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आतंकवादजर्मनी

माग्देबुर्ग हमले के बाद भारतीयों के लिए कैसा है माहौल

आदर्श शर्मा
२६ दिसम्बर २०२४

क्रिसमस मार्केट पर हुए कार हमले ने जर्मनी को बेचैन कर दिया है. प्रवासियों के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन होने लगे हैं. तो वहीं अधिकतर लोग नफरत ना फैलाने की बात कह रहे हैं. जानिए जर्मनी में रहने वाले भारतीय इसे कैसे देख रहे हैं.

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माग्देबुर्ग का बंद हो चुका क्रिसमस मार्केट
इस जर्मन शहर में रहते हैं हजारों भारतीय छात्र

37 वर्षीय नवज्योत बाघमारे पेशे से ऑटोमेशन एक्सपर्ट हैं. वे पिछले सात सालों से जर्मनी के माग्देबुर्ग शहर में रह रहे हैं. बीते 20 दिसंबर की शाम को वे क्रिसमस मार्केट जाने के लिए घर से निकले. वहां पहुंचे तो देखा कि लोग हड़बड़ाहट में बाहर की तरफ आ रहे हैं. फिर उन्हें पता चला कि पुलिस सभी को अपने घर जाने के लिए कह रही है. कुछ ही मिनटों बाद एक साथ कई एम्बुलेंस के सायरन की आवाज उनके कानों में गूंजने लगी.

उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी को बताया, "मैं अचानक पैदा हुई इस स्थिति से घबरा गया और अपने घर लौट आया. बाद में टीवी न्यूज के जरिए मुझे इस हमले के बारे में पता चला.” यहां नवज्योत माग्देबुर्ग के क्रिसमस मार्केट पर हुए कार हमले की बात कर रहे हैं, जिसमें एक शख्स तेज रफ्तार में कार चलाते हुए मार्केट में घुस गया और लोगों को टक्कर मारते हुए बाहर निकल गया. इस हमले में एक बच्चे समेत पांच लोगों की मौत हो गई और करीब 200 लोग घायल हो गए. इस हमले में सात भारतीय भी घायल हुए.

क्या जर्मनी के क्रिसमस मार्केट पर हमला रोका जा सकता था

आरोपी तालिब ए को हमले के तुरंत बाद हिरासत में ले लिया गया. उस पर हत्या, हत्या की कोशिश और लोगों को गंभीर रूप से घायल करने के आरोप लगाए गए हैं. तालिब सऊदी अरब का नागरिक है और पेशे से डॉक्टर है. वह 2006 से जर्मनी में रह रहा है. क्रिसमस से ऐन पहले हुए इस हमले ने माग्देबुर्ग शहर के लोगों को दुखी और चिंतित कर दिया है. साथ ही प्रवासियों का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है. इसका प्रभाव माग्देबुर्ग में रह रहे भारतीयों पर भी पड़ रहा है.

सामूहिक शोक मना रहा है माग्देबुर्ग

हमले के बाद का घटनाक्रम समझने के लिए डीडब्ल्यू हिंदी की टीम 24 दिसंबर की सुबह माग्देबुर्ग पहुंची. यहां क्रिसमस मार्केट के बाहर एक सजावटी दरवाजा बना हुआ था. उसके नीचे बहुत सारे फूल, मोमबत्ती और खिलौने रखे हुए थे. ये चीजें हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए रखी गई थीं. इसके अलावा, एक बड़ी एलईडी स्क्रीन पर श्रद्धांजलि संदेश भी चल रहा था.

यहां हमारी मुलाकात तीन भारतीय युवकों से हुई जो ऑटो फॉन गेरीके यूनिवर्सिटी से मास्टर्स कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि चूंकि हमलावर एक प्रवासी है, इसलिए उन्हें भी सावधानी बरतने की सलाह दी गई है. उनके मुताबिक, माग्देबुर्ग में तकरीबन दो से तीन हजार भारतीय स्टूडेंट्स रहते हैं. इनके कई वॉट्सअप ग्रुप भी बने हुए हैं. हमले के बाद, इन ग्रुप्स के जरिए भारतीय स्टूडेंट्स को अपने घर या कमरे के अंदर ही रहने की सलाह दी गई है.

थोड़ा आगे बढ़ने पर हम सेंट जॉन्स चर्च पहुंचे. मृतकों की याद में यहां पर अस्थायी स्मारक बनाया गया है. यहां बड़ी संख्या में लोग फूल, मोमबत्ती और खिलौने लेकर मृतकों को श्रद्धाजंलि देने आ रहे थे. चारों तरफ नम आंखें और उदास चेहरे नजर आ रहे थे. स्थानीय लोग इस हमले को लेकर गुस्सा जरूर थे लेकिन उनके चेहरों पर आक्रोश नहीं बल्कि शोक दिखाई दे रहा था. यहां हमारी मुलाकात एक और भारतीय स्टूडेंट आनंद से हुई.

क्रिसमस मार्केट के पास ही बनाया गया एक अस्थाई गेट
क्रिसमस मार्केट के पास ही बनाया गया एक अस्थाई गेटतस्वीर: Adarsh Sharma/DW

आनंद भारत के केरल राज्य से आते हैं और यहां अपनी मास्टर्स की पढ़ाई कर रहे हैं. वे हमें घटनास्थल तक लेकर गए और बताया कि किस तरह हमले को अंजाम दिया गया. उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी से कहा कि अब स्थानीय जर्मन नागरिकों का प्रवासियों को देखने का नजरिया बदल गया है और इसका प्रभाव भारतीय स्टूडेंट्स पर भी पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि हमले के बाद वे सिर्फ बेहद जरूरी कामों के लिए ही घर से बाहर निकल रहे हैं.

माग्देबुर्ग से गायब हुई क्रिसमस की रौनक

हमले के बाद माग्देबुर्ग के क्रिसमस मार्केट को बंद कर दिया गया. लेकिन लोग यहां घटनास्थल को देखने और श्रद्धाजंलि अर्पित करने आ रहे हैं. एक साल पहले पाकिस्तान से जर्मनी आईं शौबिया अमीन और उनके पति मोहम्मद अमीन भी घटनास्थल को देखने आए हुए थे. शौबिया ने डीडब्ल्यू हिंदी से कहा, "मैं करीब 10 दिन पहले यहां आई थी. तब यहां इतनी रौनक थी, जैसे उसी दिन क्रिसमस मनाया जा रहा हो. लेकिन आज क्रिसमस से एक दिन पहले यहां इतनी खामोशी है. यह बहुत दर्दनाक है.”

एएफडी से चांसलर पद की उम्मीदवार एलिस वाइडेल
एएफडी से चांसलर पद की उम्मीदवार एलिस वाइडेल ने माग्देबुर्ग में एक सभा को संबोधित किया तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance

वहीं, मोहम्मद अमीन ने बताया कि अब माग्देबुर्ग में प्रवासियों के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन होने लगे हैं. वे कहते हैं, "सभी लोग एक जैसे नहीं होते हैं. लेकिन उस एक शख्स की वजह से, स्थानीय लोगों की नजर में सभी प्रवासी खराब हो गए हैं. हम नहीं चाहते हैं कि यहां कोई दंगा-फसाद हो या इस तरह की घटनाएं हों.”

प्रवासियों का विरोध कर रहे दक्षिणपंथी

धुर-दक्षिणपंथी समर्थकों ने शनिवार को माग्देबुर्ग में इस घटना के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया. वे आक्रामक तरीके से प्रवासी विरोधी नारे लगा रहे थे. इस दौरान उनकी पुलिस के साथ झड़प भी हुई. इसके बाद, सोमवार शाम को धुर-दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी ने कैथेड्रल स्क्वायर में विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया. चांसलर पद के लिए पार्टी की उम्मीदवार एलिस वाइडल ने सभा को संबोधित किया. प्रदर्शन में मौजूद लोगों ने ‘डिपोर्टेशन' यानी प्रवासियों को निर्वासित करने के नारे लगाए.

पिछले 14 सालों से माग्देबुर्ग में रह रहे सतीश रंजन का मानना है कि प्रदर्शनकारियों का यह गुस्सा शरणार्थियों के प्रति है. उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी से कहा, "प्रदर्शन में शामिल लोगों ने आतंकवाद के खिलाफ नहीं, बल्कि शरणार्थियों के खिलाफ नारे लगाए. वे रीमाइग्रेशन यानी प्रवासियों को वापस उनके देश भेज देने को सबसे बड़े समाधान के तौर पर देख रहे हैं.”

सतीश रंजन, भारतीय वैज्ञानिक, माग्देबुर्ग निवासी
14 साल से माग्देबुर्ग में रहने वाले भारतीय वैज्ञानिक सतीश रंजनतस्वीर: Adarsh Sharma/DW

सतीश पेशे से वैज्ञानिक हैं और पिछले पांच सालों से माग्देबुर्ग में एक भारतीय रेस्त्रां भी चला रहे हैं. वे कहते हैं, "इस हमले के बाद सुरक्षा और प्रवासियों का मुद्दा केंद्र में आ गया है. एएफडी को फरवरी में होने वाले मध्यावधि चुनावों में इसका फायदा मिल सकता है. वहीं, प्रवासियों के खिलाफ जो माहौल बनेगा, उससे भारतीय भी प्रभावित होंगे, क्योंकि लोगों के चेहरों पर उनके देश का नाम नहीं लिखा होता.”

नफरत ना फैले इसलिए बनाई मानव श्रृंखला

माग्देबुर्ग में सोमवार शाम को एक तरफ एएफडी की रैली हो रही थी, वहीं दूसरी ओर हजारों लोग नफरत के खिलाफ मानव श्रृंखला बना रहे थे. मीडिया कंपनी जेडडीएफ के मुताबिक, करीब चार हजार लोग क्रिसमस मार्केट में इकट्ठा हुए और उन्होंने हाथ में मोमबत्ती लेकर मानव श्रृंखला बनाई. उनका नारा था, "हम शोक मनाना चाहते हैं, नफरत को कोई मौका मत दीजिए.”

मृतकों को याद करने के अलावा, इस पहल का उद्देश्य धुर-दक्षिणपंथियों का विरोध करना भी था, जो इस हमले का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं. इस दौरान लोगों ने आपातकालीन सेवाओं का भी शुक्रिया अदा किया. खासतौर पर आरोपी को पकड़ने वाली पुलिस टीम का और घायलों का इलाज करने वाली मेडिकल टीमों का.

जर्मन नागरिकता हासिल कर चुके नवज्योत कहते हैं कि वे पुराने जर्मनी को मिस करते हैं, जब क्रिसमस मार्केट के बाहर इतनी सुरक्षा व्यवस्था नहीं हुआ करती थी. वे कहते हैं, "इतनी सुरक्षा व्यवस्था होने का मतलब है कि एक खतरा लगातार बना हुआ है. स्थानीय लोग इसे देखकर असहज हो जाते हैं. उन्हें लगता है कि वे अपने ही देश में डर के साये में जश्न मना रहे हैं. सबसे अच्छी स्थिति तो तब होगी, जब सुरक्षा की कोई चिंता ही नहीं होगी.”