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समाजभारत

कोरोना की तालाबंदी से दुखी लड़की ने लिखी किताब

मनीष कुमार
१५ अक्टूबर २०२१

बिहार के मुजफ्फरपुर की पंद्रह साल की एक लड़की कोविड महामारी के कारण 10वीं की बोर्ड परीक्षा नहीं दे पाई. वह दुखी तो हुई लेकिन हताश होने के बदले बच्चों की मनोभावना प्रकट करती एक किताब लिखी. यह किताब आजकल चर्चा में है.

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Naiyya Prakash
नैय्या प्रकाशतस्वीर: Manish Kumar/DW

नैय्या प्रकाश द्वारा लिखी गई पुस्तक "एंड आई पास्ड माई बोर्ड विदाउट इवेन अपीयरिंग फॉर इट" उस लड़की की कहानी है जो कोरोना के कारण लॉकडाउन में स्कूल नहीं जा पा रही थी. वह दसवीं की बोर्ड परीक्षा की तैयारी तो कर रही थी, किंतु भारी संशय के बीच छात्र जीवन की पहली सबसे बड़ी परीक्षा में शामिल न हो सकी. फिर भी कोविड ने उसे बहुत कुछ सिखलाया.

डीडब्ल्यू से बातचीत में नैय्या कहती हैं, "मैं बचपन से ही किताब लिखना चाहती थी. मुझे लिखने का काफी शौक था. मैं रोजाना दिनभर के घटनाक्रम को डायरी में इंट्री करती थी. लॉकडाउन के दौरान लिखे अपने इन्हीं अनुभवों को मैंने किताब की शक्ल दी."

उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि कोरोना के दौरान जीवन में कई बदलाव आए, "एक लड़की जो टीनएजर है, वह लॉकडाउन के समय परिस्थिति के अनुसार खुद को कैसे ढालती है. स्कूल जाना बंद हो गया, दोस्तों से मिलना-जुलना बंद हो गया. बहुत कुछ बदल गया. मेरी एक सहेली को कोविड हो गया तो कैसे उसका हौसला बढ़ाया. फैमिली बॉन्डिंग व आत्मनिर्भरता क्या है. हमने अपना काम करना कैसे सीखा."

हर तरफ भय व निराशा का माहौल

महामारी के कारण आए बदलाव पर नैय्या प्रकाश कहती हैं, "कोविड के कारण हुए लॉकडाउन ने हमें कई चीजों से दूर रखा. इस बीच हम दोस्तों से दूर रहे, अपने स्कूल से दूर रहे, क्लास से दूर रहे. इस दौरान सभी तरफ से कई ऐसी चीजें सुनने में आ रही थी, जो कहीं से उत्साहवर्धक नहीं थी." बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे थे, घरों में कैद थे. उन पर पढ़ाई का अत्यधिक दबाव था. हर तरफ भय व निराशा का माहौल था, "लेकिन इन सब के बावजूद इस दौरान हम कई बेहतर चीजें भी सीख सके."

कोरोना के दौरान बच्चों ने हमउम्रों का साथ तो खोया लेकिन उन्हें मजबूरी में ही सही, अपने परिवार के साथ रहने का मौका मिला. संकट की घड़ी परिवार के लोग एक दूसरे के करीब आए. एक दूसरे को समझने की कोशिश की. नेय्या कहती हैं, "लॉकडाउन में विपरीत परिस्थितियों में रहते हुए हम यह जान सके कि फैमिली वैल्यूज क्या हैं, किसी भी अवसर का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है. यह समझ में आया कि धैर्य क्या है. कम पैसे में कैसे जी सकते हैं."

Indien Naiyya Prakash
नैय्या के दादा डॉ. रामेश्वर राय और दादी मुजफ्फरपुर में रहते हैंतस्वीर: Manish Kumar/DW

लॉकडाउन में क्या सीखा

किताब के कुल 20 चैप्टर में उन्होंने यह बतलाने की कोशिश की है कि इस महामारी ने हमें कई अच्छी चीजों से कैसे रूबरू कराया. इस समय बच्चों ने जो सीखा, उसे कोई स्कूल नहीं सिखा सकता. नैय्या कहती हैं, "मैंने चौथे चैप्टर में लाइफ इन क्वारंटाइन में क्या सीखा, जैसे खाना बनाना, अपने काम खुद करना जैसी बातों की चर्चा की है और अंतिम चैप्टर को लॉकडाउन में क्या सीखा पर डेडिकेट किया है."

स्कूली बच्चों का बहुत सारा समय दोस्तों के साथ खेलने कूदने, गपशप और मौज मस्ती में गुजरता है. कोरोना ने इसे बदल दिया था. सब अपने अपने घरों में कैद थे और हर चीज के लिए परिवार के लोगों पर निर्भर थे. समय गुजारना भी एक चुनौती बन गई थी. नैय्या ने डॉयचे वेले को बताया, "सभी में कुछ न कुछ क्रिएटिव गुण होते हैं. इस गुण को इस दौरान उभरने का मौका मिला. किसी ने गार्डेनिंग सीखी तो किसी ने खाना बनाना सीखा. बच्चों ने बाल बनाना, बर्तन धोना जैसी चीजें सीखी, जो उनकी नजर में अबतक किसी और का दायित्व था. हमने परिवार में परस्पर सहयोग करना, एक-दूसरे का हाथ बंटाना सीखा."

जब बोर्ड की परीक्षा नहीं हुई

केंद्रीय विद्यालय चेन्नई से पढ़ाई कर रही नैय्या कोविड के कहर की तेज लहर के समय अपने घर मुजफ्फरपुर आई थी. यहीं से ऑनलाइन पढ़ाई कर रही थीं. वे कहती हैं, "बोर्ड परीक्षा को लेकर जैसी व्याकुलता सभी बच्चों में होती है, वह मुझमें भी थी. ऑनलाइन क्लासेज होने के कारण क्लासरूम जैसी पढ़ाई नहीं हो पा रही थी. सभी बच्चों को डर था कि इसका असर कहीं परीक्षा पर न पड़े. फिर बोर्ड की परीक्षा नहीं हुई और इंटरनल असेसमेंट के आधार पर बच्चे पास कर दिए गए."

इसी समय उन्होंने यह किताब लिखनी शुरू की. ऑनलाइन व ऑफलाइन पढ़ाई के तरीके पर नैय्या का कहना है कि ऑनलाइन में स्टडी मैटेरियल तो काफी हैं लेकिन "स्कूल में जो हम पढ़ पाते हैं, वह घर पर नहीं कर पाते. वहां हमारा ओवरऑल डेवलपमेंट होता है. हमने अपने इस अनुभव को भी शेयर किया है."

वो कौन थी? सीजन 1 एपिसोड 4: आने फ्रांक

किसी भी स्थिति में हिम्मत नहीं हारना

किताब ने 15 साल की नैय्या को सेलेब्रिटी बना दिया है. उसका अनुभव दूसरे बच्चों के लिए प्रेरणा हो सकता है. बच्चों के लिए अपने संदेश में नैय्या कहती हैं, "हम समय को परिवर्तित नहीं कर सकते. परिस्थिति जैसी भी हो उसमें एडैप्ट करने की कोशिश करनी चाहिए. हमें इस पर हाय-तौबा मचाने की जरूरत नहीं है कि हम कैसी स्थिति में हैं, बल्कि हमें उसी स्थिति में मौजूद चीजों से ही अपना बेहतर देना चाहिए. निगेटिव कंडीशन में भी पॉजिटिव अप्रोच रखनी चाहिए. किसी भी स्थिति में हिम्मत नहीं हारनी चाहिए." 154 पेज की इस पुस्तक में 21 इलस्ट्रेशन हैं, जिन्हें नैय्या ने खुद बनाया है.

पहली किताब की सफलता ने नैय्या का हौसला बढ़ाया है. अब वह अपनी अगली पुस्तक पर भी काम कर रहीं हैं. उनकी अगली भारत कैसे तरक्की कर रहा है, थीम पर होगी. भारतीय विदेश सेवा में जाने की इच्छा रखने वाली नैय्या कहती हैं, "इस सेवा में जाने से हमें अपने देश को विश्व के पटल पर रिप्रेजेंट करने का मौका मिलेगा. इस सेवा के जरिए देश के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है."

चारों ओर से प्रशंसा

नैय्या मुजफ्फरपुर के कर्नल रमेश प्रकाश व दिव्या प्रकाश की पुत्री हैं. दिव्या प्रकाश कहतीं हैं, "कोरोना के कहर से लोग घरों में कैद थे. बच्चे घरों में रहकर यह देख रहे थे कि पापा या मम्मी की नौकरी चले जाने के बाद जीना कितना मुश्किल हो रहा था. बच्चों पर पढ़ाई का खासा दबाव था. टीचर से बात करना मुश्किल था तो कई बार पेरेंट्स भी बच्चों की बात नहीं समझ पा रहे थे."

नैय्या प्रकाश की इस पुस्तक की विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गजों ने काफी प्रशंसा की है. कोरोना महामारी के बीच मात्र 15 साल की इस बच्ची के अनूठे प्रयास की तारीफ करने वालों में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, निशांत पोखरियाल, आईआईटी चेन्नई के निदेशक भास्कर राममूर्ति और प्रख्यात फिल्म निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा जैसी हस्तियां शामिल हैं.