांकि यह भी सच है कि मदरसे दीनी तालीम देते हैं, उसके बाद आधुनिक शिक्षा के लिए छात्र स्वतंत्र हैं. हर साल यह खबर बनती है कि मदरसे के छात्र ने नीट परीक्षा पास की. लेकिन अब हर एक के लिए संभव नहीं कि पहले वह मदरसे में धार्मिक शिक्षा ले और फिर आधुनिक शिक्षा ग्रहण करे.
आज भी आप किसी मोहल्ले की मस्जिद में जाकर देखेंगे तो वहां इमाम (नमाज पढ़ाने वाला) किसी मदरसे से पढ़ा हुआ होगा और बहुत कम पैसे पाता होगा. वह मोहल्ले में बच्चों को धार्मिक शिक्षा देकर कुछ और पैसे कमा लेता है.
ऑनलाइन धार्मिक शिक्षा का विकल्प
आजकल ऑनलाइन शिक्षा का चलन है. वैसे तो इंटरनेट पर तमाम वेबसाइट मौजूद हैं, जो ऑनलाइन उर्दू, अरबी समेत कई भाषाएं सिखाती हैं. लेकिन पहली बार शायद मुस्लिम विद्वानों ने इस मामले पर गंभीरता से सोचा है. 50 के लगभग मुस्लिम धर्मगुरु अब इस पर सहमत हुए हैं कि मुसलमानों की नई पीढ़ी को अंग्रेजी में धार्मिक शिक्षा दी जाए, जिससे वे इस्लाम के बारे में सही से जान सकें.
अब मुस्लिमों की वर्तमान पीढ़ी पढ़ने के लिए मदरसे नहीं आएगी, इसीलिए पहली बार एक ऑनलाइन कोर्स शुरू किया जा रहा है, जिसमें धार्मिक शिक्षा अंग्रेजी में होगी. इसका नाम मरकज ऑनलाइन (अंग्रेजी माध्यम) मदरसा प्रोजेक्ट रखा गया है.
मदरसा ऑनलाइन कोर्स की संरचना
बीते 3 जून को मुंबई के मरकाजुल मआरिफ एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर ने एक मीटिंग बुलाई. इस संस्था के संस्थापक लोकसभा सांसद मौलाना बदरुद्दीन अजमल अल कासमी हैं. मीटिंग में देश-विदेश के लगभग 50 इस्लामिक विद्वान आए. वहां यह निर्णय लिया गया कि इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग की तर्ज पर ऑनलाइन कोर्स चलाया जाए.
मीटिंग में शामिल दिल्ली यूनिवर्सिटी के डॉक्टर जाकिर हुसैन कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ मुफ्ती ओबैदुल्लाह कासमी के अनुसार अब अंग्रेजी का चलन बढ़ गया है. सोशल मीडिया की वजह से बहुत बढ़ा है.
बहुत लोग ऑफलाइन माध्यम में इस प्रकार की शिक्षा में नहीं जा सकते. विशेषकर कोविड के बाद लोग ऑनलाइन के अभ्यस्त हो गए हैं. खर्च भी कम है. बहुत सारे लोगों ने कहा कि इस प्रकार के पाठ्यक्रम की आवश्यकता है, इस कारण इसे शुरू किया जा रहा है.
कोर्स की अवधि 3+2 वर्ष होगी. इसमें चार चरण होंगे, प्रथम वर्ष में इस्लामिक स्टडीज में सर्टिफिकेट, दूसरे वर्ष में इस्लामिक स्टडीज में डिप्लोमा, तीसरे वर्ष में इस्लामिक स्टडीज में एडवांस्ड डिप्लोमा और चौथे एवं पांचवें वर्ष में इस्लामिक धर्मशास्त्र में स्नातक की उपाधि दी जाएगी.
पूरा कोर्स अंग्रेजी में होगा, इसीलिए अभ्यर्थियों को अंग्रेजी आना अनिवार्य है. इस कोर्स में अरबी (पढ़ना, बोलना और लिखना), कुरान का अनुवाद एवं व्याख्या, फिक्ह, हदीस, अकाइद (आस्था), सीरत (नबी-ए-करीम की जीवनी), इस्लामिक इतिहास, इस्लामिक समाजशास्त्र और विभिन्न धर्मो का तुलनात्मक अध्ययन शामिल होगा. एक 12 सदस्यीय समिति इस कोर्स का पूरा पाठ्यक्रम तैयार करेगी.