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हिंसा की वजह से पलायन कर रहे मध्य-पूर्व के डॉक्टर

कैथरीन शेअर
२७ जनवरी २०२३

मध्य-पूर्व में काम कर रहे अधिकांश डॉक्टर कहते हैं कि उन्होंने कार्यस्थल पर हिंसा का सामना किया है. 2020 में कोरोना महामारी शुरू होने के बाद इस तरह की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है. इसलिए कई चिकित्सक अपना देश छोड़कर चले गए.

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BG Ärzte im Nahen Osten l Ägypten, Krankenwagen mit Opfern des russischen Verkehrsflugzeugs A321
कुछ जानकार ऐसे मामले घटाने के लिए डॉक्टरों को भी विशेष प्रशिक्षण देने की वकालत करते हैं.तस्वीर: Mohamed El-Shahed/AFP via Getty Images

पिछले साल गर्मियों के मौसम में मध्य मिस्र में एक व्यक्ति ने डॉक्टर और अस्पताल के कर्मचारियों पर चाकू से हमला कर दिया था. स्वेज नहर के पास स्थित अस्पताल में एक गर्भवती महिला के पति ने स्त्री रोग विशेषज्ञ को पीटने की कोशिश की थी, क्योंकि वह दंपति बच्चे की संभावित जन्मतिथि से असहमत था.

दक्षिणी ट्यूनीशिया में आपातकालीन वार्ड में कार्यरत युवा डॉक्टर पर मरीजों ने कुर्सियों से हमला किया. अपनी जान बचाने के लिए डॉक्टर ने खुद को कार्यालय में बंद कर लिया और पुलिस के आने तक वहीं छिपी रहीं. हमले की वजह यह थी कि उन्होंने मरीज को आपातकालीन विभाग की जगह आउट पेशेंट विभाग में जाने के लिए कहा था.

इराक में रोगियों के साथ उनके परिवार या जान-पहचान के लोगों का अस्पताल आना सामान्य बात है. हालांकि, समस्या यह है कि अगर मरीज की स्थिति में सुधार नहीं होता है, तो ये लोग अक्सर डॉक्टरों को धमकाते हैं और उनके साथ हिंसक व्यवहार करते हैं.

बगदाद के अस्पतालों में 2021 में डॉक्टरों के बीच एक सर्वे किया गया. इसमें पाया गया कि करीब 87 फीसदी डॉक्टरों ने पिछले छह महीनों के दौरान काम पर मौखिक या शारीरिक हिंसा का अनुभव किया. इसमें हिंसा की लगभग 94 फीसदी वारदातों को रोगियों और उनके परिजन ने अंजाम दिया था.

BG Ärzte im Nahen Osten l Irak, Arzt untersucht einen mit Krim-Kongo-Virus (CCHF) infizierten Patienten
इराक के कई डॉक्टर मरीजों और उनके परिजन द्वारा आक्रामक और हिंसक बर्ताव करने की शिकायत करते हैं.तस्वीर: Asaad Niazi/AFP via Getty Images

स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हिंसा

स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हिंसक मामलों की रिपोर्ट दर्ज की गई है. डॉक्टरों ने जो स्थिति बताई है, वह वाकई चिंताजनक है.

मध्य-पूर्व के देशों में स्वास्थ्य कर्मचारियों के बीच किए गए सर्वे में पाया गया कि 67 से 80 फीसदी डॉक्टरों और नर्सों को काम के दौरान शारीरिक या मौखिक हिंसा का सामना करना पड़ा है. सर्वे से यह पुष्टि भी होती है कि आमतौर पर 40 वर्ष से कम उम्र के डॉक्टरों को हिंसा का ज्यादा सामना करना पड़ता है.

पिछले तीन वर्षों में कोरोना महामारी की वजह से हालात और खराब हो गए हैं. इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेज ने 2022 में एक सर्वे का नतीजा प्रकाशित किया है. इसके मुताबिक, "कोरोना महामारी शुरू होने के बाद हिंसक घटनाएं तेजी से बढ़ीं."

मध्य-पूर्व और आसपास के देशों में कार्यरत चिकित्सा अधिकारियों का कहना है कि महामारी के बाद बढ़ी हिंसक घटनाएं डॉक्टरों के प्रवासन को बढ़ा रही हैं. दूसरे शब्दों में कहें, तो डरे-सहमे डॉक्टर अपना देश छोड़कर दूसरी जगहों पर पलायन कर रहे हैं.

उदाहरण के लिए, मिस्र के मेडिकल सिंडिकेट (EMS) ने हाल ही में यह जानकारी दी है कि 2022 में देश के सार्वजनिक क्षेत्र से इस्तीफा देने वाले डॉक्टरों की संख्या सात वर्षों में सबसे अधिक थी. 2022 में 4,261 डॉक्टरों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया और अपने अनुभव प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया, ताकि उसकी मदद से वे देश के बाहर काम कर सकें. EMS देश के हजारों डॉक्टरों का समूह है और उनका प्रतिनिधित्व करता है.

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हजारों डॉक्टर करना चाहते हैं पलायन

टर्किश मेडिकल असोसिएशन (TMA) ने बताया कि 2021 में 1,405 स्थानीय डॉक्टरों ने अपने प्रमाणपत्र के लिए आवेदन किया, ताकि वे विदेशों में नौकरी कर सकें. TMA के अध्यक्ष सेबनम कोरुर फिनकैंसी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा, "क्या आप इस सच्चाई से अवगत हैं कि हम अपने डॉक्टरों को खो रहे हैं. उन्हें हर दिन हिंसा का सामना करना पड़ता है और अपनी मेहनत का इनाम भी नहीं मिलता." उन्होंने आशंका जताई है कि आने वाले समय में देश से पलायन करने वाले डॉक्टरों की संख्या बढ़ती रहेगी.

ट्यूनीशिया में श्रमिक संगठनों ने बताया कि 2022 में करीब 2,700 डॉक्टरों ने देश छोड़ दिया, जबकि 2018 में यह संख्या करीब 800 थी. ट्यूनीशिया के युवा डॉक्टरों के बीच किए गए सर्वे में पाया गया कि उनमें से करीब 40 फीसदी देश छोड़ने पर विचार कर रहे हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2021 में अनुमान लगाया कि लेबनान के करीब 40 फीसदी डॉक्टर देश से पलायन कर गए. इसी साल लेबनान के मेडिकल असोसिएशन ने जानकारी दी कि बाकी बचे डॉक्टरों में से भी करीब एक-तिहाई देश छोड़ने की योजना बना रहे हैं.

इराक, मोरक्को, जॉर्डन, ईरान और कुवैत से भी इसी तरह की खबरें आ रही हैं. हालांकि, हिंसा के अलावा भी कई वजहें हैं, जिनकी वजह से डॉक्टर देश से पलायन कर रहे हैं.

BG Ärzte im Nahen Osten l Krankenhaus in Saudi-Arabien, Riad
कई युवा डॉक्टर बेहतर जीवन और अच्छी कमाई के लिए सऊदी अरब जैसे देश चले जाना चाहते हैं.तस्वीर: Fayez Nureldine/AFP via Getty Images

कार्यस्थल पर हिंसा और आक्रामकता की परिभाषा हर अध्ययन के लिए अलग-अलग है. हालांकि, पूरी दुनिया के वैज्ञानिक सर्वेक्षण बताते हैं कि डॉक्टरों और नर्सों पर हमले हर जगह हो रहे हैं. मध्य-पूर्व के कई युवा डॉक्टर यूरोप या अमीर खाड़ी देशों में काम करना चाहते हैं, लेकिन वहां भी अक्सर हिंसा की घटनाओं के मामले सामने आते रहते हैं.

उदाहरण के लिए, जर्मनी के डॉक्टरों के बीच 2015 में एक सर्वे किया गया था. इसमें पाया गया कि उनमें से 73 फीसदी ने पिछले एक साल में कार्यस्थल पर 'आक्रामक व्यवहार' का अनुभव किया. संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब में भी स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े कर्मचारियों के बीच 2021 में एक अध्ययन किया गया. इस दौरान तीन-चौथाई से अधिक कर्मचारियों ने कहा कि उनके साथ रोगियों या उनके परिजन ने दुर्व्यवहार किया.

डॉक्टरों के साथ हिंसा क्यों की जा रही है?

ट्यूनीशिया में युवा डॉक्टरों के संगठन की सदस्य डॉक्टर ओमिमा अल-हस्सानी ने डॉयचे वेले को बताया कि यह एक दुष्चक्र है. उन्होंने कहा, "हिंसा की वजह से ही युवा डॉक्टर पलायन कर रहे हैं. हिंसा की मुख्य वजह संसाधनों, उपकरणों और कर्मचारियों की कमी है. रोगी और उनके परिजन अक्सर खुद को भयानक परिस्थितियों में घिरा पाते हैं. खासकर जब आपातकालीन सेवाओं की बात आती है. ऐसी परिस्थितियां ही हिंसा को बढ़ावा देती हैं."

दक्षिणी ट्यूनीशिया के एक अस्पताल में काम करने वाले अहमद एल्गारीरी ने कहा, "अस्पताल की खराब स्थितियों की वजह से रोगियों में तनाव बढ़ता है. मौखिक तौर पर हिंसा और अभद्र भाषा का इस्तेमाल हर दिन होता है. मुझे कभी नहीं पीटा गया, लेकिन मेरे कई वरिष्ठ साथियों की पिटाई हो चुकी है." अहमद पिछले पांच साल से मेडिसिन की प्रैक्टिस कर रहे हैं.

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उन्होंने DW से कहा, "पूरी स्वास्थ्य प्रणाली में ही समस्या है. हिंसा की वजह से कई डॉक्टर देश छोड़ने पर विचार करते हैं, लेकिन इसके अन्य कारण भी हैं. अगर मुझे भी बेहतर मौका मिलता है, तो मैं बिना किसी हिचकिचाहट के चला जाऊंगा."

जिन सरकारी अस्पतालों में संसाधनों का ज्यादा अभाव है, वहां स्थिति ज्यादा बदतर है. कुछ देशों में डॉक्टरों ने यह शिकायत की है कि कई जगहों पर अस्पताल का प्रबंधन उन लोगों को दिया गया है, जिनके बेहतर राजनीतिक संबंध हैं. न कि जिनके पास चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ा बेहतर अनुभव और कौशल है.

वहीं कुछ लोगों का यह भी कहना है कि जिन रोगियों की 'पहचान' होती है, वे कतार में लगे बिना इलाज के लिए चले आते हैं. इससे अन्य सामान्य रोगियों को भर्ती होने के लिए घंटों लाइन में इंतजार करना पड़ता है. उन्हें सही दवाइयां या वार्ड में बिस्तर तक नहीं मिल पाते. इससे उनमें आक्रोश बढ़ता है. उनके साथ गए परिजन परेशान हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में अस्पताल में तैनात सुरक्षा कर्मचारियों या डॉक्टरों के साथ विवाद शुरू हो जाता है.

मिस्र के डॉक्टर और काहिरा स्थित EMS के प्रवक्ता याहया दिवेर ने डॉयचे वेले को बताया कि जितने ज्यादा डॉक्टर पलायन करते हैं, सरकारी अस्पतालों में स्थिति उतनी बदतर होती जाती है. इससे हिंसा की आशंका और बढ़ जाती है. साथ ही, गलत सूचना और स्थानीय डॉक्टरों की प्रतिष्ठा खराब होने से भी हिंसा होती है.

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लेबनान में स्वास्थ्यकर्मियों के संगठन ने चेतावनी दी है कि स्वास्थ्य तंत्र ढहने के कगार पर है.तस्वीर: Anwar Amro/AFP via Getty Images

डॉक्टरों और रोगियों के बीच संवाद जरूरी

पिछले साल गर्मियों में मिस्र के पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी अहमद होस्साम ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर छह मिनट का वीडियो पोस्ट किया था. इसमें उन्होंने बताया कि छुट्टियों के दौरान उनके पिता की तबीयत अचानक खराब होने पर इलाज कराने में किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ा. उन्होंने कहा, "मिस्र के अधिकांश डॉक्टरों के पास विवेक नहीं है. उनके पिता को इलाज से पहले एक के बाद एक कई अस्पतालों में जाने को मजबूर किया गया." इससे नाराज EMS ने होस्साम के खिलाफ मानहानि की शिकायत दर्ज कराई और आखिरकार उन्हें माफी मांगनी पड़ी.

दिवेर ने कहा कि डॉक्टर क्या कर सकते हैं और क्या नहीं, इसे लेकर लोगों में अक्सर जानकारी का अभाव होता है. उन्होंने कहा, "हमारे पास ऐसे रोगी आते हैं, जो इलाज नहीं कराना चाहते, क्योंकि डॉक्टर ने कुछ ऐसा कहा, जिसे वे अपशकुन मानते हैं."

ईस्टर्न मेडिटेरेनियन हेल्थ जर्नल में मिस्र के युवा डॉक्टरों के बीच 2019 में हुए सर्वे की रिपोर्ट प्रकाशित हुई है. इसमें यह बात सामने आई कि सिर्फ 5 फीसदी डॉक्टरों की ही उनके काम के लिए तारीफ की जाती है. वहीं तीन-चौथाई से ज्यादा डॉक्टर रोगियों के व्यवहार से असंतुष्ट हैं.

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2020 में ट्यूनीशिया के युवा डॉक्टरों ने ऐसे खतरनाक माहौल में काम करने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था.तस्वीर: Fethi Belaid/AFP via Getty Images

मिस्र में हालात बेहतर बनाने के लिए दिवेर सुझाते हैं कि डॉक्टरों को इस बारे में ज्यादा प्रशिक्षित करने की जरूरत है कि वे रोगियों के साथ महत्वपूर्ण विषयों पर किस तरह बात करें. जैसे कि किस तरह से बीमारी और इलाज के बारे में उन्हें जानकारी दी जाए.

ट्यूनीशिया के डॉक्टर अल-हस्सानी ने कहा, "युवा डॉक्टरों के पलायन के पीछे कई कारण हैं. वे इसलिए भी देश छोड़ते हैं, क्योंकि उन्हें ज्यादा वेतन चाहिए होता है. साथ ही, वे बेहतर जिंदगी जीना चाहते हैं और काम का बेहतर माहौल भी चाहते हैं."

इन तमाम परिस्थितियों के बावजूद अल-हस्सानी को बेहतर भविष्य की उम्मीद है. उन्हें लगता है कि आने वाले समय में माहौल बेहतर हो सकता है. उनका मानना है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे और वेतन में सुधार से डॉक्टरों और नर्सों के प्रति लंबे समय से हो रही हिंसक घटनाओं को कम या खत्म किया जा सकता है.