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आर्थिक सर्वेक्षण में विकास की रफ्तार धीमी होने का अनुमान

चारु कार्तिकेय
३१ जनवरी २०२३

सरकार ने दावा किया है कि इस साल भारत में पिछले तीन सालों से कम गति से विकास होगा. 31 मार्च तक की अनुमानित सात प्रतिशत के मुकाबले उसके बाद शुरू होने वाले वित्त वर्ष में छह से 6.8 प्रतिशत विकास दर रहने का अनुमान है.

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मुंबई
मुंबई का एक बाजारतस्वीर: Subhash Sharma/Zumapress/picture alliance

वित्त वर्ष 2023-24 के लिए केंद्रीय बजट लाए जाने के एक दिन पहले केंद्र सरकार ने संसद में आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया. सर्वेक्षण में अगले वित्त वर्ष के लिए छह से 6.8 प्रतिशत की विकास दर का अनुमान दिया गया है.

यह 31 मार्च को खत्म होने वाले मौजूदा वित्त वर्ष की सात प्रतिशत की अनुमानित विकास दर से कम है. हालांकि अगले साल का पूर्वानुमान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के 6.1 प्रतिशत के पूर्वानुमान से ज्यादा है.

वित्त मंत्रालय को उम्मीद है कि देश के अंदर डिमांड यानी मांग मजबूत है और वो अंतरराष्ट्रीय कमजोरियों के असर का आंशिक रूप से मुकाबला कर लेगी. आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक अगले वित्त वर्ष में अगर विकास दर 6.5 प्रतिशत भी रहती है तो भी भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से रहेगा.

महंगाई का हाल

सर्वेक्षण को संसद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेश किया. उसके बाद एक प्रेस वार्ता में मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेस्वरन ने कहा कि वैश्विक विकास अगर सीमित रूप से धीमी होती है तो वो भारत के लिए अच्छा ही रहेगा क्योंकि उससे दाम नीचे लाने में और महंगाई को लेकर चिंताओं को शांत करने में मदद मिलेगी. 

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सर्वेक्षण के मुताबिक महंगाई इतनी ऊंची नहीं है कि निजी निवेशक उसकी वजह से झिझक जाएं और उतनी नीची भी नहीं है कि निवेश कमजोर ही पड़ जाए. हालांकि 2022-23 के अधिकांश महीनों में महंगाई दर रिजर्व बैंक की दो से छह प्रतिशत की टारगेट रेंज से ऊपर ही रही है.

दिसंबर में उपभोक्ता सामानों के दाम एक साल पहले के मुकाबले 5.72 ऊपर थे. सर्वेक्षण ने यह भी कहा कि 2023/24 में मांग ऊंची रहेगी क्योंकि "भारत में कॉर्पोरेट और बैंकिंग क्षेत्रों में बैलेंस शीटों के मजबूत होने के साथ एक जोरदार ऋण देने की प्रक्रिया और कैपिटल निवेश के चक्र के शुरू होने की उम्मीद है."

हालांकि इसका यह भी मतलब है कि चालू खाता घाटा ज्यादा रह सकता है क्योंकि देश के अंदर एक मजबूत आर्थिक हालात की वजह से आयात को समर्थन मिलेगा लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमजोरी की वजह से निर्यात कम हो सकता है.

जुलाई-सितंबर की तिमाही में भारत का चालू खाता घाटा जीडीपी के 4.4 प्रतिशत के बराबर था जब कि एक साल पहले यह 1.3 प्रतिशत पर था. इसमें बढ़ोतरी आयातित ईंधन और अन्य सामान के बढ़ते दामों और रुपए की हालत में कमजोरी की वजह से आई.

(रॉयटर्स से जानकारी के साथ)