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मूलनिवासियों की अनमोल दुनिया

स्वाति मिश्रा
९ अगस्त २०२२

मूलनिवासी संस्कृतियों और भाषाओं के एक विविध समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं. मगर मूलनिवासी समूहों का एक बड़ा हिस्सा संसाधनों और मौकों में सही हिस्सा नहीं पा रहा है. कई इंडीजिनस भाषाएं भी विलुप्त होने का खतरा झेल रही हैं.

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तस्वीर में: दक्षिणी पेरू के आईमारा जिले में हुए फुटबॉल चैंपियनशिप में मुकाबले के पहले फोटो खिंचवाती आईमारा इंडीजिनस समूह की महिला फुटबॉल खिलाड़ी तस्वीर: Charlos Mamani/AFP

9 अगस्त को "इंटरनेशनल डे ऑफ दि वर्ल्ड्स इंडीजिनस पीपल्स" मनाया जाता है. इंडीजिनस, यानी देशज. किसी खास इलाके के मूलनिवासी. माना जाता है कि दुनिया की कुल आबादी का छह फीसदी से ज्यादा हिस्सा मूलनिवासी समूहों का है. ये अलग-अलग भौगोलिक इलाकों से ताल्लुक रखते हैं. करीब 90 देशों में इनकी मौजूदगी है. ये समूह करीब 5,000 संस्कृतियों की नुमाइंदगी करते हैं.

इंडीजिनस समूह सस्टेनेबल लिविंग के चैंपियन माने जाते हैं. उनके जीने का स्वाभाविक तरीका कुदरत के साथ गुंथा है. दुनिया में करीब सात करोड़ इंडीजिनस लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए जंगलों पर निर्भर है. कुदरत को नुकसान पहुंचाए बिना उसके साथ सहज भाव से कैसे रहना चाहिए, ये व्यवहार इन समूहों के अस्तित्व का हिस्सा हैं. रिसर्च बताते हैं कि जहां इंडीजिनस समूहों के पास जमीन का कंट्रोल होता है, वहां जंगल और जैव-विविधता फलती-फूलती है.

इंडीजिनस भाषाओं का दशक

इन समूहों की पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं उनकी भाषाएं. पीढ़ियों से छनकर आते ज्ञान और अनुभवों से भरी ये भाषाएं ना केवल सांस्कृतिक धरोहर हैं, बल्कि दुनिया में बोली-समझी जाने वाली कुल भाषाओं में इनकी सबसे बड़ी हिस्सेदारी भी हैं. मगर इनमें से कई भाषाएं मरती जा रही हैं. दुनिया की 7,000 भाषाओं में कम-से-कम 40 फीसदी ऐसी हैं, जिनपर हमेशा के लिए खत्म हो जाने का खतरा मंडरा रहा है.

अनुमान है कि हर दो हफ्ते पर एक इंडीजिनस भाषा खत्म हो जाती है. मतलब, वो भाषा बोलने-समझने वाला कोई इंसान दुनिया में नहीं बचा. सोचिए, इन मौतों के साथ हम इंसान कितनी सदियों, कितनी पीढ़ियों के अर्जित किए ज्ञान को खो देते हैं! संयुक्त राष्ट्र ने 2022 में "इंडीजिनस भाषाओं का दशक" शुरू किया. इस अभियान का मकसद इंडीजिनस भाषा बोलने वालों को मजबूती देना है.

जीवनस्तर दुरुस्त करने की जरूरत

दुनिया में संसाधनों के बंटवारे और आर्थिक प्राथमिकताओं से जन्मे मकड़जाल के चलते इंडीजिनस समूहों को बड़ा नुकसान हो रहा है. 86 फीसदी से ज्यादा इंडीजिनस लोग अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करते हैं. लगभग 47 फीसदी की पढ़ाई-लिखाई नहीं हो पाती. उनके गरीब होने की संभावना ज्यादा है. इसका असर उनके जीवनस्तर, पोषण और सामाजिक सुरक्षा पर पड़ता है. उनके बीमार होने की आशंका बढ़ जाती है.

स्वास्थ्य सुविधाओं और संसाधनों की कमी के कारण वो कम जी पाते हैं. महिलाओं की स्थिति और खराब है. यूएनडीपी के मुताबिक, तीन में से कम-से-कम एक इंडीजिनस महिला यौन उत्पीड़न की शिकार है. कम उम्र में प्रेगनेंसी, सेक्स से ट्रांसमिट होने वाली बीमारियां और बच्चा पैदा करते समय मौत के मामले भी इनके बीच ज्यादा हैं.

संस्कृति, परंपरा, भाषा, ज्ञान...हर मामले में इंडीजिनस समूह अनमोल हैं. ये वो धरोहर है, जिसे बहुत सहेजकर रखा जाना चाहिए. उनके अधिकार सुरक्षित और सुनिश्चित किए जाने चाहिए.