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नागालैंड: इस बार खुलेगा महिलाओं का खाता?

प्रभाकर मणि तिवारी
१६ फ़रवरी २०१८

नागालैंड शायद भारत का अकेला ऐसा राज्य है जहां से आज तक कोई महिला विधायक नहीं चुनी गई है. तो क्या अब की बार चमकेगी महिलाओं की किस्मत ?

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Pressebilder "Lost musicians of India"
तस्वीर: Souvid Datta

साक्षरता दर ऊंची रहने और दूसरे राज्यों के मुकाबले समाज और परिवार में बेहतर अधिकार होने के बावजूद राज्य से अब तक एक ही महिला सांसद चुनी गई है. अब 27 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा पांच महिलाएं अपनी किस्मत आजमा रही हैं. राज्य के महिला और सामाजिक संगठनों को इस बार विधानसभा चुनाव में महिलाओं का खाता खुलने की उम्मीद है.

नागालैंड चुनाव

शुरुआती अनिश्चितता के बाद इस महीने की 27 फरवरी को नागालैंड विधानसभा की 60 सीटों के लिए होने वाले चुनाव में उतरे 195 उम्मीदवारों में पांच महिलाएं भी शामिल हैं. नागा समाज में महिलाओं को काफी आजादी है और उनको दूसरे राज्यों के मुकाबले ज्यादा अधिकार मिले हैं. लेकिन जब बात राजनीति की आती है तो इसे महिलाओं की पहुंच से दूर रखा जाता है. यही वजह है कि फरवरी, 1964 में पहली विधानसभा के गठन के बाद से ही अब तक कोई महिला चुन कर सदन में नहीं पहुंची है. वर्ष 1977 में रानो एम शाइजा पहली बार चुनाव जीत कर संसद पहुंची थीं. लेकिन वह अब तक का ऐसा पहला मामला है. अब तक विभिन्न चुनावों में 30 महिला उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई है. लेकिन उनमें से कोई भी जीत नहीं सकी.

इस बार राजनीति में महिलाओं पर लगी बेड़ियां टूटने की उम्मीद जताई जा रही है. महिला अधिकार कार्यकर्ता और नागा होहो मदर्स एसोसिएशन की सलाहकार रोजमेरी डिवुचू कहती हैं, "उम्मीद है अबकी कम से कम एक महिला विधायक सदन में जरूर पहुंचेगी." राज्य के सबसे बड़े शहर दीमापुर में अंग्रेजी अखबार नागालैंड पेज के ए लोंगकुमार कहते हैं, "अबकी महिलाओं के विधानसभा पहुंचने की पूरी उम्मीद है. वर्ष 2013 में महज दो महिलाएं मैदान में थी."

महिला उम्मीदवार

इस बार जो महिलाएं चुनाव मैदान में हैं उनमें बीजेपी की एक, पूर्व मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो की नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक पीपुल्स पार्टी (एनडीपीपी) की एक और नेशनल पीपुल्स पार्टी की दो उम्मीदवारों के अलावा एक उम्मीदवार निर्दलीय के तौर पर उतरी है. एनडीपीपी उम्मीदवार अवान कोन्याक के पिता एल कोन्याक राज्य में मंत्री रह चुके हैं. अब कोन्याक उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं. चार बार विधायक रहे उनके पिता का बीते महीने ही निधन हुआ था. दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए की पढ़ाई करने वाली कोन्याक को पूरा भरोसा है कि अबकी सदन में कोई न कोई महिला जरूर पहुंचेगी जिससे महिलाओं के हितों को सदन में उठाया जा सकेगा. वह कहती हैं, "अब लोगों की मानसिकता बदल रही है." बीजेपी के टिकट पर मैदान में उतरी राखिला ने वर्ष 2013 में भी चुनाव लड़ा था और आठ सौ वोटों से हार गई थीं. वह कहती हैं, "अबकी बार मेरी जीत तय है."

सत्तारुढ़ नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) और कांग्रेस ने किसी महिला उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के थियरी कहते हैं, "हम कुछ महिलाओं को टिकट देना चाहते थे. लेकिन कोई उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिला."

वजह

राज्य में महिलाओं की साक्षरता दर (76 फीसदी) राष्ट्रीय औसत (65 फीसदी) के मुकाबले ज्यादा है. सरकारी नौकरियों में उनकी भागीदारी 23.5 फीसदी है और निजी क्षेत्र की नौकरियों में 49 फीसदी. बावजूद इसके आखिर नागा समाज में राजनीति के मामले में महिलाएं हाशिए पर क्यों हैं? दीमापुर में टेत्सो कॉलेज की वाइस-प्रिंसपल डॉ. हेवासा लोरिन कहती हैं, "पितृसत्तात्मक नागा समाज और औरतों को बराबरी का दर्जा नहीं देने की मानसिकता ही इसकी प्रमुख वजह है. ग्राम पंचायतों या किसी नीति निर्धारण निकाय में उनकी कोई भूमिका नहीं है."

देखिए किटी के हैरान करने वाले कारनामे

कोहिमा स्थित लेखिका रीता क्रोचा कहती हैं, "नागा समाज महिलाओं को सबकुछ करने की आजादी देता है. लेकिन राजनीति में महिलाओं को कभी गंभीरता से नहीं लिया जाता. लेकिन अब बदलाव का समय आ गया है." एनडीपीपी उम्मीदवार कोन्याक कहती हैं, "राजनीति में अपनी इस स्थिति के लिए खुद महिलाएं भी जिम्मेदार हैं. वे आगे नहीं आना चाहतीं." बीते साल स्थानीय निकायों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के सरकार के फैसले के बाद राज्य लंबे समय तक हिंसा की चपेट में रहा था और तब मुख्यमंत्री को भी इस्तीफा देना पड़ा था.

नागालैंड विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर मोमेनला आमेर कहती हैं, "बचपन से लालन-पालन की तरीका भी राजनीतिक नेतृत्व के लिए महिलाओं के आगे नहीं आने की प्रमुख वजह है." लेकिन बीजेपी उम्मीदवार रखिला का चुनाव अभियान संभालने वाली उनकी बहू अपांग लोटम कहती हैं कि अब समाज बदल रहा है और राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं की स्वीकार्यता बढ़ रही है.

उम्मीद

नागा मदर्स एसोसिएशन की अध्यक्ष ए मेरू को इस बार तस्वीर बदलने की उम्मीद है. वह कहती हैं, "अबकी कम से कम एक महिला चुनाव जीतकर सदन में जरूर पहुंचेगी. इससे राज्य के राजनीतिक और संसदीय इतिहास में एक नई शुरुआत होगी." चुनाव मैदान में उतरीं पांचों महिलाएं भी अपनी जीत के दावे कर रही हैं. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीजेपी के टिकट पर दूसरी बार मैदान में उतरी पार्टी की प्रदेश उपाध्यक्ष रखिला और एनडीपीपी की कोन्याक के जीत की संभावनाएं बेहतर हैं. फिलहाल पांचों उम्मीदवार अपने चुनाव अभियान और भाषणों के जरिए नागा राजनीति में महिलाओं के लिए एक खास जगह बनाने की मुहिम में जुटी हैं.