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"2002 में लोगों की हत्या, 2023 में न्याय की"

चारु कार्तिकेय
२१ अप्रैल २०२३

गुजरात के नरोदा गाम में 11 लोगों की हत्या के आरोप में 69 लोगों पर 13 साल मुकदमा चला और अंत में सब बरी हो गए. दंगों में बचे लोगों का कहना है कि 2002 में 11 लोगों की हत्या हुई थी और अब न्याय की हत्या हुई है.

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गुजरात
गुजरात दंगों के दौरान जलती हुई दुकानेंतस्वीर: dpa/picture-alliance

नरोदा गाम हत्याकांड 2002 में गुजरात में हुए दंगों के उन नौ मामलों में से एक है जिन में मुकदमा चल रहा है. नरोदा गाम अहमदाबाद का एक इलाका है जहां 28 फरवरी 2002 को मुस्लिम मोहल्ला नाम के मोहल्ले में भीड़ ने कई घरों को जला दिया था. मोहल्ले के 11 निवासियों की हत्या कर दी गई थी.

इन हत्याओं के लिए जिन लोगों पर आरोप लगाया गया था उनमें बीजेपी की पूर्व विधायक और मंत्री माया कोडनानी, बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी, विश्व हिंदू परिषद के नेता जयदीप पटेल और नरोदा पुलिस स्टेशन में तत्कालीन इंस्पेक्टर वीएस गोहिल शामिल हैं.

गोधरा
गुजरात का गोधरा रेलवे स्टेशनतस्वीर: Ankita Mukhopadhyay/DW

शुरू में इस मुकदमे में सुनवाई ही शुरू नहीं हो पा रही थी. हत्याकांड के आठ साल बाद 2010 में सुनवाई शुरू हुई और अभी भी नतीजा एक विशेष अदालत का ही आया है. अगर याचिकाकर्ता फैसले के खिलाफ अपील करते हैं तो इसके बाद हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक जाने की एक लंबी कानूनी लड़ाई अभी उनके आगे है.

अमित शाह की भूमिका

मार्च 2017 में कोडनानी ने अदालत से अपील की थी कि उनके समर्थन में 14 और गवाहों से सवाल जवाब किए जाएं. दरअसल दंगों की जांच करने वाली एसआईटी ने कोडनानी को दोषी पाया था लेकिन उनका कहना था कि वो हत्याकांड के समय नरोदा गाम में थीं ही नहीं.

अपने बयान के समर्थन के लिए उन्होंने इन गवाहों को बुलवाने की अदालत से अपील की. इनमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी थे, जो उस समय बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे.

शाह ने अदालत में कोडनानी की अन्यत्रस्थिति या ऐलबाई की पुष्टि की थी और कहा था कि वारदात के समय उन्होंने कोडनानी को पहले गुजरात विधान सभा में और फिर सोला सिविल अस्पताल में देखा था.

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कोडनानी पर नरोदा गाम से भी ज्यादा वीभत्स नरोदा पाटिया हत्याकांड में भी शामिल होने के आरोप थे. नरोदा पाटिया दंगों में कम से कम 97 मुस्लिमों के मारे जाने की पुष्टि हुई थी. सुनवाई के दौरान 11 गवाहों ने कहा था कि उन्होंने वारदात के समय कोडनानी को वहां देखा था, लेकिन का दावा था कि वो उस समय विधान सभा में थीं.

एक "काला दिन"

2012 में एक विशेष अदालत ने उन्हें, बाबू बजरंगी और 31 और लोगों को दोषी पाया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. लेकिन अप्रैल 2018 में गुजरात हाई कोर्ट ने कोडनानी को बरी कर दिया था.

नरोदा गाम फैसले से मुकदमे में कोडनानी और दूसरों के खिलाफ गवाही देने वाले लोग मायूस हैं. उन्होंने इसे पीड़ितों के लिए एक "काला दिन" बताया.

साबरमती एक्सप्रेस
गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस का जला हुआ डब्बातस्वीर: SEBASTIAN D'SOUZA/AFP via Getty Images

17 मुल्जिमों के खिलाफ गवाही देने वाले इम्तियाज अहमद हुसैन कुरैशी ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार को बताया कि उन्होंने अपनी आंखों से उन सब को भीड़ को उकसाते हुए, मस्जिद को जलाने का इशारा करते हुए, पूरे के पूरे परिवारों को जला कर मारते हुए देखा था और सब कुछ अदालत को बताया था.

उनका कहना है, "उन सब को उम्र कैद की सजा मिलनी चाहिए थी. उन्हें बरी कर देने से हमारा न्यायपालिका पर से विश्वास उठ गया है...क्या उस दिन मारे गए सभी लोगों ने आत्महत्या कर ली थी? खुद को जला कर मार डाला था?...2002 में 11 लोगों की हत्या हुई थी और आज न्याय की हत्या हुई है."

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि वो लड़ाई जारी रखेंगे और इस फैसले को गुजरात हाई कोर्ट में चुनौती देंगे.