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समाज

यहां सात पुश्तों की कुंडली खंगाल तय किए जाते हैं विवाह

मनीष कुमार, पटना
१६ जुलाई २०२१

डिजिटल दुनिया के इस दौर में बिहार में आज भी मिथिलांचल में ऐसी व्यवस्था कायम है जिसके तहत दशकों पहले बनाई गई पंजी (रजिस्टर) के आधार पर पंजीकार सात पुश्तों की कुंडली खंगाल विवाह तय करने की अनुमति देते हैं.

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Indien Massenheiratsmarkt in Saurath
तस्वीर: Manish Kumar/DW

बिहार के मधुबनी जिले का एक गांव है सौराठ. यह जिला मुख्यालय से छह किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पूर्व में स्थित है. इस गांव की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई है. कहा जाता है कि 12वीं सदी में मुगलों के आक्रमण के दौरान सौराष्ट्र से आकर दो ब्राह्मण यहां बस गए. क्योंकि ये लोग गुजरात के सौराष्ट्र से यहां आए थे इसलिए इस जगह का नाम कालांतर में सौराठ हो गया. इस जगह की एक और खासियत यह भी है कि यहां से थोड़ी दूरी पर ही सोमनाथ मंदिर जैसा एक मंदिर भी बना हुआ है.

हर साल जेठ और आषाढ़ (जून-जुलाई) महीने में यहां एक सभा का आयोजन होता है जिसे सौराठ सभा गाछी कहते हैं. मिथिलांचल में फलों के बगीचे को गाछी कहा जाता है. इस अवधि में 11 दिनों तक मिथिलांचल वासी यहां पहुंचकर वर-वधू का चयन करते हैं. पंजीकार विश्व मोहन चंद्र मिश्र कहते हैं, ‘‘मिथिला के सभी वर्णों व जातियों के विवाह प्रस्ताव मैथिलों के कन्या या वर पक्ष से होने के लिए यह व्यवस्था लागू की गई थी. जिसमें मैथिल ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, कायस्थ या वैश्य वर्ण के लिए पंजी बनाई गई थी.''

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ये है वह सभा गाछी जहां 700 साल से रिश्ते तय हो रहे हैंतस्वीर: Manish Kumar/DW

वर्ष 1310 से होता आ रहा है आयोजन

सौराठ सभा का इतिहास बहुत पुराना है. 700 साल से अधिक समय से इस सभा का आयोजन होता आया है. कहा जाता है कि सौराठ सभा गाछी की शुरुआत सन 1310 में राजा हरिसिंह देव ने तत्कालीन समाज में विवाह पूर्व विद्यमान सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के उद्देश्य से की. मिथिला की सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने की मंशा भी इसके पीछे काम कर रही थी. पंजीकार विश्व मोहन चंद्र मिश्र के अनुसार मैथिल ब्राह्मणों ने सात सौ साल पहले वर्ष 1310 में यह प्रथा शुरू की थी, ताकि अच्छे कुल-खानदानों के बीच वैवाहिक संबंध तय हो सके. लेकिन अब इसकी लोकप्रियता घट रही है. वे कहते हैं, ‘‘1971 में यहां करीब डेढ़ लाख लोग आए थे. 1991 में भी यह संख्या पचास हजार थी, किंतु दिनों-दिन यहां आने वालों की संख्या घटती ही जा रही है.''

कर्णाट वंश के राजा हरिसिंह देव ने पवित्र वैवाहिक संबंध बनाने के लिए 1327 ईस्वी में पंजी व्यवस्था को लागू करवाया, ताकि एक गोत्र में ही विवाह न हो सके. एक गोत्र का तात्पर्य एक पूर्वज की संतान से है. विवाह की गरिमा और पवित्रता को अक्षुण्ण रखने के लिए पंजीकार बनाए गए जो इलाके के लोगों के कुल-खानदान के बारे में जानकारी इकठ्ठा कर उसे पंजीकृत करते थे अर्थात रजिस्टर पर चढ़ाते थे. उनकी स्वीकृति के बिना शादियां संभव नहीं होती.

हिंदुओं में शादी के लिए आज भी कुंडली मिलाने की परंपरा है
हिंदुओं में शादी के लिए आज भी कुंडली मिलाने की परंपरा हैतस्वीर: picture-alliance/dpa

आखिर होता क्या है सौराठ सभा में

सौराठ सभा में सुयोग्य वर-वधू की तलाश में मैथिल ब्राह्मण जमा होते हैं. वे अपने हिसाब से अपने बच्चों के लिए वर या वधू की तलाश में वहां पहुंचते हैं. जब लड़का-लड़की, दोनों पक्ष विवाह के लिए आपसी सहमति बना लेते हैं तब पंजीकारों की भूमिका शुरू होती है. पंजीकार दोनों पक्षों के सात पुश्तों की जन्म कुंडली खंगालते हैं कि कहीं पिछले सात पुश्तों में दोनों पक्ष में कोई वैवाहिक रिश्ता तो नहीं रहा है. अगर सात पुश्त तक दोनों पक्ष में वैवाहिक सबंध नहीं मिलता है तो पंजीकार शादी की सहमति प्रदान कर देते हैं. पंजीकार जन्मपत्री और राशिफल के आधार पर लड़के और लड़की की कुंडली भी मिलाते हैं. कुंडली मिल जाने पर शादी तय कर दी जाती है. सौराठ सभा में पारंपरिक पंजीकारों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. यहां जो रिश्ता तय होता है, उसे मान्यता पंजीकार ही देते हैं. इसकी मान्यता कोर्ट में भी होती है.

एक खास बात यह भी है कि जो लोग सौराठ सभा गाछी में वर-वधू का चयन करने के मकसद से नहीं आते हैं वे भी शादी का सिद्धांत लिखवाने अवश्य पहुंचते हैं. सौराठ के ग्रामीण रंजय झा कहते हैं, "आज भी यहां सभा वास के दौरान मिथिलांचल के अलावा नेपाल स्थित मिथिला क्षेत्र और देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं. वे यहां वर-वधू का चयन भले न करें, किंतु शादी का सिद्धांत लिखवाने जरूर आते हैं.'' शादी का सिद्धांत लिखवाने का आशय वैवाहिक प्रस्ताव को पंजीकृत करने से है. वे लोग जो मिथिलांचल के मूल निवासी हैं और आज किसी भी वजह से वहां नहीं रह रहे हैं, ऐसे लोग अपने पुत्र-पुत्री की शादी तय होने पर यहां पंजीकारों को सूचित करते हैं, अर्थात शादी का सिद्धांत लिखवाते हैं. कहा जाता है, सौराठ में शादी का सिद्धांत आज भी ताड़ के पत्ते पर लिखने का रिवाज कायम है.

समय के साथ बदला स्वरूप

समय के साथ-साथ सौराठ सभा वास का स्वरूप भी बदल गया है. वहीं इसकी महत्ता भी कम होती जा रही है. पहले जहां लाखों की संख्या में लोग सौराठ सभा वास में पहुंचते थे, वहीं अब हजार लोग भी बमुश्किल जुट पा रहे हैं. समाजशास्त्री ब्रह्मदेव राय कहते हैं, "आधुनिक युग की चकाचौंध में लोग अपने मूल से कट रहे हैं, परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं. अब शादी के लिए सौराठ सभा ही एकमात्र मंच नहीं रहा. अब तो गोत्र, मूल,जाति के बंधन की बाध्यता भी समाप्त होती जा रही है. प्रेम विवाह, अंतरजातीय विवाह धड़ल्ले से हो रहे हैं. लड़का- लड़की खुद मिलते हैं और अपनी मर्जी से जीवनसाथी का चुनाव करते हैं. डर से या फिर संतान मोह की वजह से मां-बाप भी बच्चों की खुशी में अपनी खुशी को ढूंढ लेते हैं."

पत्रकार अमित कहते हैं, "सामाजिक ताना-बाना ऐसा होता जा रहा है कि धर्म, जाति, गोत्र की दीवार कमजोर होती जा रही है. सौराठ सभा में पहले दहेज जैसी चीज नहीं थी, लेकिन अब दहेज की भी मांग की जाने लगी है. पहले आवागमन की सुविधा कम थी तब लोगों की मजबूरी थी कि अपने आसपास के इलाके में ही रिश्ता तय करें. ऐसे में सौराठ सभा जैसे मंच लोगों के मिलने-जुलने का जरिया प्रदान करते थे, किंतु अब रिश्ता तय करने का दायरा बढ़ गया है. डर है कि समय के साथ यह परंपरा कहीं लुप्त न हो जाए."

परंपरा बचाए रखने की जद्दोजहद

ऐसा नहीं है कि सौराठ सभा की खोयी गरिमा को पाने के लिए संगठित प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. विभिन्न सामाजिक संगठन इसके लिए आगे आ रहे हैं. सबसे पहले तो डिजिटल युग की मांग के अनुसार पंजी को कम्प्यूटरीकृत करने का काम किया जा रहा है. रिश्ते-नातों के खातों को डिजिटाइज करने से लोगों को भी सहूलियत होगी. इससे मिथिलांचल वासियों को वंशावली संबंधी जानकारी ऑनलाइन मिल सकेगी. प्रसिद्ध गायक एवं अटल भारत फाउंडेशन के संरक्षक उदित नारायण भी सौराठ सभा की प्रतिष्ठा को बरकरार रखने के लिए आगे आए हैं. वे कहते हैं, "गौरवशाली विश्व प्रसिद्ध सौराठ सभा का कायाकल्प किया जाएगा. पंजी को कम्प्यूटरीकृत करने के साथ-साथ सभा परिसर को बेहतर स्वरूप प्रदान करने की योजना बनाई जा रही है." सौराठ सभा परिसर में मंदिर, धर्मशाला, मंडप आदि धार्मिक संरचना के जीर्णोद्धार और सुंदरीकरण के काम को प्रमुखता दी जा रही है.

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पंजी व्यवस्था के डिजिटाइजेशन की कोशिश तस्वीर: Manish Kumar/DW

अटल भारत फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रदीप झा कहते हैं, "विवाह पूर्व कुल-गोत्र का मिलान धार्मिक व वैज्ञानिक, दोनों ही दृष्टिकोण से आवश्यक है. बदलते समय में मिथिला वासियों के इस वैवाहिक निर्धारण स्थल की महत्ता और भी बढ़ गई है." वहीं सरकारी स्तर पर भी सौराठ सभा की बेहतरी के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. मधुबनी जिले की प्रभारी मंत्री लेसी सिंह के अनुसार "मैथिल ब्राह्मणों के विश्व प्रसिद्ध वैवाहिक निर्धारण स्थल सौराठ सभा के विकास की पहल की जाएगी. इसे पर्यटन स्थल का दर्जा दिलाने और राजकीय महोत्सव के रुप में मनाने के लिए हरसंभव प्रयास किया जाएगा."

राज्य के पीएचईडी मंत्री रामप्रीत पासवान भी पंजी के कम्प्यूटरीकरण की आवश्यकता पर जोर देते हैं. वे भी कहते हैं, "सौराठ सभा को राजकीय महोत्सव का दर्जा दिलाने के लिए हरसंभव मदद की जाएगी, ताकि इस अनूठी विश्वस्तरीय परंपरा को बचाया जा सके." बीएन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के कार्यकारी कुलपति प्रोफेसर जयप्रकाश नारायण झा कहते हैं, "सौराठ सभा मैथिलों का गौरव तथा पूर्वजों की धरोहर है. इसे हर हाल में सहेजने की जरूरत है."