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मणिपुर: सरकार से नाराजगी, बीजेपी नेताओं के घरों पर हुए हमले

प्रभाकर मणि तिवारी
२९ मई २०२३

मणिपुर में जारी भारी हिंसा और आगजनी के बीच 29 मई को गृह मंत्री अमित शाह चार दिनों के दौरे पर राजधानी इंफाल पहुंच रहे हैं. सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे भी सुरक्षा स्थिति की समीक्षा करने के लिए राज्य का दौरा कर चुके हैं.

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सरकारी अधिकारियों ने बताया कि ताजा संघर्ष तब शुरू हुआ, जब विभिन्न समुदायों को हथियारों से मुक्त करने और शांति बहाल करने के लिए सेना ने तलाशी अभियान शुरू किया.
सरकारी अधिकारियों ने बताया कि ताजा संघर्ष तब शुरू हुआ, जब विभिन्न समुदायों को हथियारों से मुक्त करने और शांति बहाल करने के लिए सेना ने तलाशी अभियान शुरू किया.तस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

उधर, सरकार ने हिंसा और आगजनी में शामिल 40 कुकी उग्रवादियों को मार गिराने का दावा किया है. मणिपुर संकट पर प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी से परेशान होकर लोग राज्य में भाजपा नेताओं पर हमला कर रहे हैं. अब तक केंद्रीय मंत्री डॉ. आरके रंजन, राज्य में मंत्री गोविंद दास, विश्वजीत और खेमचंद के घरों पर हमले हो चुके हैं.

अब तक हिंसा में70 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और करोड़ों की संपत्ति जलकर राख हो गई है. हजारों लोग बेघर हुए हैं. इनमें से 40 हजार लोग तो मणिपुर के अलावा पड़ोसी मिजोरम और असम में बने शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं.

अमित शाह के दौरे से ठीक पहले 28 मई को भड़की हिंसा के ताजा चरण के बाद एक पुलिसकर्मी सहित कम-से-कम पांच लोगों की मौत हो गई और 12 अन्य घायल हो गए. वहीं पिछले महीने हुई जातीय हिंसा में कम-से-कम 70 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. हिंसा और आगजनी के बाद ज्यादातर जिलों में कर्फ्यू लागू है. इसने आम लोगों का जीवन दूभर कर दिया है. इस महीने की शुरुआत से ही इंटरनेट पर भी पाबंदी है, जिसे 31 मई तक बढ़ा दिया गया है. ऐसे में दुर्गम इलाकों की खबरें भी सामने नहीं आ पा रही हैं. राज्य में जरूरी वस्तुओं की कीमतों में तेजी ने आम लोगों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं.

मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की लगातार अपील के बावजूद राज्य में शांति बहाल होने का नाम नहीं ले रही है.
मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की लगातार अपील के बावजूद राज्य में शांति बहाल होने का नाम नहीं ले रही है.तस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

भारी मात्रा में हथियारों की लूट

सरकारी अधिकारियों ने बताया कि ताजा संघर्ष तब शुरू हुआ, जब विभिन्न समुदायों को हथियारों से मुक्त करने और शांति बहाल करने के लिए सेना ने तलाशी अभियान शुरू किया. मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने बताया कि सुरक्षा बलों ने घरों में आगजनी और लोगों पर गोलीबारी करने में शामिल लगभग 40 सशस्त्र उग्रवादियों को मार गिराया है. मुख्यमंत्री ने बताया कि उग्रवादियों ने कई इलाकों में थानों पर हमला कर भारी मात्रा में हथियार भी लूट लिए हैं. लूटे गए हथियारों में से कुछ बरामद भी किए गए हैं.

राज्य सचिवालय में मीडियाकर्मियों से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री ने दावा किया कि हालिया झड़पें दो समुदायों नहीं, बल्कि कुकी उग्रवादियों और सुरक्षाबलों के बीच हुई हैं. उनके मुताबिक, सशस्त्र उग्रवादी अपने हमलों में एके-47, एम-16 और स्नाइपर राइफल जैसे आधुनिकतम हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं. सुरक्षाबलों ने जवाबी कार्रवाई में इन उग्रवादियों को निशाना बनाया. हालांकि मुख्यमंत्री ने यह नहीं बताया कि यह मुठभेड़ कब-कब और कहां हुई है.
मुख्यमंत्री ने लोगों से सुरक्षाकर्मियों की आवाजाही में बाधा ना डालने की अपील करते हुए उनसे सरकार पर भरोसा रखने और सुरक्षाबलों का समर्थन करने का आग्रह किया.

सेना और सुरक्षाबलों के लिए नाराजगी

हिंसा पीड़ित लोगों में सेना और सुरक्षाबलों के प्रति भारी नाराजगी है. मैतेयी-बहुल विष्णुपुर जिले में सैकड़ों महिलाओं ने नेशनल हाई-वे की नाकेबंदी कर असम राइफल्स के जवानों को भीतरी इलाकों में जाने से रोक दिया. उनका आरोप था कि सेना और सुरक्षा बल हिंसा और आगजनी से उनकी रक्षा करने में नाकाम रहे हैं. आलम यह है कि हिंसा-पीड़ित इलाकों में महिलाएं दिन के समय अलग-अलग गुट बनाकर प्रवेश के तमाम रास्तों पर पहरा दे रही हैं और रात में यह काम गांव के पुरुषों के जिम्मे है.

हिंसा पीड़ित लोगों में सेना और सुरक्षाबलों के प्रति भारी नाराजगी है.
हिंसा पीड़ित लोगों में सेना और सुरक्षाबलों के प्रति भारी नाराजगी है.तस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

क्यों शुरू हुई हिंसा?

राज्य के मैतेई और आदिवासी समुदाय के बीच लंबे समय से तनाव चल रहा है. राज्य में गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय की आबादी करीब 53 फीसदी है. इस समुदाय के लोग मणिपुर घाटी में रहते हैं. मैतेई लंबे अरसे से अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. उनकी दलील है कि अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने के बाद वे राज्य के पर्वतीय इलाकों में जमीन खरीद सकेंगे. फिलहाल वे मैदानी इलाको में तो जमीन खरीद सकते हैं, लेकिन पर्वतीय इलाको में जमीन खरीदने का अधिकार नहीं है. वहीं आदिवासी समुदाय मैतेई की इस मांग का विरोध करते हैं.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि फिलहाल दो मुद्दों ने राज्य में ताजा समस्या पैदा की है. इसमें पहला है, राज्य सरकार की ओर से वन क्षेत्र में अतिक्रमण हटाओ अभियान शुरू करना. दूसरा महत्वपूर्ण घटनाक्रम रहा, मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के मुद्दे पर हाईकोर्ट की अनुशंसा. मैतेई संगठन की ओर से दायर एक याचिका पर बीते 19 अप्रैल को अदालत ने राज्य सरकार से इस मांग पर विचार करने कहा था. साथ ही, चार महीने के भीतर केंद्र को अपनी सिफारिश भेजने का भी निर्देश दिया था. हाईकोर्ट के इस निर्देश के बाद ही दोनों समुदायों के बीच हिंसा शुरू हो गई.

हिंसा और आगजनी के बाद ज्यादातर जिलों में कर्फ्यू लागू है. इसने आम लोगों का जीवन दूभर कर दिया है.
हिंसा और आगजनी के बाद ज्यादातर जिलों में कर्फ्यू लागू है. इसने आम लोगों का जीवन दूभर कर दिया है. तस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

मई की शुरुआत में आदिवासी संगठनों ने मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में अखिल आदिवासी छात्र संघ मणिपुर के बैनर तले राज्य के सभी 10 पर्वतीय जिलों में आदिवासी एकता रैली का आयोजन किया था. इस दौरान बिष्णुपुर और चूड़ाचांदपुर जिले की सीमा पर हिंसा की शुरुआत तब हुई, जब भीड़ ने एक समुदाय के घरों में आग लगा दी. उसके बाद यह हिंसा तेजी से राज्य के दूसरे जिलों में भी फैल गई. चूड़ाचांदपुर में कुकी आदिवासी तबके के लोगों की आबादी सबसे ज्यादा है, जबकि बिष्णुपुर में मैतेई समुदाय के लोग रहते हैं.

क्या अमित शाह के दौरे से हालात बदलेंगे?

कभी उग्रवाद के लिए लगातार सुर्खियां बटोरने वाला पूर्वोत्तर का यह छोटा-सा पर्वतीय राज्य मई की शुरुआत से ही जातीय हिंसा की आग में धधक रहा है. पूरे प्रदेश को सेना और सुरक्षा बलों की छावनी बना देने और मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की लगातार अपील के बावजूद राज्य में शांति बहाल होने का नाम नहीं ले रही है.

एक अहम चिंता यह भी है कि मौजूदा हिंसा ने पर्वतीय और मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों के बीच नफरत और अविश्वास की जो गहरी खाई पैदा की है, क्या उसे निकट भविष्य में पाटा जा सकेगा? इन सवालों का जवाब आने वाले दिनों में ही मिलेगा. हालांकि राजनीतिक पर्यवेक्षकों का अनुमान है कि मैतेई और कुकी संगठनों के बीच जारी इस दशकों पुराने विवाद के कारण दोनों समुदायों के बीच पनपी कड़वाहट खत्म होने के आसार कम ही हैं.