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कानून और न्यायभारत

तमिलनाडु: ट्रांसजेंडर लोगों को लिंग के आधार पर मिलेगा आरक्षण

चारु कार्तिकेय
३ जून २०२४

मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को राज्य में सभी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को लिंग के आधार पर आरक्षण देने का आदेश दिया है. राज्य सरकार ट्रांसजेंडर आरक्षण खुद ही लेकर आई थी, लेकिन प्रस्ताव अदालत के आदेश से अलग था.

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ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकार
मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा हैतस्वीर: Indranil Aditya/picture alliance/ZUMAPRESS.com

मद्रास हाईकोर्ट रशिका राज नाम के ट्रांसजेंडर व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था. रशिका एक नर्स हैं और तमिलनाडु नर्सेज एंड मिडवाइव्ज काउंसिल के साथ पंजीकृत हैं. उन्हें तमिलनाडु सरकार की आरक्षण व्यवस्था के तहत आरक्षण मिल रहा था, लेकिन वह इस व्यवस्था से सहमत नहीं थी.

कोटा के अंदर कोटा

दरअसल, राज्य सरकार की नीति के तहत राज्य में जो ट्रांसजेंडर खुद को ट्रांसजेंडर महिला मानते हैं उन्हें हॉरिजॉन्टल आरक्षण देने का और बाकी ट्रांसजेंडरों को वर्टिकल आरक्षण देने का प्रावधान है.

सुप्रीम कोर्ट
2014 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था जिसके मुताबिक ट्रांसजेंडर व्यक्तियों लोगों को अपनी जेंडर पहचान खुद निर्धारित करने का अधिकार हैतस्वीर: Manish Swarup/AP/picture alliance

वर्टिकल आरक्षण यानी सीधा आरक्षण होता है. इसके विपरीत हॉरिजॉन्टल आरक्षण का मतलब होता है वर्टिकल आरक्षण के तहत किसी विशेष वर्ग को दिया जाने वाला आरक्षण. इसे कोटा के अंदर कोटा की व्यवस्था भी कहा जाता है.

रशिका को अति पिछड़ा वर्ग (एमबीसी) आरक्षण के तहत आरक्षण दिया गया था और उन्हें इस बात पर आपत्ति थी. उनके वकील ने अदालत को बताया कि उन्हें बतौर एमबीसी आरक्षण देने का का मतलब है कि ट्रांसजेंडर समुदाय को एक जाति समझा गया, जबकि ट्रांसजेंडर होना एक जेंडर पहचान है और इसके लिए हॉरिजॉन्टल आरक्षण दिया जाना चाहिए.

आरक्षण के आधार पर सवाल

उनकी वकील एनएस तन्वी ने अदालत में कहा कि यह मनमानी है. हॉरिजॉन्टल आरक्षण दिए जाने से ट्रांसजेंडर लोगों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्गों के लिए आरक्षण के अंदर आरक्षण मिल सकेगा.

भारत में ट्रांसजेंडरों को रक्तदान की इजाजत क्यों नहीं है

रशिका का यह भी कहना था कि राज्य सरकार की व्यवस्था के तहत अगर किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के पास समुदाय का प्रमाणपत्र नहीं है तो उसे अति पिछड़ा वर्ग के तहत मन कर आरक्षण दिया जाएगा, जो भेदभावपूर्ण है. 2014 का सुप्रीम कोर्ट का नालसा आदेश लोगों को अपनी जेंडर पहचान खुद निर्धारित करने का अधिकार देता है.

अदालत ने उनकी दलील को स्वीकार किया और कहा कि ट्रांसजेंडरों को वर्टीकल आरक्षण देने वाला सरकारी आदेश संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है. अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि सुप्रीम कोर्ट के नालसा फैसले को देखते हुए, सरकार 12 हफ्तों के अंदर रशिका को हॉरिजॉन्टल आरक्षण दे.