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दुनिया को राह दिखाते मुंबई समेत ये चार बड़े शहर

स्टुअर्ट ब्राउन
२२ अप्रैल २०२२

दुनिया भर में अगर स्थानीय प्रशासन चाहे तो बहुत कुछ बदल सकता है. अर्थ डे के मौके पर एक नजर उन शहरों पर, जो दिखा रहे हैं कि छोटे छोटे कदमों से बड़ी मंजिल तक कैसे पहुंचा जा सकता है.

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Rev – Städte für Menschen
तस्वीर: Jan Kamensky

दुनिया में इस वक्त ऐसी कम-से-कम एक दर्जन मिसालें हैं, जो बता रही हैं कि जलवायु परिवर्तन की मार से बचने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है. इनमें कुछ महानगर भी शामिल हैं.
1. कोपेनहेगन: दुनिया का पहला कार्बन न्यूट्रल शहर?

2012 में डेनमार्क की सरकार और कोपेनहेगन प्रशासन ने कोपेनहेगन को दुनिया का पहला कार्बन न्यूट्रल शहर बनने का लक्ष्य रखा. इसके लिए समयसीमा 2025 तय की गई. डेनमार्क की राजधानी 2025 तक इस लक्ष्य को हासिल करने के करीब है.
शहर के कार्बन उत्सर्जन में एनर्जी सेक्टर की भूमिका 66 फीसदी थी और 34 फीसदी कार्बन ट्रांसपोर्ट के कारण आबोहवा में घुलता था. डेनमार्क ने ग्रीन मोबिलटी और उत्पादन व खपत क्षेत्र में ऊर्जा बचाने पर जोर दिया. 2020 आते-आते कोपेनहेगन ने कार्बन उत्सर्जन में 20 फीसदी की कटौती कर दी.
ऊर्जा और ईंधन के लिए कोपेनहेगन कोयले, तेल और गैस पर निर्भर है. लेकिन बीते सालों में अक्षय ऊर्जा स्रोतों से मिलने वाली बिजली की हिस्सेदारी बढ़ रही है. पवन, सौर और बायोमास ऊर्जा की मदद से जीवाश्म ईंधन की मांग में 50 फीसदी की कमी आई है. बिजली बचाने के लिए स्मार्ट एनर्जी ग्रिड लगाए जा रहे हैं. घरों से लेकर रिटेल स्टोरों और प्रोडक्शन यूनिटों तक में इनका इस्तेमाल किया जा रहा है.

कोपेनेहेगन का विशाल साइकिल नेटवर्क
कोपेनेहेगन का विशाल साइकिल नेटवर्कतस्वीर: Alexander Demianchuk/TASS/dpa/picture-alliance


कोपेनहेगन प्रशासन चाहता है कि महानगर में रहने वाले लोग इधर-उधर जाने के लिए पदयात्रा या साइकिल इस्तेमाल करें. 2025 तक शहर के भीतर होने वाली आवाजाही का 75 फीसदी हिस्सा पैदल, साइकिल या सार्वजनिक परिवहन से तय करने का लक्ष्य है. कोपेनहेगन में 2030 से डीजल और पेट्रोल गाड़ियों पर पूरा प्रतिबंध लागू हो जाएगा.

2. मुंबई: दक्षिण एशिया का क्लाइमेट लीडर महानगर

COP26 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2070 तक भारत को कार्बन न्यूट्रल बनाने का वादा किया. दुनिया ने इस वादे का स्वागत किया. ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरे नंबर पर है.

भारत की वित्तीय राजधानी कही जाने वाली मेगासिटी मुंबई इस लक्ष्य को 2050 तक हासिल करना चाहती है. दो करोड़ से ज्यादा आबादी वाली मुंबई क्लाइमेट एक्शन इनिशिएटिव C40 में शामिल है.  मार्च 2022 में मुंबई ने अपना पहला क्लामेट एक्शन प्लान पेश किया. यह प्लान, वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट और ग्लोबल अर्बन क्लाइमेट एक्शन इनिशिएटिव के साथ मिलकर बनाया गया है.

क्या बाढ़ मुंबई को ले डूबेगी?

समंदर तट पर बसी मुंबई बीते कुछ सालों से लगातार बाढ़ और प्रचंड गर्मी का सामना कर रही है. शहर के कुल कार्बन उत्सर्जन में ऊर्जा क्षेत्र की हिस्सेदारी 72 फीसदी है. इस 72 फीसदी सप्लाई को कार्बन मुक्त करने का इरादा है. मुंबई को अभी 50 फीसदी बिजली कोयले से चलने वाले पावर प्लांट से मिलती है. शहर 2050 तक इसे सौर और पवन ऊर्जा से रिप्लेस करना चाहता है. इमारतों को भी उत्सर्जन मुक्त बनाने पर जोर दिया जा रहा है.

ट्रांसपोर्ट पर भी फोकस है. शहर के ट्रांसपोर्ट नेटवर्क को बिजली से चलने वाला बनाया जा रहा है. 2023 तक मुंबई में 2,000 से ज्यादा इलेक्ट्रिक बसें उतारी जाएंगी. इसके साथ ही मुंबई के लिए जीरो लैंडफिल वेस्ट मैनेजमेंट प्लान भी बनाया गया है. शहर में 10 फीसदी मीथेन का उत्सर्जन इन्हीं लैंडफिलों से होता है. मुंबई में बड़े पैमाने पर पेड़ लगाने का भी लक्ष्य है.


3. पेरिस: 15 मिनट वाला शहर

शहरों में कार्बन उत्सर्जन के लिए बहुत हद तक ट्रांसपोर्ट भी जिम्मेदार है. कारों और निजी वाहनों का रेला खूब कार्बन उत्सर्जन करता है. लेकिन अगर शहरों को पैदल चलने वालों या साइकिल चलाने वालों के मुताबिक ढाला जाए, तो कई समस्याएं हल हो सकती हैं.

फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक 15 मिनट वाले शहर का कॉन्सेप्ट लागू किया जा रहा है. आने-जाने में खर्च होने वाले समय को कम-से-कम करने के लिए पेरिस ने कहीं भी 15 मिनट में पहुंचने का लक्ष्य रखा है. ऑस्ट्रेलिया के शहर मेलबर्न ने इसके लिए 20 मिनट बांधे हैं.

फ्रांस की राजधानी पेरिस
15 मिनट वाला पेरिसतस्वीर: Givaga/Zoonar/picture alliance

2020 में दोबारा मेयर का चुनाव लड़ने वाली पेरिस की मेयर आने हिडालगो ने 15 मिनट वाले शहर का नारा दिया. ट्रैफिक जाम के लिए बदनाम पेरिस अब हर सड़क पर साइकिल ट्रैक बना रहा है. शहर की सड़कों पर कारों के लिए बनाई गई 70 फीसदी पार्किंग खत्म की जा रही है. ऐसा करने के बाद बची-खुची पार्किंग सुविधाएं, एक-दूसरे से ज्यादा दूरी पर होंगी और महंगी भी होंगी. ट्रैफिक को काबू में रख वायु और ध्वनि प्रदूषण पर भी अकुंश लगाने का इरादा है. पेरिस ने 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने का लक्ष्य रखा है.

प्लान के तहत शहर के बाशिंदों को उनकी जरूरत की हर सुविधा 15 मिनट की पदयात्रा या साइकिल राइड पर मिलेगी. इन सुविधाओं में स्कूल, पार्क, प्लेइंग ग्राउंड, दुकानें और स्वास्थ्य सेवाएं भी शामिल होंगी.

4. सिएटल और फाउबान: पर्यावरण प्रेमी समुदाय

दुनिया के कुछ शहर और स्थानीय प्रशासन पर्यावरण को बचाने के लिए अपनी केंद्रीय सरकार से भी अच्छे कदम उठा रहे हैं. कनाडा के महानगर सिएटल की एक आर्किटेक्चर और अर्बन प्लानिंग फर्म 'लार्ष लैब' रिहाइशी इमारतों वाले परिसरों को ईको डिस्ट्रिक्ट्स में बदलना चाहती है. फर्म ने यह कॉन्सेप्ट जर्मनी के बाउग्रुपेन से लिया है.

इस कॉन्सेप्ट में इमारतें डेवलपर्स नहीं, बल्कि मकान मालिक डिजायन करते हैं. फर्म, मकान मालिकों को बताती है कि किस तरह वे कार्बन मुक्त घर बना सकते हैं. ऐसे घर, जो अपनी ऊर्जा स्वच्छ तरीके से हासिल करें. अपने कचरे को रिसाइकिल और अपसाइकिल करें. ऐसी इमारतें शुरुआत में काफी महंगी लगती हैं, लेकिन 20-25 साल के खर्च को देखें, तो ये सस्ती पड़ती हैं.

फाउबान कस्बा
जर्मनी का फाउबान कस्बातस्वीर: imago stock&people


जर्मनी के फ्राइबुर्ग शहर का पड़ोसी जिला फाउबान इस मॉडल का जीता-जागता सबूत है. फ्राइबुर्ग शहर 2030 तक अपना उत्सर्जन 60 फीसदी घटाना चाहता है. यह लक्ष्य हासिल करने की कोशिश कर रहे शहरों को फाउबान काफी कुछ सिखाने को तैयार है.

फाउबान को 1990 के दशक के आखिर में बनाया गया. जिस जगह पर पहले फ्रांसीसी सेना के बैरक होते थे, आज वहां 5,600 लोग रहते हैं. सारे निवासी कार मुक्त जीवन जीते हैं. वे अपने सारे काम पैदल चलकर या साइकिल से पूरे करते हैं. इमारतों की छतों में सोलर पैनल लगे हैं और परिसर में बायोगैस पावर प्लांट. लोग अपने सीवेज से बिजली बनाते हैं.

अब दुनिया के कई शहर फाउबान के मॉडल को अपनाना चाहते हैं.