1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
तकनीकविश्व

एआई के इस्तेमाल में पीछे रहने का महिलाओं पर क्या असर होगा

तस्नीम जहरा
२६ अगस्त २०२४

पिछले सात साल के दौरान एआई के क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी दोगुनी हो गई है. इसके बावजूद इस इंडस्ट्री में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं अभी काफी पीछे हैं. इससे महिलाओं की जिंदगी और करियर पर कितना गंभीर असर पड़ सकता है?

https://p.dw.com/p/4jvv1
एक मोबाइल की स्क्रीन पर नजर आ रहे चैटजीपीटी और आस्क एआई के ऐप.
विश्व आर्थिक मंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एआई से जुड़ी नौकरियों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को 25 प्रतिशत कम मौके मिलते हैं. नौकरी मिलने के बाद भी उनके प्रमोशन पाने की संभावना 15 फीसदी कम होती है. तस्वीर: Jaap Arriens/NurPhoto/picture alliance

एआई की तेजी से बढ़ती इंडस्ट्री में महिलाएं अब भी पुरुषों की तुलना में काफी पीछे हैं, फिर चाहे वह एआई को विकसित करने में हो या उसका इस्तेमाल करने में. अगर आने वाले सालों में यह अंतर बढ़ता है, तो महिलाओं की जिंदगी और करियर पर गंभीर असर पड़ सकता है.

AI में निवेश को लेकर मची होड़ वैश्विक अर्थव्यवस्था को कहां ले जाएगी

यह मुद्दा सिर्फ लैंगिग समानता तक सीमित नहीं है. केनन इंस्टिट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं की लगभग 80 प्रतिशत नौकरियां ऐसी हैं जिनमें एआई की वजह से ऑटोमेशन आ सकता है.

यानी, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र से जुड़ी ये नौकरियां मशीनों और कंप्यूटरों द्वारा की जा सकेंगी. पुरुषों के मामले में यह आंकड़ा 58 प्रतिशत है. हालांकि, ये नौकरियां सीधे एआई द्वारा नहीं, बल्कि उन लोगों द्वारा ली जाएंगी, जो एआई में माहिर हैं. मसला सिर्फ नौकरी बचाने का नहीं है. जिस तेजी से एआई विकसित हो रहा है, इसका असर नौकरी के साथ-साथ समाज और डिजिटल अपराधों पर भी पड़ रहा है.

मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस 2024 के दौरान आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस से लैस एक रोबोट का उन्नत मॉडल.
विश्व आर्थिक मंच के आंकड़े बताते हैं कि 18 से 65 साल के 59 प्रतिशत पुरुष कर्मचारी हफ्ते में कम-से-कम एक बार एआई टूल्स का इस्तेमाल करते हैं. वहीं, महिलाओं में यह आंकड़ा 51 प्रतिशत है.तस्वीर: Marc Asensio/NurPhoto/IMAGO

क्यों जरूरी है एआई के क्षेत्र में महिलाओं की बराबरी

ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स और कॉग्निजेंट के अध्ययन के मुताबिक, अगले 10 सालों में 90 प्रतिशत नौकरियों पर जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का असर पड़ेगा. दूरदर्शन के पूर्व इंजीनियर इन-चीफ आर के सिंह ने भविष्य की इस तस्वीर के मद्देनजर डीडब्ल्यू हिन्दी के साथ बातचीत में कहा, "कोई ऐसी फील्ड नहीं है, जहां एआई का इस्तेमाल नहीं हो रहा है. आने वाले समय में सर्वाइव करने के लिए सबको एआई समझना पड़ेगा, चाहे वह वर्किंग हो या घर में रहे."

विश्व आर्थिक मंच के आंकड़े बताते हैं कि 18 से 65 साल के 59 प्रतिशत पुरुष कर्मचारी हफ्ते में कम-से-कम एक बार एआई टूल्स का इस्तेमाल करते हैं. वहीं, महिलाओं में यह भागीदारी 51 प्रतिशत है.

ऐतिहासिक एआई कानून को यूरोपीय संसद की हरी झंडी

जनरेशन जी के बीच एआई टूल्स का इस्तेमाल आम हो रहा है, लेकिन यहां भी आंकड़े कुछ खास नहीं है. 18 से 25 साल के पुरुषों में 71 प्रतिशत एआई का उपयोग करते हैं. जबकि, इसी उम्र की लड़कियों में यह आंकड़ा 59 प्रतिशत है. इस 12 प्रतिशत के अंतर से पता चलता है कि महिलाओं को एआई के बारे में शिक्षित करने का प्रयास अभी बाकी है. यह रुझान बना रहा, तो एआई में महारत हासिल करने का लाभ मुख्य रूप से पुरुषों को ही मिलता रहेगा.

गूगल का लोगो और बैकग्राउंड में बिंग का चैटजीपीटी. प्रतीकात्मक तस्वीर.
एआई के क्षेत्र में ऊंचे या वरिष्ठ प्रबंधन पदों (जैसे मैनेजर, डायरेक्टर या सीईओ) पर भी महिलाओं की संख्या बहुत कम है. विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट के अनुसार, विज्ञान और तकनीक (स्टेम) के ऊंचे पदों पर केवल 10 फीसदी महिलाएं हैं. तस्वीर: Taidgh Barron/ZUMAPRESS.com/picture alliance

ज्यादातर पुरुषों से सीख रहा है एआई!

कई जानकारों के मुताबिक, महिलाओं को एआई के क्षेत्र में बढ़ावा ना देने का एक मुख्य कारण एआई बायस या एआई पक्षपात भी है. एआई को विकसित करने वाले इंसान हैं. मगर एआई, डेटा की मदद से खुद ही चीजें करना सीख जाता है. इसकी यह खासियत इसे आम कंप्यूटर या इंटरनेट के इस्तेमाल से अलग करती है. इसे मशीन लर्निंग कहते हैं. अगर इस सिस्टम को विकसित करने वाले और इस्तेमाल करने वाले ज्यादातर पुरुष होंगे, तो एआई भी उन्हीं से सीखेगा, उनकी तरह सोचेगा और फैसले लेगा.

एआई एक्सपर्ट नेत्रा हिरानी डीडब्ल्यू हिन्दी के साथ अपना अनुभव साझा करते हुए कहती हैं, "मैंने फेशियल रिकॉग्निशन मॉडल्स पर काम किया है. इस तकनीक में जो डेटा सेट इस्तेमाल होता है, उसमें न लैंगिग विविधता होती है, न ही जातीय विविधता."

एक लैपटॉप स्क्रीन पर दिख रही ओपनएआई चैटजीपीटी वेबसाइट.
केनन इंस्टिट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं की लगभग 80 प्रतिशत नौकरियां ऐसी हैं जिनमें एआई की वजह से ऑटोमेशन आ सकता है.तस्वीर: Jaap Arriens/NurPhoto/picture alliance

हिरानी आगे बताती हैं, "जब आप ऐसे सीमित या पक्षपाती डेटा सेट पर अपने एआई मॉडल विकसित करते हैं, तो परिणाम भी पक्षपाती हो सकते हैं. इसीलिए एआई सिस्टम में कुछ हद तक लैंगिक भेदभाव पाया गया है. महिलाओं की भागीदारी से ही डेटा सेट बेहतर हो सकते हैं."

हाल ही में डीपफेक खूब चर्चा में रहा. डीपफेक, एआई की मदद से बनाया गया नकली वीडियो है. डीपट्रेस नाम की एक एआई कंपनी ने 2019 में पाया कि 96 प्रतिशत डीपफेक वीडियो पॉर्न से जुड़े थे. इनमें ज्यादातर बिना उस इंसान की सहमति के बनाए गए. अधिकतर डीपफेक वीडियो महिलाओं के ही बनाए गए थे.

2024 में किस ओर बढ़ेगी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

हिरानी कहती है, "महिलाओं के साथ साइबर अपराधों का एक लंबा इतिहास रहा है. चाहे वह पीछा करना हो, क्लोनिंग, फोटोशॉपिंग, या हैकिंग हो. इसकी वजह से महिलाएं इस तकनीक का इस्तेमाल करने से हिचकिचा सकती हैं. उनके दिमाग में अक्सर ऐसे सवाल आते हैं कि क्या मेरी वॉट्सऐप चैट, इंस्टाग्राम फीड और यूट्यूब कंटेंट जैसी चीजें एआई के डेटा सेट के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है? अगर ऐसा है, तो मुझे व्यक्तिगत रूप से अपने मीडिया को एआई मॉडल्स के लिए खुले में देना सही नहीं लगता."

एआई क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी डीपफेक जैसे खतरों को कम कर सकती है. इस क्षेत्र में महिलाओं की मौजूदगी से डिजिटल हिंसा से बचाव के लिए बेहतर सुरक्षा उपाय और नीतियां बनाई जा सकती हैं.

एक मोबाइल के स्क्रीन पर दिख रहा चैटजीपीटी का ऐप.
एआई के कारण नौकरियों पर असर पड़ने वाली बहस से भविष्य में रोजगार के अवसर और आजीविका की प्रोफाइल पर सवाल उठ रहे हैं. तस्वीर: Jaap Arriens/NurPhoto/picture alliance

महिलाओं की कम दिलचस्पी के पीछे क्या कारण हैं?

कोर्सेरा ट्रेनिंग एक्सपर्ट से पता चला कि एआई संबंधित कोर्स में पुरुष तीन गुना ज्यादा दिलचलस्पी दिखाते हैं. ऐसा नहीं कि महिलाएं एआई के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ना चाहती हैं, लेकिन उनकी दिलचस्पी कम हैं और इसके पीछे कई कारण हैं.

ब्रॉडकास्ट मीडिया सलाहकार रहे आर के सिंह का मानना है कि महिलाओं को एआई जटिल लगता है. ऐसे में सबसे पहले उनके दिमाग से यह डर निकालना जरूरी है. वह सुझाव देते हैं, "हमें जरूरत है कि हम महिलाओं को एआई के फायदे बताएं."

वह गर्म मसाले का उदाहरण देते हुए एआई का इस्तेमाल यूं समझाते हैं, "जैसे खाने में गर्म मसाला डाल दो, तो वह स्वादिष्ट हो जाता है. ऐसे ही काम में एआई का इस्तेमाल करने से वह सरल और बेहतर हो जाता है. मगर यह समझना भी जरूरी है कि कितना मसाला डालना होगा और कैसे. हमें अपनी जरूरतें समझनी होंगी, ताकि एआई टूल्स का भरपूर इस्तेमाल कर पाएं."

क्या जानवरों से हमारी बात करा पाएगी एआई?

सदियों से समाज महिला और पुरुष को उनकी भूमिकाएं बताता आया है. बचपन से ही लड़की को गुड़िया और लड़के को गाड़ी दिला दी जाती है. हालांकि, ऐसे पारंपरिक लैंगिक बंटवारे में अब काफी सुधार आया है, मगर इसका प्रभाव कहीं-न-कहीं तकनीकी क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी पर पड़ा है.

टेक वर्कफोर्स जेंडर कंपोजिशन के शोध से पता चला है कि एआई संबंधित नौकरियों में बस 22 प्रतिशत औरतें हैं. हिरानी बताती हैं कि आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि पुरुष एआई टूल्स और तकनीक को बेहतर समझते हैं. उन्होंने कहा, "महिलाओं की हिस्सेदारी ज्यादातर रिसर्च में होती है. जब हम उद्यमिता या एआई के एप्लीकेशन की बात करते हैं, तो वहां महिलाओं की उपस्थिति कम नजर आती है."

जल्द डीपफेक वीडियो से पट जाएगा इंटरनेट?

वरिष्ठ पदों पर कम महिलाएं

एआई के क्षेत्र में ऊंचे या वरिष्ठ प्रबंधन पदों (जैसे मैनेजर, डायरेक्टर या सीईओ) पर भी महिलाओं की संख्या बहुत कम है. विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट के अनुसार, विज्ञान और तकनीक (स्टेम) के ऊंचे पदों पर केवल 10 फीसदी महिलाएं हैं. इससे तकनीकी बदलाव और नौकरी के अवसरों में महिलाओं को नुकसान होता है क्योंकि वे अक्सर कम तनखाह वाली नौकरियों में होती हैं, जो जल्दी प्रभावित हो सकती हैं.

ऐसा ही कुछ कोविड महामारी के दौरान देखा गया था. टेक रेडियस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड महामारी के दौरान पांच फीसदी पुरुष टेक प्रोफेशनल्स की नौकरी गई. इसकी तुलना में नौकरी खोने वाली महिला टेक प्रोफेशनल्स की संख्या आठ प्रतिशत थी. इसका सबसे संभावित कारण यह है कि वरिष्ठ पदों पर महिलाओं की मौजूदगी पुरुषों की तुलना में कम होती है और महामारी ने इस समस्या को और उजागर किया है.

एआई अच्छा या बुरा, दुनिया भर के नेता दावोस में कर रहे हैं बहस

एआई में महिलाओं की कम दिलचस्पी का एक कारण यह भी है कि उन्हें एआई के फायदों पर ज्यादा भरोसा नहीं है. कॉग्निजेंट के सर्वेक्षण से पता चला है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं एआई को नए कौशल विकसित करने, नौकरियां बदलने, नए अवसर पैदा करने या आय बढ़ाने के लिए कम उपयोगी मानती हैं.

एआई में दिलचस्पी न होना या उसपर भरोसा न करने में महिलाओं की गलती नहीं. महिलाओं के लिए व्यवस्था ही ऐसी है, जो उन्हें इस क्षेत्र के प्रति आकर्षित नहीं करती. इसका एक उदाहरण विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट में दिखता है. इसके मुताबिक, महिलाओं को एआई से जुड़ी नौकरियों में पुरुषों की तुलना में 25 प्रतिशत कम मौका मिलता है. नौकरी मिलने के बाद भी उनके प्रमोशन पाने की संभावना 15 फीसदी कम होती है. अलग-अलग देशों में ये आंकड़े बदल सकते हैं, लेकिन डेटा और एआई क्षेत्रों में लैंगिक विविधता की कमी एक सच्चाई है.

कैसे करें इस अंतर को कम

इस अंतर को कम करने के लिए, कंपनियों को महिलाओं को सीखने के नए मौके देने होंगे. आईटी टीमों को बढ़ाना, कर्मचारियों के साथ मिलकर काम करना और जेनरेशन जी के "सुपरयूजर्स" को शामिल करना अच्छे कदम हो सकते हैं. साथ ही, महिलाओं की एआई में दिलचस्पी बढ़ाने और भविष्य में लीडरशिप के लिए प्रेरित करना भी जरूरी है.

एआई के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी न केवल उनके भविष्य के लिए, बल्कि समाज और कंपनियों के लिए भी महत्वपूर्ण है. इस विषय पर हिरानी कहती हैं, "कर्मचारियों को इन तकनीकों से परिचित कराना या सिखाना कंपनी की जिम्मेदारी होनी चाहिए. अगर कोई कर्मचारी, चाहे वह पुरुष हो या महिला, इन तकनीकों को नहीं जानता या नहीं सीखता, तो वह संभावित अवसरों से चूक सकता है."

जेनरेटिव एआई को लेकर डॉयचे वेले का क्या रुख है?

जानकार इस दिशा में कई और सुझाव देते हैं. मसलन, एआई में महिलाओं की भागीदारी स्कूल से ही शुरू होनी चाहिए. कंपनियों को महिलाओं के लिए अनुकूल माहौल बनाना चाहिए, मेंटरशिप देनी चाहिए और उनके करियर विकास में सहयोग करना चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो ये कंपनियां पुरुष-प्रधान बन सकती हैं. अगर महिलाएं डेटा इकट्ठा करने, जांचने और एल्गोरिदम बनाने में शामिल नहीं होतीं, तो यह एक ऐसी समाज की छवि सामने रखेगा जो सभी का प्रतिनिधित्व नहीं करता. 

तस्नीम जहरा तस्नीम जहरा