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शिक्षासंयुक्त राज्य अमेरिका

अमेरिका में भारतीयों की कामयाबी का प्रतीक है स्पेलिंग बी

२७ मई २०२४

भारतीय मूल के लोगों ने अमेरिका में बहुत कामयाबियां हासिल की हैं. स्पलिंग मुकाबलों पर उनका एकछत्र राज इस कामयाबी की एक तस्वीर पेश करता है.

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स्पेलिंग बी
2023 के स्पेलिंग बी में भारतीय मूल के सारा फर्नांडीजतस्वीर: Leah Millis/REUTERS

1985 में जब बालू नटराजन ने अमेरिका का स्क्रिप्स नेशनल स्पेलिंग बी मुकाबला जीता था तो बहुत बड़ी बात थी. अंग्रेजी के शब्दों की स्पेलिंग्स का यह प्रतिष्ठित और बेहद मुश्किल माना जाने वाला मुकाबला जीतने वाले वह भारतीय मूल के पहले बालक थे. तब अखबारों में छपा था कि एक आप्रवासी के बेटे ने स्पेलिंग बी जीता. खबरों में इस बात को विशेष तवज्जो दी गई थी कि वह घर पर अंग्रेजी नहीं बल्कि अपनी मातृभाषा बोलते हैं.

आज अमेरिका में किसी भारतीय बच्चे का स्पेलिंग बी जीतना कोई बड़ी खबर नहीं होती. नटराजन के इतिहास रचने के 25 साल बाद हुए स्पेलिंग बी मुकाबलों में अधिकतर विजेता भारतीय मूल के ही रहे हैं.

इस हफ्ते 2024 का स्पेलिंग बी मुकाबला वॉशिंगटन में शुरू होगा. इस मुकाबले के अंतिम चरण में कई बच्चे भारतीय मूल के ही हैं. इनमें श्रद्धा रेचमरेड्डी, आर्यन खेड़कर, बृहत सोमा और इशिका वारीपिल्लै शामिल हैं.

अमेरिकी जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक देश में जन्मे भारतीय मूल के 70 फीसदी अमेरिकी साल 2000 के बाद पहुंचे हैं. यानी जैसे-जैसे देश में भारतीयों की संख्या बढ़ी है, स्पेलिंग बी के विजेताओं में भारतीय मूल के बच्चों की संख्या भी बढ़ी है. 1999 के पहले सिर्फ दो बार यह मुकाबला भारतीय मूल के बच्चों ने जीता था. उसके बाद 34 मुकाबले हो चुके हैं जिनमें से 28 भारतीय-अमेरिकी बच्चों ने जीते हैं. तीन बार तो लगातार भारतीय मूल के बच्चे ही विजेता रहे. 2019 में आठ बच्चों को संयुक्त रूप से विजेता घोषित किया गया था जिनमें सात भारतीय मूल के थे.

स्पेलिंग बी मुकाबलों मेंभारतीय मूलके बच्चों की यह कामयाबी दरअसल अमेरिका में भारतीय आप्रवासियों की कामयाबी की कहानी है. देश के दूसरे सबसे बड़े आप्रवासी समुदाय की आर्थिक सफलता की कहानी है.

भारतीय मूल के अमेरिकी

2022 तक अमेरिका में 31 लाख ऐसे लोग थे जिनका जन्म भारत में हुआ था. भारतीय-अमेरिकी परिवारों की औसत आय एक लाख 47 हजार डॉलर थी जो पूरे अमेरिका के दोगुने से भी ज्यादा थी. भारतीय मूल के अमेरिकी लोगों के पास कॉलेज की डिग्री होने की संभावना देश के औसत से दोगुनी थी.

2021 में अमेरिका में एच-1बी यानी लंबी अवधि का वीजा पाने वालों में 74 फीसदी भारतीय थे. इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एजुकेशन के मुताबिक 2022-23 में अमेरिकी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में दो लाख 69 हजार भारतीयों ने दाखिला लिया, जो एक रिकॉर्ड है. ये आंकड़े एक बहुत सफल समुदाय की तस्वीर पेश करते हैं.

गणेश दसारी इसी तस्वीर का हिस्सा हैं. उनकी बेटी और बेटे दोनों ने ही कई बार स्पेलिंग बी मुकाबलों के कई चरणों को जीता है. उनके बेटे ने केंब्रिज यूनिवर्सिटी से सिविल इंजीनियरिंग में पीएचडी की और फिर एच-1बी वीजा पाकर एक्सॉन मोबिल कंपनी में नौकरी करने लगे. बहुत जल्द उन्हें ग्रीन कार्ड यानी अमेरिका का स्थायी वीजा मिल गया.

दसारी बताते हैं, "मैं और मेरी पत्नी कमोबेश एक जैसे परिवारों से आते हैं. हम दोनों को शिक्षा का बहुत फायदा हुआ. इसलिए हमने अपने बच्चों की पढ़ाई पर बहुत जोर दिया. हमने पूरा ध्यान दिया कि वे पढ़ाई पर ध्यान दें. साथ ही उन्हें एक-दो खेलों की भी सुविधा दी लेकिन हमारे अंदर यह भावना थी कि पढ़ाई, खेल से ज्यादा जरूरी है.”

2016 में अमेरिकी कांग्रेस को अपने संबोधन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्पेलिंग बी मुकाबलों में भारतीयों की सफलता का जिक्र किया था. तब निहार जांगा और जयराम हथवार संसद की गैलरी में उनका भाषण सुन रहे थे. ये दोनों ही स्पेलिंग बी चैंपियन रह चुके हैं.

तेलुगू बच्चों को खास कामयाबी

वैसे, भारतीय समुदाय में भी एक खास समूह है जिसके बच्चों ने स्पेलिंग बी मुकाबलों में बड़ी सफलता पाई है. ये हैं आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से आने वाले परिवारों के बच्चे, जिनकी मातृभाषा तेलुगू है. इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि भारत के आईटी हब कहे जाने वाले हैदराबाद के बहुत से लोगों को एच-1बी वीजा मिला है.

दसारी कहते हैं, "जब भी हम स्पेलिंग बी मुकाबलों में जाते हैं, वहां हर कोई यही भाषा (तेलुगू) बोलता मिलता है. तब हमें अहसास हुआ कि बहुत से लोग इसी राज्य के हैं.”

पिछले साल देव शाह ने स्पेलिंग बी जीता था. उनके पिता देवल शाह गुजरात के रहने वाले हैं. उन्होंने बहुत गर्व से बताया कि देव स्पेलिंग बी जीतने वाले पहले गुजराती हैं. देवल शाह पेशे से इंजीनियर हैं जबकि उनकी पत्नी डॉक्टर हैं.

उससे पहले 2022 में हारिनी लोगन स्पेलिंग बी चैंपियन बनी थीं. तमिलनाडु के चेन्नैई से आने वाले उनके माता-पिता सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं.

इन सभी विजेता बच्चों में एक बात साझी है कि उनके परिवारों में उन्हें एक जैसा माहौल मिला है. साथ ही उन्हें ऐसे मुकाबलों का अनुभव स्थानीय तौर पर भी मिलता रहा है. जैसे कि नॉर्थ साउथ फाउंडेशन (एनएसएफ) के मुकाबले, जो भारतीय मूल के लोगों के लिए होते हैं.

शाह बताते हैं, "भारतीय मूल के बच्चों की कामयाबी की बड़ी वजह नॉर्थ साउथ फाउंडेशन है.”

जब हारिनी लोगन ने एनएसएफ स्पेलिंग बी जीता था तो गणेश दसारी जजों में शामिल थे. हारिनी की मां रामप्रिया लोगन बताती हैं कि दसारी ने बहुत जोर देकर यह बात कही थी कि हारिनी में राष्ट्रीय स्तर पर जाने की संभावनाएं हैं.

पैसा नहीं, मेहनत है वजह

13 साल की इशिका टेक्सस के स्प्रिंग में रहती हैं. इस साल वह तीसरी बार स्पेलिंग बी में हिस्सा ले रही हैं. जब वह तीसरी क्लास में थीं तो अपनी क्लास में हुआ स्पेलिंग बी मुकाबला हार गई थीं. उसके अगले दिन उन्होंने अपने माता-पिता को सुबह छह बजे जगाकर कहा था कि वह और ज्यादा स्पेलिंग बी मुकाबलों में हिस्सा लेना चहती है.

इशिका की मां एक आईटी मैनेजर हैं जो 2006 में अमेरिका गई थीं. उन्होंने ह्यूस्टन में रहने वाले भारतीय परिवारों से इस बारे में सलाह की. उस क्षेत्र के बहुत से बच्चे स्पेलिंग बी मुकाबलों में सफल रहे हैं.

बहुत से लोग कहते हैं कि भारतीय मूल के लोग आर्थिक रूप से मजबूत हैं और उनके बच्चों को बहुत सी सुविधाएं मिलती हैं, इसलिए वे सफल रहते हैं. लेकिन जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में साउथ एशियन स्ट्डीज के प्रोफेसर और ‘द अदर वन परसेंटः इंडियंस इन अमेरिका' किताब के सह-लेखक देवेश कपूर कहते हैं कि बात इतनी सरल नहीं है.

कपूर कहते हैं, "इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि स्पेलिंग बी मुकाबले में हिस्सा लेने वाले बच्चे मध्यमवर्गीय आप्रवासी समुदायों के हैं, जो अक्सर आईटी जैसे क्षेत्रों में सक्रिय होते हैं. ये भारतीय मूल के उन परिवारों के बच्चे नहीं हैं जो वित्तीय क्षेत्र, स्टार्ट-अप्स या कंसल्टिंग जैसे क्षेत्रों के धनी लोग हैं.”

बालू नटराजन अब एक डॉक्टर हैं. वह शिकागो में रहते हैं और एनएसएफ के अध्यक्ष हैं. उनका बेटा आत्मन बालाकृष्णन भी स्पेलिंग बी मुकाबले में हिस्सा ले चुका है. वह कहते हैं, "इसे समझाना मुश्किल है लेकिन इस सफलता की वजह बहुत खास तरह की सोच और बहुत कड़ी मेहनत का नतीजा है.”

वीके/एए (एएफपी)

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