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ईरान: राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान, कौन हैं मुख्य उम्मीदवार

२८ जून २०२४

ईरान में शुक्रवार, 28 जून को राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान हुआ. मई में ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की एक हेलिकॉप्टर हादसे में मौत होने से यह पद खाली था.

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दमिश्क स्थित ईरान के वाणिज्यिक दूतावास में ईरान का एक नागरिक वोट डालने के बाद स्याही लगी अपनी उंगली दिखाता हुआ, पीछे सुप्रीम लीडर अयातोल्लाह अली खमेनेई की तस्वीर लगी है.
ईरान में 2022 में बड़े स्तर पर हुए महिला अधिकार समर्थक और सरकार विरोधी जन प्रदर्शनों के बाद हो रहा यह पहला राष्ट्रपति चुनाव है. हालांकि, हालिया समय में ईरानी जनता के बीच चुनाव में हिस्सेदारी का बहुत उत्साह नहीं दिखा है. मार्च में हुए संसदीय चुनावों में मतदान रिकॉर्ड स्तर पर कम रहा. तस्वीर: LOUAI BESHARA/AFP

ईरान में समय से पूर्व चुनाव कराए गए हैं. इसी साल 19 मई को राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की विमान हादसे में हुई मौत के बाद उप राष्ट्रपति मोहम्मद मोखबर को कार्यकारी राष्ट्रपति बनाया गया. साथ ही, 2025 में निर्धारित चुनाव की योजना को बदलकर समय पूर्व चुनाव करवाया गया.

मतदान के दिन सुप्रीम लीडर खमेनेई ने लोगों से वोट डालने की अपील की. तेहरान के एक मतदान केंद्र पर वोट डालने पहुंचे खमेनेई ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि अधिक संख्या में लोगों का वोट डालना ईरान के लिए "बेहद जरूरी" है.

28 जून को बगदाद स्थित ईरानी दूतावास में राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डाल रहीं ईरान की एक महिला. यहां भी ईरानी नागरिकों के लिए वोट डालने की व्यवस्था की गई थी.
सुप्रीम लीडर अयातोल्लाह अली खमेनेई ने ईरान की जनता से वोट डालने की अपील की. उन्होंने कहा कि चुनाव में लोगों की भागीदारी अहम है. हालांकि, तमाम अपीलों के बाद मतदान प्रतिशत कम ही रहने का अनुमान है. तस्वीर: AFP

चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल

कई पर्यवेक्षकों का कहना है कि चुनाव निष्पक्ष नहीं हैं. लोकतंत्र, राजनीतिक स्वतंत्रता और मानवाधिकार से जुड़े गैर-सरकारी संगठन 'फ्रीडम हाउस' ने 2024 की रेटिंग में ईरान को 'नॉट फ्री' की श्रेणी में रखा. संगठन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि भले ही ईरान में नियमित तौर पर चुनाव होते हों, लेकिन ये लोकतांत्रिक मापदंडों पर खरे नहीं उतरते.

ईरान की राजधानी तेहरान के एक मतदान केंद्र पर बैलेट बॉक्स में वोट डालती एक महिला मतदाता.
इब्राहिम रईसी न्यायपालिका के प्रमुख थे. वह सुप्रीम लीडर के करीबी माने जाते थे. 2021 के चुनाव में 62 फीसदी मतों के साथ वह राष्ट्रपति बने थे. ईरान में चुनावी प्रक्रिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल हैं. तस्वीर: Atta Kenare/AFP

ईरान में 'गार्डियन काउंसिल' चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवारों के आवेदनों पर फैसला लेती है. काउंसिल की मंजूरी मिलने पर ही कोई प्रत्याशी चुनाव लड़ सकता है. आलोचक इस ओर भी ध्यान दिलाते हैं कि असली ताकत सुप्रीम लीडर अयातोल्लाह अली खमेनेई के पास है.

गार्डियन काउंसिल के छह सदस्यों की नियुक्ति खमेनेई करते हैं. बाकी छह सदस्य न्यायविद होते हैं, जिनका नामांकन न्यायपालिका के प्रमुख करते हैं. बाद में संसद इनकी नियुक्ति पर मंजूरी देता है. आलोचकों के मुताबिक, जो भी उम्मीदवार धार्मिक नेतृत्व के प्रति संतोषजनक रूप से वफादार नहीं माना जाता, उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाता है. गार्डियन काउंसिल ने आज तक किसी महिला को राष्ट्रपति चुनाव नहीं लड़ने दिया है.

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कौन हैं प्रमुख उम्मीदवार

इस बार भी लगभग 80 लोगों ने चुनाव लड़ने के लिए आवेदन दिया था, जिनमें छह को ही मंजूरी दी गई. इन छह प्रत्याशियों के नाम हैं: सईद जलीली, अली राजा जकानी, आमिर हुसैन काजीजादेह, मोहम्मद बाकर, मुस्तफा पोरमोहम्मदी और मसूद पेजेशकियान. ईरानी मीडिया की खबरों के मुताबिक, इन छह में से दो उम्मीदवार आमिर हुसैन काजीजादेह हाशमी और अली राजा जकानी मैदान से हट गए थे.

28 जून को ईरान की राजधानी तेहरान के एक मतदान केंद्र पर वोट डालने के लिए फॉर्म भरतीं महिलाएं.
ईरान की गार्डियन काउंसिल ने आज तक किसी महिला को राष्ट्रपति चुनाव में खड़े होने की मंजूरी नहीं दी है. 2021 के राष्ट्रपति चुनाव में भी करीब 40 महिलाओं ने दावेदारी पेश की, लेकिन काउंसिल ने सबका आवेदन खारिज कर दिया. तस्वीर: Atta Kenare/AFP

राजनीति के कई जानकारों के मुताबिक, मुख्य मुकाबला त्रिकोणीय है. तीन प्रमुख उम्मीदवारों में से एक सईद जलीली हैं, जो ईरान के प्रमुख परमाणु वार्ताकार और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सदस्य रहे हैं. इन्हें कट्टरपंथी धड़े का माना जाता है.

इनके अलावा ईरान की संसद के स्पीकर और राजधानी तेहरान के पूर्व मेयर मोहम्मद बाकर और 2015 के परमाणु समझौते की ओर लौटने के हिमायती मसूद पेजेशकियान भी मुकाबले में हैं. मोहम्मद बाकर के सेना के साथ मजबूत संबंध हैं और उनके जीतने की मजबूत संभावना जताई जा रही है.

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सभी उम्मीदवारों में केवल मसूद पेजेशकियान ही सुधारवादी बताए जा रहे हैं. वह देश की अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए पश्चिमी देशों के साथ संबंध दुरुस्त करना चाहते हैं. समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक, 28 जून को वोट डालने के बाद पेजेशकियान ने बयान दिया कि अगर वह जीतते हैं, तो पश्चिमी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने की कोशिश करेंगे. उनके इस बयान पर सुप्रीम लीडर अयातोल्लाह अली खमेनेई की सख्त प्रतिक्रिया आई है.

ईरान के हालिया चुनावों में मतदान प्रतिशत कम रहा है. 1 मार्च को हुए संसदीय चुनावों में भी जनता में मतदान के लिए बहुत उत्साह नहीं दिखा था. अर्थव्यवस्था की तंगहाली, पश्चिमी देशों से तनाव और यूक्रेन युद्ध में रूस को समर्थन दिए जाने जैसे कारणों से ईरान के कई लोग मतदान नहीं करने की बात कह रहे थे. संसदीय चुनावों के समय समाचार एजेंसी एपी ने 21 लोगों का इंटरव्यू किया था, जिनमें सिर्फ पांच लोगों ने वोट डालने की बात कही.

28 जून को ईरान की राजधानी तेहरान के एक मतदान केंद्र के बाहर वोट डालने के लिए पंक्ति में खड़े मतदाता.
ईरान में 'गार्डियन काउंसिल' चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवारों के आवेदनों पर फैसला लेती है. काउंसिल की मंजूरी मिलने पर ही कोई प्रत्याशी चुनाव लड़ सकता है. तस्वीर: Atta Kenare/AFP

कैसे हो रहा है मतदान

देशभर में 58,640 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. इनके लिए मस्जिदों, स्कूलों और अन्य सरकारी इमारतों का इस्तेमाल किया गया है. 18 साल या इससे अधिक उम्र के ईरानी नागरिक अपना परिचय पत्र दिखाकर और एक फॉर्म भरकर वोट डाल सकते हैं.

भारत की ही तरह यहां भी मतदाताओं की उंगली पर स्याही लगाई जाती है, ताकि लोग एक बार ही वोट डालें. मतदान केंद्र पर मौजूद अधिकारी वोटरों के परिचय पत्र पर आधिकारिक मुहर भी लगाते हैं.

मतदान गोपनीय होता है. मतदाता बैलेट पेपर पर उस उम्मीदवार का नाम और क्रमांक संख्या लिखते हैं, जिन्हें वह वोट देना चाहते हैं. मतदान का समय सुबह आठ से शाम छह बजे तक होता है. हालांकि, कम वोटिंग को देखते हुए अक्सर प्रशासन तयशुदा समय खत्म होने के कई घंटे बाद तक मतदान प्रक्रिया जारी रखता है.

कौन हैं राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी

ईरान में राष्ट्रपति का कार्यकाल चार साल का होता है. एक व्यक्ति अधिकतम दो कार्यकाल तक ही राष्ट्रपति रह सकता है. ईरान में असली ताकत सुप्रीम लीडर की मानी जाती है, लेकिन राष्ट्रपति घरेलू और विदेशी नीति के स्तर पर बदलाव ला सकता है. मसलन, 2015 में पश्चिमी देशों के साथ हुए परमाणु समझौते में पूर्व राष्ट्रपति हसन रोहानी की अहम भूमिका रही थी. हालांकि, बीते सालों में पश्चिमी देशों के साथ बढ़ते तनाव के बीच सुप्रीम लीडर की ताकत और बढ़ गई है.

एसएम/आरपी (एपी, रॉयटर्स)