गंगोत्री में बर्फ और गंगा में पानी नहीं तो क्या करेगा भारत
देश के प्रधानमंत्री से लेकर मजदूर, अरबपति, आम लोग और फिल्म स्टार, सभी जीवन में कम-से-कम एक बार जिस गोमुख की पदयात्रा कर लेना चाहते हैं, वह सूख रही है.
खत्म हो रहे हैं ग्लेशियर
हिमालय के ग्लेशियरों के बीच गंगा के उद्गम स्थल पर बर्फ निरंतर कम हो रही है. यह 140 करोड़ देशवासियों के लिए अस्तित्व का संकट बन सकती है. बढ़ता तापमान धरती के दूसरे हिस्सों के साथ हिमालय पर बिछी बर्फ की मोटी चादर को मिटा रहा है.
हर मिनट, हर सेकेंड घट रही है बर्फ
वैज्ञानिक और रिसर्चरों का कहना है कि हर दिन, हर मिनट नहीं, बल्कि हर सेकेंड बहुत तेजी से बर्फ सिमट रही है. बड़े-बड़े इलाकों से बर्फ गायब है और सिर्फ चट्टान नजर आ रहे हैं. लोग मानें या नहीं, लेकिन इसके प्रमाण अब आंखों के सामने हैं.
मां गंगा
भारत के मध्य से 2,500 किलोमीटर की यात्रा करने वाली पवित्र नदी 50 करोड़ से ज्यादा लोगों, असंख्य मवेशियों या दूसरे जीव जंतुओं को पालती है. गंगा उनकी आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक,और औद्योगिक जरूरतें पूरी करके मां बन जाती है.
आजाद भारत के 75 साल
आजादी के 75 सालों में भारत, ब्रिटेन को पीछे छोड़ दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया. इसके साथ ही यह तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक और कोयला जलाने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश भी है. देश में सूखा, बाढ़ की आपदाएं और पानी की कमी निरंतर बढ़ती जा रही हैं.
बढ़ते सैलानी
हिंदुओं के लिए गंगा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बहुत ज्यादा है. समृद्धि और सुविधाएं बढ़ने के साथ गंगोत्री और गोमुख पहुंचने वाले लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है. गंगोत्री शहर तो दुकान, सैलानी और ट्रैफिक से भर गया है. पर्यावरण इसका भी खामियाजा भुगत रहा है.
पिघलते ग्लेशियर
एक तरफ सैलानी बढ़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ ग्लेशियर पिघल रहे हैं. वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के मुताबिक, बीते 90 साल में गंगोत्री ग्लेशियर 1.7 किलोमीटर सिकुड़ गया. अब वहां सिर्फ चट्टान दिख रही है.
प्राकृतिक आपदाएं
ग्लेशियरों का पिघलना और मौसम के पैटर्न में बदलाव कई आपदाएं लेकर आ रहा है. अक्टूबर में गंगोत्री में हुए हिमस्खलन ने 26 लोगों की जान ली. पिछले साल ग्लेशियर टूटने से 72 लोगों की मौत हुई. 2013 में भारी बारिश और बाढ़ ने 5,000 लोगों की जीवनलीला खत्म कर दी.
पानी की कमी
भारत दुनिया के उन देशों में है, जहां पानी पर भारी दबाव है. दुनिया के महज 4 फीसदी जल संसाधन पर 17 फीसदी आबादी की प्यास बुझाने का दबाव है. नीति आयोग के मुताबिक करीब 60 करोड़ लोग पहले से ही अत्यधिक जल संकट का सामना कर रहे हैं.
भोजन पर असर
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के असर से भारत में चावल 10 से 30 फीसदी और मक्के का उत्पादन 25 से 70 फीसदी घट गया है. इसके पीछे बढ़ता तापमान, भूजल की कमी और मौसम के अत्यधिक तीखे तेवर जिम्मेदार हैं.
रोजगार का संकट
भारत का कृषि क्षेत्र सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देने के साथ ही सबसे ज्यादा पानी का इस्तेमाल भी करता है. कुओं और पंपों से निकलता पानी भूजल में भारी कमी ला रहा है और मौसमी बदलाव के कारण उनकी भरपाई नहीं हो रही है. नतीजतन बहुत से किसान खेती छोड़ रहे हैं.