ईरान में महिलाओं की हत्या क्यों नहीं रुकती
१९ जून २०२०इस महीने एक के बाद एक सामने आई इन तीन हत्याओं में कुछ बातें एक जैसी हैं जैसे जिनकी जान ली गई वे सभी महिलाएं थीं, जिन्होंने जान से मारा वे सभी पिता, पति या भाई जैसे करीबी रिश्तेदार थे, सभी हत्याएं तथाकथित "ऑनर किलिंग" मानी जाती हैं और इनमें से किसी भी हत्यारे को अपराध साबित होने पर भी किसी आम हत्यारे जैसी सजा नहीं मिलेगी. भले ही सुनने में ये अन्याय लगता हो लेकिन ईरान के कानून के हिसाब से यही न्याय है. दोषी साबित होने पर इन्हें केवल 3 से लेकर अधिकतम 10 साल तक की जेल हो सकती है. ईरान में शरिया कानून के अंतर्गत आने वाले इस मामले में बेटी की हत्या के लिए पिता को मृत्यु दंड या उम्र कैद नहीं दी जा सकती जबकि इसी जुर्म में मां को ऐसी सजा मिल सकती है.
हत्यारों को नहीं है कानून या सजा से डरने की जरूरत?
एक मामले में तो कथित तौर पर हत्यारे पिता ने अपनी बेटी की जान लेने से कुछ हफ्ते पहले ही वकील से बात कर इस बात की तसल्ली कर ली थी कि उसे इसके लिए कड़ी सजा तो नहीं झेलनी पड़ेगी. देश के कानून की नजर में अपनी हरकत की स्वीकार्यता के स्तर को समझते हुए उसने खून करने का फैसला लिया. मामला एक 14 साल की लड़की रोमीना का था, जिसका उसके पिता ने अपने ही कमरे में सोते हुए कुल्हाड़ी से सिर काट दिया. पिता का कहना है कि ये कदम उसने अपनी "इज्जत" बचाने के लिए उठाया क्योंकि लड़की अपनी पसंद के लड़के साथ घर छोड़ कर भाग गई थी.
दूसरा मामला केवल 19 साल की फातिमा का था जिसे उसके पति ने मार डाला था. यह पति रिश्ते में उसका चचेरा भाई लगता था और उसके साथ महिला की शादी जबरन कराई गई थी. पति की बदसलूकी से परेशान होने के बाद महिला घर से भागकर एक महीने से किसी शेल्टर होम में रही थी, जिसके बाद इस आदमी ने उसे मौत के घाट उतार दिया और फिर चाकू लेकर खुद ही पुलिस के पास चला गया. तीसरा मामला 22 साल की रेहाना का था, जिसे उसके पिता ने इसलिए जान से मार डाला क्योंकि वह देर से घर लौटी थी.
ईरानी शासन का कैसा रवैया
ईरान की इस्लामी सरकार नहीं चाहती कि इन घटनाओं का संबंध देश में इस अपराध के लिए सजा के हल्का होने से जोड़ा जाए. देश भर के राजनीतिक मंचों और सोशल मीडिया पर तथाकथित सम्मान के नाम पर की जाने वाली ऐसी हिंसा की आलोचना देखने को मिली है. यही कारण है कि देश के सर्वोच्च नेता खमेनेई के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से जारी बयान में उनके हवाले से लिखा है कि उन लोगों का मजबूती से मुकाबला किया जाना चाहिए जो "महिलाओं का अपमान अपना हक मानते हैं."
ईरान के इस्लामिक कानून में सुधारों की मांग को लेकर कई नागरिक अधिकार कार्यकर्ता काम करते आए हैं. उनकी मांग रही है कि किसी के खून के लिए हर खूनी को एक जैसी सजा मिलनी चाहिए. घरेलू हिंसा को अपराध का दर्जा दिए जाने के कानून सुधार करने की तैयारी आठ साल से चल रही है लेकिन अब तक उस पर सहमति नहीं बनी है.
शरिया कानून पर बहस के लिए नहीं तैयार
हत्याओं की इस ताजा श्रृंखला में सबसे पहले बड़े मामले पर छिड़ी देशव्यापी चर्चा के बाद जल्दी जल्दी में देश में वो कानून पास किया गया जो पिछले 11 साल से लटका था. यह कानून बच्चों के अधिकारों से जुड़ा था जिसे लेकर ईरानी संसद की ताकतवर और संकीर्ण सोच वाली गार्डियन काउंसिल और दूसरे सुधारवादी धड़े के बीच सहमति नहीं बन पाई थी. लेकिन हत्याकांड के बाद बने दबाव के कारण पास हुए इस कानून में भी वो शर्त नहीं बदली जा सकी कि बच्चों को जान से मारने वाले पिता को आम खूनी की तरह सजा नहीं दी जाएगी. इसका कारण यह है कि यह इस्लामिक शरिया कानून से निकली व्याख्या है जिस पर अब भी सरकार बहस के लिए तैयार नहीं है.
विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसी हत्याओं की जड़ें उस गहरी पितृसत्तात्मक सोच से निकलती हैं जो महिलाओं को अपने से कमतर और उसके साथ अन्याय को आम मानता है. कई सदियों से ईरानी समाज ऐसी बीमार सोच की गिरफ्त में रहा है जिसे सुधारने के लिए ना केवल महिलाओं की हत्या जैसे जुर्म के लिए उनके रिश्तेदारों को भी कड़ी से कड़ी सजा दिलाने वाला कानून बनाना होगा बल्कि समाज में बड़े स्तर पर कई सालों तक लगातार जागरूकता अभियान चलाने होंगे.
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